Rewa. कांग्रेस के महापौर का प्रत्याशी घोषित होते ही पार्टी में विद्रोह की चिन्गारी भड़क गई है। सतना की बगावत सबसे बड़ी है। सिंगरौली भी उसी राह पर है। रीवा में फुसफुसाहट के स्वर तेज हो चले हैं। यानी कि चुनाव की कवायद के श्रीगणेश के साथ ही विंध्य इलाके में कांग्रेस की कुंडली में राहु-केतु और शनि की चाल वक्री हो गई है।
नगरीय निकाय और पंचायतों के पहले चुनाव (94-95) में जिस विंध्य में कांग्रेस के मुकाबले अन्य दलों के प्रत्याशी ढूँढे नहीं मिलते थे उसी विंध्य में अब कांग्रेस किसी भी चुनाव में एक अदद जीत के लिए तरस रही है। आखिर ऐसी हालत क्यों..? कांग्रेस तो बताने से रही चलिए हम ही आपको बता देते हैं - वह इसलिए क्योंकि जिस-जिस ने कांग्रेस के ताबूत में कील ठोंकी वही कालांतर में सरताज बना। दूसरे शब्दों में कहें तो जिस-जिसने पार्टी को दगा दिया वही सगा बनता गया। कैसे....आइए कांग्रेस में इस विडंबना की कहानी का शुरुआत करते हैं सतना से..।
पिता ने कांग्रेस को डुबोया तो बेटे को तारणहार बना दिया...!
सतना से कांग्रेस ने सुखलाल कुशवाहा के बेटे सिद्धार्थ को महापौर का प्रत्याशी बना दिया है। उदयपुर में पार्टी के शीर्ष चिंतन शिविर में तय की गई एक पद- एक व्यक्ति की गाइड लाइन तोड़ते हुए विधायक सिद्धार्थ को प्रत्याशी तो बनाया ही उसके साथ ही प्रदेश पिछड़ा वर्ग का अध्यक्ष भी घोषित कर दिया।
सतना में कांग्रेस को इस गत तक पहुँचाने का श्रेय सुखलाल कुशवाहा को ही जाता है। सुखलाल ने कांग्रेस के दिग्गज अर्जुन सिंह की संसदीय जमीन पर बहुजन समाज पार्टी की ऐसी सुरंग बिछाई कि 1996 में उसके विस्फोट से अर्जुन सिंह, वीरेंद्र सखलेचा जैसे दिग्गजों की राजनीति धुआँ-धुआँ हो गई। अर्जुन सिंह तिवारी कांग्रेस से लड़े थे और सखलेचा बीजेपी से। तब चुनाव में कांग्रेस के तोषण सिंह चौथे नंबर पर रहे। तभी से कांग्रेस की गाड़ी पटरी से उतरी हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सुखलाल के बेटे पर दाँव चला। सिद्धार्थ तो चल निकले पर कांग्रेस अभी वहीं फँसी है। सत्तर साल से सतना में कांग्रेस का पर्याय रहा बैरिस्टर गुलशेर अहमद का परिवार और उसके समर्थकों ने अब कांग्रेस को डुबोने का संकल्प लिया है। बैरिस्टर के बेटे पूर्व मंत्री सईद अहमद कांग्रेस ने नाता तोड़कर अब बसपा से महापौर के प्रत्याशी हैं।
सिंगरौली में भी विधानसभा चुनाव के बागी चंदेल ही भाए...!
सिंगरौली से जिन अरविन्द सिंह चंदेल को कांग्रेस महापौर की झलक देखते हुए प्रत्याशी बनाया गया है उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की मिट्टी पलीद करने का श्रेय जाता है। वे कांग्रेस की प्रत्याशी रेणू शाह के मुकाबले खड़े हुए थे और तेरह हजार वोट पाकर कांग्रेस की हार सुनिश्चित की। लोकसभा चुनाव के समय अजय सिंह राहुल उन्हें फिर कांग्रेस में लाए और संभवतः उन्हीं की पैरवी पर चंदेल को महापौर का टिकट मिला। सिंगरौली में दूसरा प्रभावशाली गुट राहुल के बहनोई बीपी सिंह राजा बाबा का है। उन्हें अपने समर्थक राम अशोक शर्मा को टिकट न दिला पाने का अफसोस तो होगा ही। लेकिन क्या चंदेल के कारण विधानसभा चुनाव में मात खाने वाली रेणू शाह इस चुनाव में चुप बैठेंगी.. कदापि नहीं।
रीवा में बस फुसफुसाहट है...।
रीवा में अजय मिश्र बाबा गुरुवार ( 16 जून) के जब कांग्रेस की ओर से महापौर पद के प्रत्याशी का पर्चा भरने जा रहे थे तभी पूर्व शहर अध्यक्ष शहीद....... मिस्त्री का एक आडियो वायरल हो रहा था..जिसमें वे कह रहे थे हम लोगों (मुसलमानों) को इग्नोर करने का मतलब समझते हैं..! हम यह बर्दाश्त नहीं करेंगे। यद्यपि वे लगे हाथों यह सफाई भी देते हैं कि कमलनाथ ने भरोसा दिया है..वरना अपन तो कब के आम आदमी पार्टी के पाले में कूद चुके होते। ये वही शहीद मिस्त्री वे हैं जिन्होंने महापौर के पहले प्रत्यक्ष चुनाव में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी सरदार प्रहलाद सिंह की हार सुनिश्चित की थी। बाद में कांग्रेस ने इन्हीं शहीद मिस्त्री को शहर का अध्यक्ष बना दिया।
अजय मिश्र के पर्चा भरने वाले जुलूस के नेतृत्वकर्ताओं में अब्दुल मुजीब खान भी थे। 2005 में इन्हें जब कांग्रेस ने महापौर का टिकट नहीं दिया तो उन्होंने खुलेआम यह संकल्प लिया था कि रीवा शहर में वे अब कांग्रेस को मेंहदी नहीं लगने देंगे। वे बसपा से महापौर के उम्मीदवार बने और कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेल दिया। 2008 का विधानसभा चुनाव भी बसपा से लड़े और रीवा शहर में कांग्रेस की ताबूत पर आखिरी कील ठोंकी। 2013 में दिग्विजय सिंह का दिल एक बार फिर मुजीब पर आ गया और उन्हें कांग्रेस में शामिल कराते हुए विधानसभा का उम्मीदवार बना दिया। अब मुजीब और शहीद दोनों कांग्रेस में है और उसका 'भला' करने में जी-जान से जुटे हैं।