मध्यप्रदेश की SC-ST आरक्षित सीटों पर ये दल करेगा बड़ा उलटफेर, कांग्रेस या बीजेपी किसे होगा घाटा?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश की SC-ST आरक्षित सीटों पर ये दल करेगा बड़ा उलटफेर, कांग्रेस या बीजेपी किसे होगा घाटा?

BHOPAL. मध्यप्रदेश में कांग्रेस-बीजेपी दोनों इस बार आदिवासी वोटर्स को साधने की रट लगाए बैठी हैं। जीत के लिए इस वोट बैंक को साधना जरूरी है इसमें कोई शक नहीं। लेकिन इनके चक्कर में घनचक्कर बन रहे सियासी दल एससी और एसटी वोटर्स को ना भूल जाएं। क्योंकि 2023 के चुनावी खेल में सिर्फ 2 टीमें ही मैदान में नहीं है। कुछ नए खिलाड़ी भी  किस्मत आजमाने वाले हैं। ये तो तय है कि 2023 की चुनावी ट्रॉफी उनके हाथ नहीं लग सकेगी। लेकिन इस खेल के किसी एक पुराने खिलाड़ी और ट्रॉफी की राह में रुकावट जरूर बन जाएंगे। प्रदेश की 80 से ज्यादा सीटें एससी और एसटी मतदाताओं के नाम हैं। इतनी सीटें काफी हैं हार को जीत में या जीत को हार में बदलने के लिए।



चंद्रशेखर रावण की मध्यप्रदेश में एंट्री



उत्तरप्रदेश में बसपा की नाक में दम करने वाला चंद्रशेखर रावण मध्यप्रदेश में एंट्री ले चुका है। चंद्रशेखर की भीम आर्मी ने उत्तरप्रदेश से ज्यादा बड़े कारनामे मध्यप्रदेश में कर दिखाए हैं। एक तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के हितैषी बन चुके हैं। दूसरा राजधानी भोपाल में इतना बड़ी महासभा कर चुके हैं कि उनके आगे ओबीसी महासभा और जयस सब छोटी पड़ती नजर आ रही हैं। करणी सेना ने जरूर टक्कर का मुकाबला दिया था, लेकिन विवाद जुड़ने के बाद करणी सेना को बैकफुट पर भी जाना पड़ा। जबकि भीम आर्मी ने बिना किसी विवाद के जबरदस्त सभा की। सरकार के सामने कुछ मांगें रखीं जिनके पूरा ना होने पर एक बार फिर उतना ही बड़ा आंदोलन करने की चेतावनी भी दे डाली।



मध्यप्रदेश में चुनावी हुंकार क्यों भर रहे अन्य संगठन?



क्या ये संभव है कि जो संगठन पहले मध्यप्रदेश में ना के बराबर नजर आए वो अचानक इस लेवल पर आंदोलन कर सकें। सरकार की नाक में दम कर सकें और पॉलिटिकल पार्टियों की नींद उड़ा सकें। बहुत आसान तो नहीं है। तो, क्या इन संगठनों को अपने लिए मध्यप्रदेश में इतनी मजबूत जमीन नजर आने लगी है कि वो यहां चुनावी हुंकार भर रहे हैं। वो भी एक या दो सीटों पर नहीं पूरे 230 विधानसभा सीटों पर। दूसरी सीटों पर ये संगठन क्या गुल खिलाएंगे ये कहना मुश्किल है। पर, उन सीटों पर असर जरूर डालेंगे जहां एससी-एसटी मतदाताओं की भरमार है।



किस दल का होगा ज्यादा नुकसान?



अब सवाल ये है कि नुकसान किस दल का ज्यादा होगा। कांग्रेस का या बीजेपी का। 2018 के चुनाव से पहले तक ये माना जा सकता था कि नुकसान बीजेपी को ज्यादा होता। क्योंकि एससी और एसटी की ज्यादा सीटों पर बीजेपी ही काबिज थी, लेकिन 2018 ने बाजी को पलटा और आंकड़े काफी हद तक उलट-पुलट हो गए। अब आंकड़ों की बाजीगरी कुछ ऐसी है कि नफा-नुकसान का आंकलन बहुत आसान नहीं है। आप भी इन आंकड़ों पर थोड़ा गौर कीजिए। जिन्हें देखकर ये कहा जा सकता है कि 2003 से लेकर 2013 के चुनाव तक सपाट फिल्म चलती जा रही थी, लेकिन 2018 में इस सियासी फिल्म में अचानक जबरदस्त ट्विस्ट आ गया। यही वो टविस्ट है जिसकी वजह से कुछ नए कलाकार इस फिल्म का हिस्सा बन गए। जो एक दल के लिए नायक होंगे तो दूसरे दल के लिए खलनायक।



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चंबल-बुंदेलखंड में भी जोर-आजमाइश



चुनावी मैदान में इस बार चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी के अलावा जयस, ओबीसी महासभा भी दम दिखा रही हैं। चंबल-बुंदेलखंड में इन पार्टियों की जोर-आजमाइश जारी है। बड़े दल जहां बड़ी-बड़ी सभाओं के जरिए शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। वहां ये दल हर बार जलसेनुमा सभाओं की जगह जमीनी स्तर पर लोगों से मुलाकात कर रहे हैं। इनकी इंटरनल सर्जरी का आने वाले चुनाव में कुछ तो असर जरूर नजर आएगा।



चंद्रशेखर रावण ने भोपाल में दिखाया जबरदस्त जलवा



इन सभी क्षेत्रीय दलों में भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर रावण ने भोपाल में जबरदस्त जलवा दिखाया है। उनकी आमद खासतौर से एससी और एसटी सीटों के समीकरण जरूर बिगाड़ेगी। वैसे भी 2018 के बाद से ये समीकरण दिलचस्प मोड़ ले चुके हैं। 2018 का चुनाव बीच में नहीं होता, तो ये दावे के साथ कहा जा सकता था कि भीम आर्मी के आने से बीजेपी को खासा नुकसान हो सकता है। लेकिन 2018 ने इलेक्शन एनलिस्ट को भी मुश्किल में डाल दिया है। मध्यप्रदेश में एसटी की आबादी 21 फीसदी जबकि एससी की आबादी 16 प्रतिशत है। प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लिए 47 और अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। यानी राज्य की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कुल जाति के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। यानी राज्य की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कुल आरक्षित सीटों की संख्या 82 हैं। 2018 में बीजेपी ने इन 82 सीटों में से 26 सीटें गंवा दी थीं। उसे एसटी की 16 और एससी की 11 सीटों पर जीत मिली थी। जो 2013 के मुकाबले 15 और 11 कम रहीं। कांग्रेस को आरक्षित सीटों पर 2013 के मुकाबले 2018 में 28 सीटों का फायदा हुआ था। कांग्रेस की एसटी की 29 और एससी की 11 सीटों पर जीत हुई थी।



पिछले चुनाव में बीजेपी को हुआ नुकसान



पिछले चुनाव में बीजेपी को एसीसी और एसटी सीटों दोनों पर नुकसान हुआ। यानी पिछले चुनाव में बीजेपी का वोटर पहले ही कांग्रेस के पास चला गया। अब इस चुनाव में वो वोटर बीजेपी को वोट देने की नीयत से निकलता या कांग्रेस को ये समझ पाना मुश्किल है और अब तो इस तबके के वोटर्स के पास एक विकल्प और आ गया है। मुश्किल हुए इस चुनावी आंकलन की गुत्थी सुलझने के लिए संभवतः 2023 के चुनावी नतीजों तक इंतजार करना पड़े।



बीजेपी और कांग्रेस के सामने चुनौती



इस तबके को रिझाने के लिए चंद्रशेखर रावण ने हर तरह का लुभावना वादा किया है। 52 फीसदी आरक्षण से लेकर कॉरपोरेट संपत्ति को सरकारी संपत्ति में तब्दील करने तक उनका हर वादा खासतौर से इस वर्ग के लिए है। जबकि बीजेपी कांग्रेस इस तरह खुलकर सिर्फ एक वर्ग को साधने की हिमाकत नहीं कर सकते। क्योंकि, एक को मनाया तो दूजा रूठ जाएगा। चंद्रशेखर सहित दूसरे क्षेत्रीय दलों के नेता जितना खुलकर इन तबकों के बीच खेल सकते हैं, उतना खेल पाना कांग्रेस-बीजेपी के लिए मुश्किल है। चुनौती है इन दलों के हाथों अपने वोट कटने से बचाना।


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