BHOPAL.मध्य प्रदेश की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच राजनीतिक अदावत जगजाहिर है। महाकाल के नाम पर दोनों ने एक-दूसरे पर शब्दों के तीखे तीर चलाकर इसमें एक और अध्याय जोड़ दिया है। इस बार भी शुरुआत दिग्विजय सिंह ने ही की है। उन्होंने उज्जैन में मीडिया के सामने निशाना साधते हुए कहा- 'हे महाकाल, कांग्रेस में कोई दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया पैदा ना हो।' इस पर सिंधिया ने सोशल मीडिया पर पलटवार करते हुए लिखा- 'हे प्रभु महाकाल, कृपया दिग्विजय सिंह जी जैसे देश-विरोधी और मध्यप्रदेश के बंटाधार, भारत में पैदा न हो।' राजघराने से राजनीति में आए इन दोनों क्षत्रपों के बीच अदावत की जड़ें बहुत गहरी और पुरानी है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है। आइए आपको बताते हैं सिंधिया रियासत और राघौगढ़ राजघराने के वंशजों के बीच अदावत के अतीत की कहानी।
1802 में दोनों राजघरानों में ऐसे शुरू हुई अदावत
दोनों घरानों के बीच दुश्मनी दो शताब्दी से भी ज्यादा पुरानी है। बताया जाता है कि साल 1802 में ग्वालियर रियासत के महाराज दौलतराव सिंधिया ने राघोगढ़ रियासत के सातवें राजा जय सिंह को हरा दिया था। इसके बाद राघोगढ़ राजघराना ग्वालियर रियासत के अधीन आ गया। दोनों राज परिवारों के रिश्तों में खटास की शुरुआत यहीं से मानी जाती है। राजनीति में भी सिंधिया परिवार और दिग्विजय के रिश्ते ऐसे ही रहे हैं। ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया भी दिग्विजय को अपना राजनीतिक दुश्मन मानते थे। इसके बावजूद उनकी मौत के बाद जब ज्योतिरादित्य ने राजनीति में एंट्री ली तो दिग्विजय ने उन्हें खुला समर्थन दिया था और तराशा हुआ हीरा बताया था।
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राजनीति में सिंधिया से पहले आया राघोगढ़ राजपरिवार
देश आजाद होने और देशी रियासयों के विलय के बाद राघोगढ़ राजघराने ने राजनीति में पहले कदम रखा। 1951 में राघोगढ़ रियासत के तत्कालीन राजा और दिग्विजय सिंह के पिता बलभद्र सिंह ने चुनाव लड़ा और वे जीत भी गए। दूसरी ओर सिंधिया घराना 1957 में राजनीति में आया। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र से चुनाव में उतरीं। उनके बाद राजमाता की सरपरस्ती में 1971 उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने भी राजनीति में कदम रखा। दिग्विजय सिंह ने भी 1971 में राजनीति में कदम रखा और चुनाव जीत गए। 1966 में बस्तर के राजा की हत्या के बाद विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़ जनसंघ में शामिल हो गईं। 1971 में ही ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया भी राजनीति में उतर आए।
1993 में दिग्विजय ने लिया बदला
सिंधिया घराने और दिग्विजय के बीच अदावत का एक बड़ा कारण मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद रहा है। बात उस दौर की है, जब राजमाता सिंधिया जनसंघ की प्रभावशाली नेता थीं और माधवराव इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी से दोस्ती के चलते कांग्रेस में लगातार आगे बढ़ रहे थे। मप्र में 1993 में कांग्रेस की सरकार बनते समय माधवराव सीएम पद के दावेदार थे। पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल और कांग्रेस नेता सुभाष यादव भी उनके समर्थन में थे। खुद माधवराव सिंधिया भी इस बारे में कांग्रेस हाई कमान के सामने अपनी इच्छा जता चुके थे। लेकिन दिग्विजय सिंह अपने राजनीतिक गुरू और प्रदेश कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले अर्जुन सिंह की मदद से बाजी मारने में सफल रहे। माधवराव खुद मुख्यमंत्री नहीं बन पाने से जितने दुखी थे, उससे कहीं ज्यादा दुख उन्हें दिग्विजय को यह कुर्सी मिलने से हुआ था। वे यह नहीं पचा पा नहीं पा रहे थे कि उनकी रियासत के अधीन किसी जागीर का कोई पूर्व राजा पूरे प्रदेश पर राज करे। उन्हें मरते दम तक इस बात का मलाल रहा। दिग्विजय के मप्र के मुख्यमंत्री बनने पर राज्य की सियासत में कहा जाने लगा कि राघोगढ़ राजघराने ने ग्वालियर राज परिवार से अपनी पुरानी हार का बदला ले लिया।
दिग्विजय पर कभी भरोसा नहीं करते थे माधवराव
एक ही पार्टी में रहने के बाद भी माधवराव सिंधिया कभी दिग्विजय सिंह पर भरोसा नहीं करते थे। हालांकि ये बात अलग है कि वे खुलकर इस बारे में कभी नहीं बोलते थे। दिग्विजय सिंह भी सिंधिया परिवार को पटकनी देने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे, लेकिन आमना-सामना होने पर सिंधिया राजघराने के किसी भी सदस्य के सम्मान में कभी कोई कमी नहीं रखते थे। लेकिन इन दोनों क्षत्रपों की अदावत के चलते कांग्रेस सिंधिया गुट और दिग्विजय गुट में बंट गई।
दिग्विजय ने सिंधिया को बताया था ‘तराशा हुआ हीरा’ और खुद को ‘जौहरी’
2001 में पिता माधवराव सिंधिया की प्लेन क्रैश में अचानक मृत्यु के बाद ज्योतिरादित्य ने राजनीति में कदम रखा। तब दिग्विजय ने उनका खुला समर्थन कर दोनों परिवारों के बीच तल्खी कम करने की पहल की। ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद बन गए। साल 2008 में जब ज्योतिरादित्य गुना से लोकसभा के सांसद थे और दिग्विजय उनके संसदीय क्षेत्र में पहुंचे थे। यहां दिग्विजय ने कहा कि ज्योतिरादित्य तो तराशा हुआ हीरा हैं। यह कहते हुए उन्होंने खुद को नगीनों की पहचान करने वाला जौहरी भी बताया था।
2018 में दिग्गी ने दोहराई कहानी
दोनों राजघरानों में 1802 के युद्ध के मैदान से शुरू हुई यह प्रतिद्वंद्विता 2018 में चरम पर पहुंच गई। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद जब मुख्यमंत्री पद के लिए खींचतान शुरू हुई, तो सिंधिया ने यह कहकर दावा ठोंका कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की 34 में से 26 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है। ये सभी उनके समर्थक हैं, लेकिन दिग्गी ने अपने बेटे और पहली बार विधायक चुने गए जयवर्धन सिंह की तस्वीर ट्वीट कर उनके लिए चुनौती पेश कर दी। फोटो में जयवर्धन के साथ कांग्रेस के 31 नवनिर्वाचित विधायक थे। माना जाता है कि दिग्विजय ने इस तस्वीर के जरिए पार्टी आलाकमान को यह संदेश दे दिया कि वे या उनका बेटा मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, लेकिन उनके पास 31 विधायकों का समर्थन है। जबकि सिंधिया के साथ 26 ही विधायक हैं। इससे ज्योतिरादित्य के अरमानों पर पानी फिर गया और दिग्विजय सिंह के समर्थन से कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन सवा साल बाद ही मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और कमलनाथ सरकार गिर गई। सिंधिया समर्थक 22 विधायकों के पाला बदलने से बीजेपी फिर से राज्य की सत्ता पर काबिज होने में सफल हो गई।
संसद में दिग्विजय बोले- वाह जी महाराज वाह!
सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच तल्ख रिश्तों की बानगी 2021 में संसद में भी देखने को मिली। हुआ यूं कि राज्यसभा में 04 फरवरी 2021 को विपक्षी दलों ने तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन के मुद्दे पर मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए आंदोलन से निपटने के तरीके पर सवाल उठाया। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मोदी सरकार का पक्ष रखते हुए कांग्रेस को घेरा, लेकिन जब दिग्विजय सिंह की बोलने की बारी आई तो कुछ ऐसी बातें कही, जिससे पूरा सदन ठहाकों से गूंज गया। उन्होंने कहा- 'सभापति महोदय! मैं आपके माध्यम से सिंधियाजी को बधाई देना चाहता हूं, जितने अच्छे ढंग से वे यूपीए सरकार में सरकार का पक्ष रखते थे, उतने ही अच्छे ढंग से आज उन्होंने बीजेपी का पक्ष रखा है। आपको बधाई हो, वाह जी महाराज वाह, वाह जी महाराज वाह!'
सिंधिया ने हाथ जोड़कर दिग्विजय से कहा- आपका ही आशीर्वाद है
राज्य सभा में दिग्विजय सिंह की इस बात पर मुस्कुराते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाथ जोड़ लिए और जब दिग्विजय की बात खत्म हुई तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, 'सब आपका ही आशीर्वाद है।' इसके बाद राज्यसभा में ठहाके गूंजने लगे। इतना ही नहीं, खुद दिग्विजय सिंह भी मुस्कुराने लगे। ज्योतिरादित्य की यह बात सुन दिग्विजय ने तुरंत कहा- 'हमेशा रहेगा, आप जिस पार्टी में रहें, आगे भी जो हो, हमारा आशीर्वाद आपके साथ था, है और रहेगा।'
दिग्विजय ने सिंधिया को बताया बिकाऊ
दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर 20 अप्रैल 2023 को उज्जैन में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधते हुए कहा- 'बीजेपी ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए राजा महाराजाओं को खरीद लिया, जबकि अनुसूचित जाति जनजाति के गरीब विधायक को खरीद नहीं पाए।' उन्होंने मीडिया से बाताचीत के दौरान कहा- 'हे महाकाल,कांग्रेस में कोई दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया पैदा ना हो।' उन्होंने यह भी कहा कि जब कमलनाथ सरकार को गिराया गया, उस समय राजा महाराजा बीजेपी के हाथों बिक गए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया का पलटवार- दिग्गी है बंटाधार
दिग्विजय सिंह के इस बयान पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पलटवार करते हुए अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लिखा कि 'हे प्रभु महाकाल, कृपया दिग्विजय सिंहजी जैसे देश-विरोधी और मध्यप्रदेश के बंटाधार, भारत में पैदा न हो।' आपको बता दें कि प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर के ‘महाराज’ ज्योतिरादित्य सिंधिया और राघोगढ़ के ‘राजा’ दिग्विजय सिंह के बीच छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। दोनों परिवारों के बीच अदावत ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया के जमाने से ही चली आ रही है। ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोड़ने के पीछे भी कहीं न कहीं दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार बताया जाता है। दशकों से चली आ रही सियासी दुश्मनी के बीच ऐसे मौके बहुत कम आए हैं, जब दोनों ने एक-दूसरे की तारीफ की हो।