BHOPAL. जैन तीर्थ सम्मेद शिखर अब पर्यटन स्थल नहीं बनेगा, देशभर में जैन समुदाय के भारी विरोध के बाद भारत सरकार ने एक दिन पहले यानी 5 जनवरी 2022 को तीन साल पहले जारी अपना आदेश वापस ले लिया। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी नोटिफिकेशन में यहां सभी पर्यटन और इको टूरिज्म एक्टिविटी पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए हैं। सरकार के इस फैसले का सभी जगह स्वागत हो रहा है। संत समुदाय हमेशा इस बात की वकालत करते रहे हैं कि तीर्थ स्थलों को भोग यानी पर्यटन स्थल नहीं बनाना चाहिए ताकि धार्मिक मान्यताएं खंडित न हो। पर 12 ज्योतिर्लिंगो में से एक और मध्यप्रदेश का प्रमुख तीर्थ ओंकारेश्वर को सरकार पर्यटन के रूप में विकसित करने पर तुली हुई है। ऐसे में सरकार के इस प्रोजेक्ट को लेकर दोबारा सवाल खड़े होने लगे हैं।
सम्मेद शिखर और ओंकार पर्वत में अंतर क्यों?
ओंकारेश्वर के ओंकार पर्वत और सम्मेद शिखर का मामला करीब-करीब एक जैसा ही है, जैन तीर्थ सम्मेद शिखर पहाड़ियों पर बना एक मंदिर है, तो वहीं ओंकारेश्वर में ओंकार पर्वत पर विराजमान है ज्योतिर्लिंग, यह पर्वत स्वयंभू ओंकार की आकृति का है जिसके कारण इसे शिव के स्वरूप माना गया है। राज्य सरकार इस जगह पर शंकराचार्य की 108 फीट उंची विशालकाय प्रतिमा स्थापित करने जा रही है, जिस जगह पर प्रतिमा स्थापित होना है, वह ओंकार पहाड़ी ही है। प्रतिमा स्थापना को लेकर विरोध नहीं है, विरोध स्थान को लेकर जहां यह प्रतिमा लगाई जानी है। इसे लेकर ओंकार पर्वत को खोदा जा रहा है। जैन संत आचार्य विद्या सागर महाराज भी इस बात को कह चुके हैं कि केवल सम्मेद शिखर जी ही नहीं बल्कि भारत के सभी तीर्थ क्षेत्र पर्यटन सूची से बाहर किया जाए। ओंकारेश्वर में भैरवघाट स्थित कबीर कुटी आश्रम के मुनींद्र कबीर बाबा ने कहा कि जैनों के लिए जैसा सम्मेद शिखर तीर्थ है, वैसा ही हिंदुओं के लिए ओंकारेश्वर है। केंद्र सरकार को इसकी रक्षा करना चाहिए।
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ओंकार पर्वत की परिक्रमा करने वाले भक्त भटक रहे
स्थानीय लोगों का मानना है कि ओंकार पर्वत पर सिर्फ आदिगुरू शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित नहीं होगी, बल्कि इसे पिकनिक स्पाट की तरह विकसित किया जाएगा। इसके साइड इफेक्ट अभी से सामने आने लगे हैं। आदिगुरू शंकराचार्य प्रोजेक्ट को लेकर काम तेजी से शुरू हो गया है, जिसके कारण ओंकार पर्वत की पैदल परिक्रमा वाला पथ या रास्ता डैमेज हो गया है। पैदल परिक्रमा करने वाले भक्त पथ से भटक रहे हैं। गुवाहाटी के महंत महामंडलेश्वर केशवदास महाराज ने कहा कि सही सरकार यही करती है, अपने गलत निर्णय को सुधारती है। सम्मेद शिखर का निर्णय स्वागत योग्य है। बस इसी प्रकार का निर्णय हम अपने ओंकारेश्वर पर्वत के लिए भी चाहते हैं ताकि यहां की सुचिता भंग न हो। देवास आगरोद के पंचमुखी धाम के कृष्ण गोपालदास महाराज ने कहा कि वास्तव में जब कोई तीर्थ क्षेत्र पर्यटन के रूप में विकसित होता है तो वह पर्यटन की तमाम बुराईयां भी अपने साथ लाता है। ओंकार पर्वत स्वयं शिव स्वरूप है, उसके उपर गाड़ियां जाने लगेगी जो ठीक नहीं है।
हाईकोर्ट में है मामला, इसी माह होना है सुनवाई
लोकहित अभियान समिति की ओर से मामले में पीआईएल यानी जनहित याचिका क्रमांक WP 14654/2022 दाखिल की गई थी। जिसकी सुनवाई 15 दिसंबर को हुई थी, पर सरकार की ओर से पक्ष नहीं आने पर मामला अगली सुनवाई के लिए टल गया। बता दें कि द सूत्र में प्रसारित खबरों के बाद जुलाई में हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई हुई थी। उस दौरान निर्माण पर रोक लगा दी थी, हालांकि बाद में सशर्त निर्माण की अनुमति दी गई। इधर भारत हितरक्षा अभियान के अभय जैन ने कहा कि जैन समुदाय और जैन संतो की एकजुटा और दृढता के कारण सम्मेद शिखर पर्यटन क्षेत्र होने से बच गया, लेकिन ओंकारेश्वर में शिवस्वरूप पर्वत को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है जो गलत है।
शंकराचार्य प्रोजेक्ट के लिए खेले गए अजब गजब खेल
ओंकारेश्वर प्रोजेक्ट के लिए मध्यप्रदेश टूरिज्म बोर्ड ने State Environment Impact Assessment Authority Madhya Pradesh यानी सीआ से इन्वॉयरन्मेंट क्लियरेंस लिया है। प्रोजेक्ट किसी भी हाल में पूरा हो इसके लिए सरकार ने किस तरह से नियमों को ताक पर रखा। इसे इस बात से समझ सकते हैं कि 10 हेक्टेयर की फॉरेस्ट लैंड के मद को परिवर्तित कर नॉन फॉरेस्ट कर दिया गया। एक्सपर्ट के मुताबिक ऐसा होता नहीं है। यदि निर्माण की इजाजत दी भी जाती है तो जमीन फॉरेस्ट की ही होती है। साथ ही ग्रीन बेल्ट को भी कम किया गया तो कैचमेंट की परिभाषा ही बदल दी और तो और ओंकार पहाड़ी पर निर्माण पर रोक थी, इसके लिए एक बिंदु ऐसा जोड़ा गया जिससे कि निर्माण किया जा सके। 2031 के ओमकारेश्वर विकास योजना में नर्मदा के ग्रीन बेल्ट को 30 मीटर कर दिया, जबकि जंगल वाले इलाके में नर्मदा का ग्रीन बेल्ट शहरी क्षेत्र में 50 मीटर और ग्रामीण क्षेत्र में 500 मीटर से कम नहीं होता है।
ओंकारेश्वर सिस्मिक जोन में, पर नहीं ली एनओसी
इसी में परमीशन प्रतिमा की ऊंचाई 197 फीट की ली गई थी, लेकिन 108 फीट की लगाई जा रही है। दरअसल नर्मदा वैली सिस्मिक जोन यानी भूकंप क्षेत्र में आती है और यहां पहले भी झटके महसूस किए गए हैं। होल्कर कॉलेज इंदौर के रिटायर्ड प्रोफेसर नरेंद्र जोशी के अनुसार ओंकारेश्वर में कोई भी बड़ा, भारी और गहरा निर्माण कार्य भूकंप के दृष्टि से ठीक नहीं है। इससे खतरा और बढ़ेगा। प्रतिमा की उंचाई में आई कमी को पर्यावरणविद भूकंप की इसी संभावना से जोड़कर देखते हैं। सुभाष पांडे ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए सिस्मिक क्लियरेंस से संबंधित कोई एनओसी नहीं ली गई है।
2500 करोड़ का नया प्रोजेक्ट, पर मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान न देना कितना सही?
सरकार 2500 करोड़ का नया प्रोजेक्ट तो ले आई, पर ओंकारेश्वर में हर साल जो लाखों भक्त पहुंचते हैं उनके लिए सुविधाएं न के बराबर है, यही लोगों के लिए गुस्से का कारण है। भारत हित रक्षा अभियान के विशाल बिंदल कहते हैं कि ब्रह्मपुरी घाट, नागरघाट, ओंकार घाट बेहद गंदे हैं, क्या इन्हें पहले नहीं सुधारा जाना चाहिए। भारत भर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं, वे क्या छवि लेकर जा रहे होंगे। ओंकार घाट पर ढाई लाख लीटर, जेपी घाट ढाई लाख लीटर, बालवाड़ी में डेढ़ लाख लीटर और झूला पुल के पास 5 लाख लीटर क्षमता का ट्रीटमेंट प्लांट है। पर इससे कही ज्यादा गंदगी आती है, ऐसे में जेपी चौक वाले पुल के पास जैसी तमाम जगहों से नर्मदा में गंदगी मिल रही है, ये कितना ठीक है। सात किमी परिक्रमा पथ पर शासन द्वारा एक भी पीने की पानी की व्यवस्था या ठहरने की व्यवस्था नहीं की गई है, इक्का-दुक्का होगी भी तो बंद पड़ी है।