BHOPAL. बचपन में एक कहानी आपने खूब सुनी होगी भेड़िया आया भेड़िया आया। ये भेड़िया दरअसल पूरी कहानी में आता ही नहीं है और आखिर में जब वाकई में आ जाता है तब लोग उसे सीरियसली नहीं लेते। खामियाजा भुगतता है वो बंदा जो हर बार भेड़िए के नाम की गीदड़ भभकी देकर लोगों को डराया करता था। अब आप जरूर ये सोच सकते हैं कि बीजेपी से शुरू हुई बात भेड़िये की पुरानी कहानी तक कैसे आ गई। आने की वजह वाजिब है। ये भेड़िया कोई और नहीं बीजेपी की वो सर्वे और परफोर्मेंस रिपोर्ट है जिसके आने का हल्ला तो बहुत बार होता है, लेकिन रिपोर्ट अब तक सबके सामने आ नहीं सकी है और न ही उस रिपोर्ट के बेसिस पर अब तक कोई फैसला लिया गया है। अब हाल ये है कि भेड़िया बन चुकी रिपोर्ट का इंतजार करते-करते कार्यकर्ता फिर थक चुका है। जिसकी नाराजगी का डर पहले ही बीजेपी को बहुत है। बीजेपी कोई ठोस कदम तो अब तक उठा नहीं सकी। पर, कार्यकर्ता को मनाने के लिए लीपापोती की प्लानिंग जरूर कर सकती है।
सर्वे का मकसद, सही उम्मीदवार कौन
चुनाव से पहले तकरीबन हर पार्टी इंटरनल सर्वे करवाती हैं। इन सर्वे का मकसद ये जानना होता है कि किस क्षेत्र में टिकट देने के लिए मुफीद उम्मीदवार कौन हो सकता है। क्या उसी सदस्य को दोबारा टिकट दिया जाना चाहिए जो पिछला चुनाव जीत या हार चुका है। या, किसी नए चेहरे पर दांव खेला जाना चाहिए। इन तमाम सवालों का जवाब जमीनी स्तर पर कराए गए सर्वे से ही मिलता है। इस बार बीजेपी ने इस सर्वे में एक नया प्वाइंट और जोड़ दिया था। वो ये कि इस बार हर मंत्री और विधायक के काम का आंकलन उसके डिजिटल परफोर्मेंस से होगा।
एक बार फिर कार्यकर्ताओं में बढ़ी निराशा
फेसबुक और ट्वीटर पर फॉलोअर्स की संख्या तय करेगी कि मंत्री और विधायक अपने-अपने क्षेत्र में कितने एक्टिव हैं और संबंधित सदस्य को टिकट फिर से देना है या नहीं। खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान ये ऐलान कर चुके हैं कि रिपोर्ट उनके पास आ चुकी है। जिस पर कार्रवाई कभी भी हो सकती है। इन सर्वे के आधार पर अंडर परफार्मर मंत्री और विधायकों की तकदीर का फैसला कब का हो जाना चाहिए था। अब तक रिपोर्ट आई रिपोर्ट आई का शोर तो कई बार हुआ, लेकिन रिपोर्ट भी नहीं आई और न ही ऐसी कोई कार्रवाई हुई जिसे देखकर कार्यकर्ता इत्मीनान कर सके। अब एक बार फिर कार्यकर्ताओं की निराशा और नाराजगी बढ़ती जा रही है। न सिर्फ कार्यकर्ता बल्कि चुनावी जानकारों का भी ये मानना है कि बीजेपी को कहीं फैसला लेने में देरी का खामियाजा न भुगतना पड़े।
एंटीइंकंबेंसी तो विकास यात्रा में ही दिखाई दे गई
चुनाव में बमुश्किल सात महीने का समय है। इतने समय में बीजेपी को सही उम्मीदवार को चुनकर एंटीइंकंबेंसी को कम करना है और रूठे कार्यकर्ता को भी मनाना है। एंटीइंकंबेंसी का आलम क्या है ये तो विकास यात्रा के दौरान ही दिखाई दे गया। तकरीबन 23 विधायकों की सीट पर मतदाताओं की नाराजगी की झलक दिखाई दी। बीजेपी इसे नजरअंदाज कर भी दे, लेकिन कार्यकर्ताओं के गुस्से का क्या करेगी। वैसे चुनावी जीत के मामले में कार्यकर्ता को भगवान मानने वाली पार्टी उन्हें ज्यादा दिन नाराज रख नहीं सकती। सो अब ऐसी युक्ति खोज निकाली है कि नाराजगी का सांप भी मर जाएगा और शायद चुनावी जीत की लाठी को भी बचा ले जाएंगे। पर सियासी गलियारों में जिस जुगत की चर्चा है उसे आजमा कर क्या बीजेपी का नया ऑपरेशन सिर्फ लीपापोती महज नजर नहीं आता।
बीजेपी ने डर दिखाया पर नतीजे अनुकूल नहीं दिखे
विकास यात्रा करवाई तो इसलिए गई थी कि मंत्री विधायक इसी बहाने निकलकर अपनी जनता तक पहुंचेंगे, लेकिन जो नजारा दिखा उसने बीजेपी का सिरदर्द और बढ़ा दिया है। कई सीटों पर विधायकों का इस कदर विरोध नजर आया कि जनता ने उन्हें उल्टे पांव लौटा दिया। नतीजा ये हुआ कि आम मतदाता की नाराजगी खुलकर सामने आ गई। विपक्ष को एक नया मौका मिल गया और कार्यकर्ता को गुस्सा दिखाने का एक नया बहाना मिल गया। बीजेपी ने कोशिश खूब की कि ज्यादा ब्रेन स्ट्रॉर्मिंग कर नए चेहरे तलाशने की जगह पुरानों को ही फील्ड में एक्टिव किया जा सके। इसके लिए पापड़ भी बहुत बेले गए। कभी सर्वे का डर दिखाया गया, कभी टिकट कटने का डर दिखाया गया, इसके बावजूद नतीजे फेवरेबल नहीं दिखे। कांग्रेस ने तो विकास यात्रा के बाद ये ऐलान ही कर दिया कि 172 सीटों पर बीजेपी को विरोध झेलना पड़ा।
विकास यात्रा की रिपोर्ट भी आलाकमान को सौंपी जाएगी
विरोध के दावे कितने सच्चे और झूठे हैं वो तो कहा नहीं जा सकता। पर, इतना जरूर है कि विरोध की चिंगारी एक बार फिर कार्यकर्ताओं के गुस्से को भड़का गई। जिन्हें शांत कराने के लिए ये दिलासा भी दी गई कि विकास यात्रा के बाद जो स्थिति नजर आई है उस पर भी रिपोर्ट तैयार हो रही है। जिसकी जानकारी आलाकमान को सौंपी जाएगी और फिर फैसला होगा।
नॉन परफॉर्मिंग चेहरा बदलना सिर्फ लीपापोती न रह जाए
कार्यकर्ताओं को इस बात का बेसब्री से इंतजार है कि उनके क्षेत्र का नया चेहरा कौन होगा, ये अंदाजा लगाया जा सके। कई स्थानों पर पुराने मंत्री और विधायकों के लिए कार्यकर्ताओं में जबरदस्त नाराजगी है। ऐसे सीटों पर अब कार्यकर्ताओं के गुस्से को कम करने की जुगाड़ ढूंढ ली गई है। हाल ही में हुई कोर कमेटी की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई। कार्यकर्ताओं की नाराजगी से डरी बीजेपी इस नतीजे पर पहुंची कि मंत्रियों के प्रभार वाले जिले बदल दिए जाएं। इस बैठक में ये कहा गया कि कार्यकर्ताओं की भावना का ख्याल रखना जरूरी है इसलिए मंत्रियों के प्रभार वाले जिले बदल दिए जाने चाहिए। अब सवाल ये है कि जो कार्यकर्ता अब तक इस इंतजार में था कि नॉन परफॉर्मिंग चेहरे को हटाकर उनके क्षेत्र में नया चेहरा लाया जाएगा। वो कार्यकर्ता इस फेरबदल से खुश होगा या ये फैसला सिर्फ लीपापोती बनकर रह जाएगा।
बीजेपी फिलहाल कोई रिस्क नहीं लेना चाहती
इंतजार था परफोर्मेंस रिपोर्ट के आधार पर मंत्रिमंडल में फेरबदल का। कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि जिनकी रिपोर्ट खराब है उन्हें ताकीद कर दिया जाएगा या उनकी सीट पर अघोषित रूप से नया चेहरा लॉन्च कर दिया जाएगा। चुनाव में सिर्फ सात महीने का समय रह गया है और बीजेपी अब तक किसी नतीजे पर पहुंच ही नहीं सकी है। एक तरफ फैसला लेने में देरी है और दूसरी तरफ कार्यकर्ताओं की नाराजगी का डर भी है।
बड़ा सवालः क्या डरी सहमी बीजेपी जिस जुगाड़ की फिराक में है उससे कार्यकर्ताओं के गुस्से को ठंडा कर सकेगी?