जीवन में जरूरी है "सेहत से संवाद"

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जीवन में जरूरी है "सेहत से संवाद"

प्रवीण कक्कड़। वर्ष 2021 अपने अंतिम सप्ताह में है। अच्छी बुरी तमाम बातें जल्द ही स्मृति का हिस्सा बन जाएंगी। कुछ नए संकल्प जीवन में आएंगे। उनमें जो सबसे पहला संकल्प हो सकता है, वह है अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना। क्योंकि बहुत पुरानी कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। आज के समय में हम सब को भी स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। सिर्फ इसलिए नहीं कि दुनिया इस समय एक वैश्विक महामारी से जूझ रही है, बल्कि इसलिए भी कि हमारी जीवनशैली ऐसी हो गई है, जिसमें शरीर का ख्याल कहीं पीछे छूटता जा रहा है।

परंपरागत भोजन ज्यादा से​हतमंद

हम जीवन में अपना सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन तब कर पाते हैं, जब हम स्‍वस्‍थ हैं। ऐसे में सेहत से संवाद करना आज की महती जरूरत है। आज के दौर में भागदौड़, प्रतिस्‍पर्धा और सामाजिक ताने-बाने में हमारी सेहत पीछे छूटती चली जा रही है।कभी हम सोचते हैं कि सुबह उठकर दौड़ लगाएंगे तो कभी हम सोचते हैं मोटापा कम करने के लिए डाइटिंग शुरू कर देंगे। डाइटिंग से हमारा वजन तो कम हो जाता है, लेकिन शरीर से ऊर्जा चली जाती है। हमारे शरीर को सही मात्रा में कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, फैट और फाइबर की जरूरत होती है। बस निर्धारित करना है अपने शरीर और रूटिन के साथ इनके सामंजस्‍य को। असल में यह सारी बातें समझने के लिए हमें बहुत बड़ा डॉक्टर या खानपान विशेषज्ञ होने की जरूरत नहीं है। अगर हम अपने व्यस्त समय में से कुछ समय भी उस तरह से जी लें जैसा कि मनुष्य पारंपरिक रूप से जीता था तो हम अपने स्वास्थ्य पर बहुत बड़ा उपकार कर सकते हैं। सबसे पहले भोजन की बात ही लेते हैं। अगर हम सिर्फ वैसा ही पारंपरिक खाना खाएं जैसा कि उत्तर भारत और मध्य भारत में खाया जाता था तो उससे हमारे शरीर की बहुत सी आवश्यकताएं जिनमें माइनर मिनिरल्स भी शामिल हैं पूरी हो सकती हैं। हमारे यहां सब्जी में जो बघार लगाया जाता है, उसमें राई, सरसों, हल्दी, प्याज, जीरा जैसी छोटी-छोटी चीजों का इस्तेमाल होता है, जिन पर हमारा ध्यान वैसे नहीं जाता। असल में इनमें से ज्यादातर चीजें हमारे शरीर में माइनर मिनिरल्स और कुछ विटामिंस की पूर्ति करने के लिए हमारे पुरखों ने खाने का अभिन्न अंग बनाई थी।  

शरीर को न बनाएं आलसी

इसी तरह घर के छोटे-छोटे कामों में हाथ बंटाना हमारे शरीर को लचीला बनाता है। सब्जी काटना, रोटी बेलना, कपड़े हाथ से फटकारना या धोना, पालथी मारकर बैठना, शंख बजाना यह सब ऐसी चीजें हैं जो हमारे शरीर को सहज रूप से स्वस्थ रहने में मदद करती हैं। अक्सर हम इन सब कामों को घर पर आने वाले घरेलू सहायक या सहायिका के भरोसे छोड़ देते हैं और बच्चों को भी ऐसे संस्कार देते हैं कि वह घरेलू काम को करना नौकर वाला काम समझते हैं। असल में यह नौकर वाला काम नहीं है, अपने शरीर को तंदुरुस्त बनाए रखने वाला काम है। इसीलिए हम सबकी जिम्मेदारी है कि अपने शरीर को आलसी बनाने के बजाय थोड़ा बहुत कामकाज में व्यस्त रहने दें। बागवानी और दूसरे काम भी इसमें खासे मददगार हो सकते हैं। भोजन का अनुशासन एक दूसरी चीज है जो हमारे शरीर को बहुत स्वस्थ बनाए रखती है। खाने के मामले में खाने की गुणवत्ता से भी अधिक महत्वपूर्ण उसकी टाइमिंग होती है। अगर हम अव्यवस्थित रूप से भोजन करते हैं और समय के पाबंद नहीं होते हैं तो इससे हाजमा खराब होता है। आजकल ज्यादातर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पेट के विकार से ही उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए साल के इस अंतिम सप्ताह में हम इन बातों पर ध्यान करें और जहां तक जो संभव हो सके वह सुधार लाने की कोशिश करें।

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