News Strike : सूपड़ा साफ होने के बाद Congress में बड़ी सर्जरी की तैयारी, इन तीन कामों पर होगा खास फोकस !

नेशनल लेवल पर कांग्रेस ने जो करिश्मा कर दिखाया है, वो जादू MP में कहीं दिखाई नहीं दिया। नतीजों से पहले तक जो रिपोर्ट सुनने को मिल रही थीं, उसके मुताबिक कांग्रेस दो से तीन सीटें जीतती दिखाई दे रही थी, लेकिन जैसे-जैसे नतीजे सामने आते गए वो चौंकाते गए।

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Marut raj
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हरीश दिवेकर, भोपाल. न बड़े नेता, न दमदार नेता, अंदर ही अंदर सुलग रही विरोध की चिंगारी- इन हालातों से जूझ रही मध्य प्रदेश कांग्रेस में अब बड़ी सर्जरी करने की तैयारी है। इस सर्जरी का खामियाजा कौन भुगतेगा , इससे पहले गौर करने वाली बात है कि इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मध्यप्रदेश से पूरी तरह साफ हो चुकी है। 2019 में मोदी की आंधी में बची एक मात्र सीट छिंदवाड़ा भी इस बार हाथ से निकल चुकी है।

दिग्विजय सिंह और कांतिलाल भूरिया जैसे धुरंधर भी चुनाव हार चुके हैं। हालात फिलहाल इतने खराब हैं कि कांग्रेस के पास जमीनी स्तर पर भी मजबूत नेटवर्क नहीं है। ऐसे में सर्जरी होगी भी तो किस की होगी और किस बिनाह पर होगी।

राहुल गांधी ने जबरदस्त तरीके से किया बाउंसबैक 

ये यात्राओं का असर कहें या फिर स्थानीय मुद्दों पर बने रहने की कवायद, रणनीति जो भी रही हो, इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी ने इस बार जबरदस्त तरीके से बाउंसबैक किया है।

न स्पीच देते हुए हुई उनकी जुबान लड़खड़ाई, न पत्रकारों से मुखातिब होने पर उन्होंने कोई उलझलूल सा बयान दिया। न मंदिर मस्जिद की राजनीति में उलझे। बल्कि बीजेपी अब तक जिन बातों को उनकी कमजोरी बताती रही उन्हीं को अपनी स्ट्रेंथ बनाकर राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा। नतीजा, ये हुआ कि विपक्ष विहीन लोकसभा को इस बार एक मजबूत विपक्ष मिलने जा रहा है। अकेले कांग्रेस 99 सीट जीत चुकी है। इसमें निर्दलीयों का साथ मिलने के बाद ये आंकड़ा अब बढ़ता ही जा रहा है।

ताज्जुब की बात ये है कि नेशनल लेवल पर कांग्रेस ने जो करिश्मा कर दिखाया है, वो जादू मध्यप्रदेश में कहीं दिखाई नहीं दिया। नतीजों से पहले तक जो रिपोर्ट सुनने को मिल रही थीं, उसके मुताबिक कांग्रेस दो से तीन सीटें जीतती दिखाई दे रही थी। लेकिन जैसे जैसे नतीजे सामने आते गए वो चौंकाते गए।

कांग्रेस ने छिंदवाड़ा तो गंवाया ही, इसके साथ ही दिग्विजय सिंह, कांति लाल भूरिया जैसे दिग्गजों की सीट के नतीजे भी हैरान करने वाले रहे। इसके बाद से कांग्रेस में फिर बदलाव के स्वर बुलंद हो रहे हैं। सबसे पहली मुश्किल बढ़ी है जीतू पटवारी की, जिन्हें अध्यक्ष पद मिला विधानसभा चुनाव के बाद। हालांकि, वो खुद अपनी सीट से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। 

यह भी गौरतलब है कि उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए ज्यादा तैयारी करने का कोई वक्त नहीं मिला। दूसरी तरफ बीजेपी लगातार कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश करती रही। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का नेटवर्क भी कमजोर ही रहा। इसका खामियाजा सीधे जीतू पटवारी को भुगतना पड़ रहा है। जिनका विरोध उनकी ही पार्टी में जारी है।

जीतू पटवारी पर लग रहे ये इल्जाम

पीसीसी चीफ जीतू पटवारी के लिए उन्हीं की पार्टी के कई नेता दबी जुबान में ये कह रहे हैं कि वो अब तक युवा कांग्रेस की कार्य शैली से बाहर नहीं निकल सकें। उन पर दूसरा इल्जाम ये है कि वो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज कर रहे हैं। हालांकि, सवाल पूछे जाने पर कांग्रेस में एकजुटता दिखाने की कोशिश पूरी हो रही है।

हाल ही में सज्जन सिंह वर्मा ने जीतू पटवारी के लिए कहा कि चार महीने में किसी के कार्यकाल का आंकलन नहीं किया जा सकता। नतीजे जो भी आए हैं वो सामूहिक जिम्मेदारी है। कांग्रेस विधायक और दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन ने भी जीतू पटवारी को और समय मिलने की हिमायत दी है।

हालांकि, कांग्रेस नेता अजय सिंह के तेवर सख्त हैं। उन्होंने कहा कि जब उनके नेता प्रतिपक्ष रहते पार्टी का परफार्मेंस कमजोर रहा था तो उन्होंने इस्तीफा दिया था। अब इतनी बुरी हार मिली है तो जिम्मेदारी तय होना चाहिए। केंद्रीय नेतृत्व को इस पर फैसला करना चाहिए।

 कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता कृपाशंकर शुक्ला ने किसी नेता का नाम तो नहीं लिया, लेकिन ये जरूर कहा कि कांग्रेस में कुछ जयचंद जरूर हैं, जिनकी वजह से कांग्रेस को नुकसान हुआ है। जयचंद वाले मामले पर अब कांग्रेस भी संजीदा ही नजर आ रही है, जो लोकसभा में हार के कारणों पर गंभीरता से विचार कर रही है।

दगाबाजी करने वालों की रिपोर्ट तैयार

पार्टी से दगाबाजी करने वाले कार्यकर्ता और नेताओं की रिपोर्ट भी तैयार की गई है। इस रिपोर्ट के बेसिस पर प्रदेश में बड़ी सर्जरी की तैयारी है। नॉन परफोर्मिंग कांग्रेसियों को खुद पार्टी अब साइडलाइन करने वाली है। इसके साथ ही पार्टी के लिए जी जान लगाने वाले नेता औऱ कार्यकर्ताओं को उनकी मेहनत का फल देने और कद बढ़ाने की तैयारी है। हालांकि, इस पूरी कवायद के सूत्रधार जीतू पटवारी नहीं होंगे। आलाकमान के दरबार से सर्जरी की पूरी रणनीति तय होगी। 

बार बार चुनाव हार रही कांग्रेस में फीडबैक का सिस्टम भी शुरू होने वाला है। इसके तहत अब कार्यकर्ताओं से हार के कारणों पर चर्चा होगी। इन कारणों को जानने के लिए कांग्रेस ने बकायदा एक नौ सदस्यीय कमेटी भी बनाई है। इसमें बाला बच्चन सहित सोहन लाल वाल्मीकि, फूल सिंह बरैया, झूमा सोलंकी, नारायण, प्रदीप अहिरवार समेत नौ लोग शामिल हैं। ये जानकारी जुटा रहे हैं कि पार्टी कहां कहां कमजोर हो रही है। 

आलाकमान के लेवल से लगाम खिंची गई है तो कांग्रेस का हर तबका एक्टिव हो रहा है। युवा कांग्रेस भी हार के कारणों पर खुद चर्चा कर रही है।

महिला कांग्रेस में भी मंथन

महिला कांग्रेस को भी अवॉइड नहीं किया गया है। महिला कांग्रेस में इस बात पर मंथन जारी है कि वो किस तरह ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जोड़ कर कांग्रेस को मजबूत बना सकती हैं। गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में महिलाओं से जुड़ी योजनाएं ही असल गेमचेंजर साबित हुई थीं। प्रदेश में महिला मतदाताओं की गिनती भी लगातार बढ़ रही है। लिहाजा कांग्रेस में महिला कांग्रेस को हर जिले पर बैठक करने के निर्देश दिए जा चुके हैं।

पर, सवाल यहां ये है कि क्या इतना ही काफी है। कांग्रेस क्या इस ढर्रे पर चलकर प्रदेश में गहरी पैठ जमा चुकी बीजेपी से निपट सकती है। लोकसभा चुनाव में राजगढ़ से ही दिग्विजय सिंह का हारना ये जाहिर करता है कि कांग्रेस अपने गढ़ में ही अपनी सीट नहीं बचा पा रही है।

छिंदवाड़ा की तो खैर बात ही क्या की जाए। उस एक सीट को हड़पने में बीजेपी ने पूरी ताकत झौंक दी थी। इसका नतीजा ये हुआ कि छिंदवाड़ा जिले की विधानसभा सीट के कुछ विधायक औऱ कमलनाथ के विश्वासपात्र नेता तक बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। अटकलें तो खुद कमलनाथ के नाम की भी लगने लगी थीं। ये बात हकीकत थी या बीजेपी का माइंडगेम, ये कहा नहीं जा सकता। लेकिन ये तय है कि अब कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कांग्रेस के मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बन जाएं तो ज्यादा बेहतर होगा।

कांग्रेस को करने होंगे ये तीन बड़े काम

कांग्रेस के सामने रास्ता क्या है। क्या कांग्रेस अब मध्यप्रदेश के मैदान बिलकुल छोड़ देगी. या तीन साढ़े तीन साल बाद दोबारा सिर पर आने वाले चुनावों की तैयारी अभी से करेगी। अगर तैयारी करनी है तो तीन काम कांग्रेस को बहुत फटाफट करने होंगे।

पहला तो ये कि नई दमदार लीडरशिप तलाशनी होगी। जो पार्टी को एकजुट कर पूरे एग्रेशन से कांग्रेस को आगे बढ़ा सके। वैसे तो PCC Chief Jitu Patwari खुद एग्रेसिव पॉलीटिक्स करते रहे हैं। उन्हें वही पुराना जज्बा खुद में जगाना होगा और फिर पार्टी में भी जगाना होगा।

दूसरा काम ये कि माइक्रो लेवल पर जाकर कार्यकर्ताओं का नेटवर्क मजबूत करना होगा। बड़े नेताओं के दलबदल की वजह से बहुत से कार्यकर्ता भाजपा में जा चुके हैं। अब बड़े लेवल पर लोगों को जोड़ने का अभियान चलाकर नए कार्यकर्ताओं को जोड़ना कांग्रेस की बड़ी जरूरत है। 

तीसरा काम है संगठन को मजबूत करना। जो अभी नए और पुराने नेताओं के बीच काफी बिखरा हुआ है। पुराने नेताओं की नाराजगी दूर करना और नए और युवा नेताओं को सही मौका देने का काम अब कांग्रेस में जल्द शुरू करना जरूरी है। 

ये तीन काम कांग्रेस जितना तेजी से करेगी उतनी तेजी से प्रदेश में खुद को फिर से स्टेबलिश कर सकेगी। फिलहाल प्रदेश कांग्रेस में भी पार्टी को वही माद्दा चाहिए जो राहुल गांधी ने नेशनल लेवल पर दिखाया है। हालांकि, यहां बड़ी मुश्किल ये है कि जो नेता ये माद्दा दिखाता है वो दल बदलने पर मजबूर कर दिया जाता है। अब दल बदल के इस ट्रेंड को तोड़कर कांग्रेस किस तरह प्रदेश में बाउंसबैक करती है, वो उसके आगे का भविष्य तय करेगा।

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