भोपाल. मप्र के लिए लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण ( Third phase of Lok Sabha elections ) बेहद अहम है। इस फेज में मप्र के दो पूर्व सीएम अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कद्दावर नेता भी मैदान में हैं। चेहरे जितने बड़े हैं, उनमें हार का डर भी उतना ही ज्यादा है। यूं शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जीत भले ही तय नजर आ रही हो, लेकिन इन दोनों ने भी सीट निकालने के लिए दिन रात एक किए हैं। पूरे परिवार ने मैदान में उतर कर कैंपेनिंग की है। इसकी वजह है कांग्रेस के कुछ ऐसे फैसले जिसने इन लीडर्स की रातों की नींद छीन ली। तीसरे फेज में एमपी की आठ सीटों पर चुनाव होने हैं।
कहां किस सीट पर मुकाबला सबसे ज्यादा रोचक
सबसे पहले बात करते हैं राजगढ़ सीट की। बीजेपी के लिए इस सीट पर सब कुछ ऑल इज वेल था। दो बार से लगातार जीत रहे सांसद रोडमल नागर को ही बीजेपी ने रिपीट किया, लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी के उतरने के बाद यहां हालात बदल गए। रोडमल नागर के खिलाफ एंटी इंकंबेंसी अचानक सतह पर आ गई। बीजेपी ने दिग्विजय सिंह को भी हल्के में लेने की भूल नहीं की और तुरंत स्ट्रेटजी में बदलाव किया। खास बात ये है कि दिग्विजय सिंह यहां बिलकुल देसी स्टाइल में प्रचार कर रहे हैं। वो पांव-पांव पूरा संसदीय क्षेत्र नाप चुके हैं और प्लकार्ड लेकर उस पर कांग्रेस की उपलब्धियां और घोषणा पत्र बता रहे हैं। रोडमल नागर उनके मुकाबले कम सक्रिय नजर आए। चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी बीजेपी की ओर ओऱ से केंद्रिय नेतृत्व और मोदी की गारंटी ने ही संभाली है।
पूरा राज परिवार मैदान में उतरा
यही हाल ज्योतिरादित्य सिंधिया की सीट गुना शिवपुरी का है। एक हार के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindia ) यहां आसानी से जीतते नजर आ रहे थे, लेकिन चुनाव नजदीक आते आते उन्हें ये समझ में आ गया कि हालात उतने भी आसान नहीं हैं, जितने लग रहे थे। नतीजा ये हुआ कि पूरा का पूरा राज परिवार चुनाव में जबरदस्त तरीके से एक्टिव नजर आया। सिंधिया घराने की महारानी आम महिला की तरह क्षेत्र में घूमती दिखीं और आम लोगों से मुलाकात करती नजर आईं। सिंधिया के युवराज यानी कि महार्यमन सिंधिया भी लोगों के बीच ही दिखे। इस सीट पर कांग्रेस ने राव यादवेंद्र सिंह ( Rao Yadvendra Singh ) को टिकट दिया है, जो जबरदस्त दल बल के साथ ही बीजेपी से कांग्रेस में आए हैं। यानी सीट पर दोनों ही दलबदलू हैं।
शिवराज नहीं समझ रहे पीस ऑफ केक
विदिशा सीट से पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ( Former CM Shivraj Singh Chauhan ) मैदान में हैं। वो सीएम बनने से पहले इस सीट पर पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। ये सीट बीजेपी का गढ़ है। इसके बावजूद शिवराज सिंह चौहान ने प्रचार में कोई कोताही नहीं की है। यहां से कांग्रेस ने प्रताप भानु शर्मा को मैदान में उतारा है। 1980 और 1984 के चुनाव में प्रताप भानु शर्मा विदिशा से ही सांसद रह चुके हैं। उनके खिलाफ वैसे तो शिवराज सिंह चौहान सबसे ज्यादा वोटों से जीतने का दावा कर चुके हैं। हालांकि, जिस तरह से उनका प्रचार तंत्र एक्टिव है और बेटे ने भी कैंपेनिंग की कमान संभाल रखी है, उसे देखकर ये कहा जा सका है कि वो इस चुनाव को पीस ऑफ केक समझ कर चुनावी मैदान में नहीं उतरे हैं।
भोपाल में बन रहा ये समीकरण
विदिशा की तरह ही भोपाल में भी बीजेपी को कोई चुनौती नहीं रही है। यहां से आलोक शर्मा इस बार मैदान में हैं और उन्हें कांग्रेस से टक्कर दे रहे हैं अरुण श्रीवास्तव। कायस्थ समाज का कैंडिडेट उतरने से बीजेपी का रास्ता बहुत आसान यहां भी नहीं रह गया है। यहां पांच लाख के करीब मुस्लिम वोटर्स हैं और करीब ढाई लाख वोटर्स कायस्थ समाज से हैं। अगर कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग फिट बैठी तो बीजेपी के लिए फाइट थोड़ी टफ हो जाएगी। एसी,एसटी, ओबीसी और सिंधियों का वोट जरा भी इधर उधर हुआ तो नतीजे हैरान करने वाले हो सकते हैं।
मुरैना में सीधी टक्कर , हाथी भी फाइट में
मुरैना सीट पर भाजपा ने पूर्व विधायक शिवमंगल सिंह तोमर को तो कांग्रेस ने पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू को प्रत्याशी बनाया है। सत्यपाल के भाई सतीश विधायक हैं और भाभी शोभा सिकरवार ग्वालियर से मेयर हैं। यहां पर दोनों ठाकुर प्रत्याशियों के होने से वोट बंटना तय है। ऐसे में दलित और ब्राह्मण वोटर्स जीत- हार तय करेंगे। इसे देखते हुए ही भाजपा ने बसपा के पूर्व विधायक बलवीर सिंह दंडोतिया को पार्टी में शामिल कराया है। मुरैना में कांग्रेस के पांच विधायक हैं। हालांकि, यहां पर मोदी भी फैक्टर है। ऐसे में मुरैना में भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है और मुकाबला त्रिकोणीय है। इस सीट पर 1996 से भाजपा का कब्जा है।
भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ जनता में नाराजगी
आरक्षित भिंड लोकसभा सीट ( Reserved Bhind Lok Sabha seat ) पर भाजपा ने सांसद संध्या राय को तो वहीं कांग्रेस ने विधायक फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ जनता में नाराजगी है। वहीं, फूल सिंह बरैया की दलित वोटरों में अच्छी पकड़ है। इसी सीट पर 30 प्रतिशत से ज्यादा दलित वोटर हैं। यहां पर केंद्र की पीएम आवास समेत अन्य योजनाओं के चलते मोदी को लोग पसंद कर रहे हैं। बरैया दमदार चेहरा होने से चुनाव में बने हुए हैं। इस सीट पर 1989 से भाजपा का कब्जा है। भिंड सीट पर 8 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से चार भाजपा और चार कांग्रेस के पास है।
सागर में पीएम के सहारे
सागर में भाजपा ने लता वानखेड़े को तो वहीं, कांग्रेस ने गुड्डू राजा बुंदेला को टिकट दिया है। आठ माह में प्रधानमंत्री ने सागर का तीसरा दौरा किया और भाजपा प्रत्याशी के लिए रैली की। इस सीट पर हिंदुत्व, राम मंदिर और मोदी के चेहरे पर भाजपा वोट मांग रही है। यहां पर भाजपा के सामने कांग्रेस का संगठन बहुत कमजोर है। यह सीट 1996 से भाजपा के पास है।
ग्वालियर में मोदी के चेहरे पर चुनाव
ग्वालियर सीट पर भाजपा ने सांसद विवेक शेजवलकर का टिकट काटकर भारत सिंह कुशवाह को तो वहीं, कांग्रेस ने प्रवीण पाठक को प्रत्याशी बनाया है। दोनों ही पिछला विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। भाजपा का गढ़ मानी जा रही, इस सीट पर भाजपा मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। इसके आगे बेरोजगारी, महंगाई सभी मुद्दे दब गए हैं। पाठक ब्राह्मण और युवा नेता हैं। यहां पर भाजपा 2007 से अब तक लगातार चार चुनाव जीत चुकी है।
हरदा की दोनों सीट पर कांग्रेस का कब्जा
आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित बैतूल सीट ( Betul seat reserved for tribal class ) पर भाजपा ने सांसद दुर्गादास उइके को तो वहीं, कांग्रेस ने पूर्व प्रत्याशी रामू टेकाम को टिकट दिया है। इस सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हरदा में रैली कर चुके हैं। हरदा की दोनों विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। जिले के कई पदाधिकारी कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इस सीट पर 1996 से भाजपा का कब्जा है।
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चुनावी माहौल बनते बनते बीजेपी बहुत स्ट्रॉन्ग पॉजिशन में नजर आ रही थी। 29 की 29 सीटें जीतना आसान लक्ष्य नजर आ रहा था, लेकिन जैसे जैसे वोटिंग शुरू हुई, दो फेज गुजरे उसके बाद कांग्रेस भी काफी संभली हुई दिख रही है। एक इंटरव्यू में तो दिग्विजय सिंह ये दावा भी कर चुके हैं कांग्रेस 29 सीटें जीत रही है। हालांकि, ये थोड़ा नामुमकिन है, लेकिन जितना नामुमकिन ये काम कांग्रेस के लिए है, फिलहाल उतना ही मुश्किल बीजेपी के लिए भी नजर आ रहा है। छिंदवाड़ा बीजेपी की झोली में आए या न आए, लेकिन चंद और सीटें बीजेपी की मुट्ठी से निकलने का खतरा बढ़ गया है। अब तीसरे चरण का मत प्रतिशत क्या कहता है, वो भी देखना दिलचस्प होगा।
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