News Strike:2025 में CM मोहन यादव के सामने कौन सी होंगी बड़ी चुनौतियां

2024 करीब 20 साल बाद मध्यप्रदेश में बदलाव के साथ आया था। जब सीएम का चेहरा बदला। सत्ता और प्रशासन के गलियारों में भी नए और पुराने चेहरों की उथलपुथल देखने को मिली। लेकिन साल गुजरते-गुजरते अब सब कुछ सेट है...

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Harish Divekar
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Mohan Yadav big challenges ahead Photograph: (thesootr)

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News Strike : नए साल का मौका है, इस मौके पर आप सबको हमारी तरफ से नए साल की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। इस खास दिन बात करेंगे मध्यप्रदेश के मुखिया के लिए आने वाला ये साल क्यों बेहद जरूरी है। साल 2024 करीब 20 साल बाद मध्यप्रदेश में बदलाव के साथ आया था। जब सीएम का चेहरा बदला। सत्ता और प्रशासन के गलियारों में भी नए और पुराने चेहरों की उथलपुथल देखने को मिली। लेकिन साल गुजरते-गुजरते अब सब कुछ सेट है। सीएम मोहन यादव ने इतने कम समय में उपलब्धियों की लिस्ट तैयार की है तो कुछ चुनौतियों भी अब उनके सामने खड़ी हैं। वैसे तो बतौर सीएम उनके पास पांच साल हैं, लेकिन ये साल सबसे महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा चुनौतियों से लैस है। वो क्यों, चलिए आज इसी पर बात करते हैं।

बीजेपी की आगे की क्या होगी दशा और दिशा 

बतौर सीएम मोहन यादव को पूरे एक साल का समय कुछ दिन पहले ही हो चुका है और अब एक पूरा नया साल उनके सामने है। राजनीति के लिहाज से ये साल देश के लिए भी बहुत अहम है। इस साल दिल्ली में विधानसभा चुनाव है और उसके बाद बिहार का नंबर आएगा। बिहार का विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री मोहन यादव की असल परीक्षा साबित होगा। इस साल उनके काम, उनके फैसले ये तय करेंगे कि मध्यप्रदेश में बीजेपी की आगे की दशा और दिशा क्या होगी। चलिए इस पर सिलसिलेवार तरीके से थोड़ा तफसील से बात करते हैं। नई चुनौतियों से पहले बात कर लेते हैं। सीएम मोहन यादव की अब तक की कुछ बड़ी उपल्बधियों पर।
जिसमें से पहले नंबर है अपनी कैबिनेट में मौजूद सीनियर नेताओं को साधने की चुनौती। जो अब एक उपलब्धि में तब्दील होने लगी है। बतौर सीएम उनका और उनकी कैबीनेट का पहला साल बिना किसी मनमुटाव और बिना किसी आपसी तनाव के साथ गुजरा है। जिसे देखकर लगता है कि वो पार्टी के दिग्गज नेताओं को मैनेज करने में कामयाब रहे हैं।

सीएम ने अफसरशाही में भी जमकर फिल्टर लगाया

अफसरशाही पर भी यही बात लागू होती है। सीएम मोहन यादव ने अफसरशाही के लेवल पर भी जमकर फिल्टर लगाया और अब ऐसे अफसर छनकर मंत्रालय में तैनात हो चुके हैं। जिन्हें सीएम मोहन यादव अपने भरोसेमंद अफसर कह सकते हैं। लोकसभा चुनाव में हुई जबरदस्त जीत को भी मोहन यादव की उपलब्धियों में ही गिना जाएगा। भले ही वो उस वक्त नए नए मुखिया बने थे, लेकिन पार्टी को हर सीट पर जीत दिलाने में कामयाब रहे। यही उपलब्धि उन्हें उपचुनाव में भी मिली। विधानसभा उपचुनाव में वो छिंदवाड़ा जिले की एक विधानसभा सीट बीजेपी की झोली में डालने में कामयाब रहे। बुधनी सीट पर जीत मिली। हालांकि, विजयपुर की सीट हाथ से निकल गई। इस साल की उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी गृहमंत्री अमित शाह के साथ किसी प्रदेश का पर्यवेक्षक बनाया जाना। पार्टी ने उन्हें हरियाणा का पर्यवेक्षक नियुक्त किया। ये नियुक्ति हरियाणा का सीएम फेस चुनने के लिए थी। अमित शाह जैसे दिग्गज के साथ पर्यवेक्षक बन कर जाने का मौका पार्टी में चुनिंदा नेताओं को ही मिल सका है। उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा में चुनाव प्रचार का जिम्मा भी सौंपा गया।

बिहार की कामयाबी तय करेगी मोहन का यूपी में उपयोग

अब तक मोहन यादव को पार्टी ने जितने टास्क दिए हैं वो सब पर खरे उतरे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि को बड़ा बनाने के लिए भी पार्टी ने पर्यवेक्षक बनाया, लेकिन अब अपनी इमेज को मजबूत करने की जिम्मेदारी उन पर ही है। क्योंकि अब उन्हें कुछ चुनौतियों का डटकर मुकाबला करना होगा। इसकी असल शुरूआत होगी बिहार विधानसभा चुनाव से। बिहार यादव बहुल राज्यों में से एक राज्य है। बीजेपी के पास यूं तो बड़े नेताओं और फेस की कमी नहीं है, लेकिन यादव नेता के नाम पर पार्टी में टोटा था। जिसे मोहन यादव के जरिए खत्म करने की कोशिश है। यही वजह भी है कि बीजेपी ने मोहन यादव की इमेज को नेशनल लेवल पर उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब बिहार चुनाव में यादव नेता की इमेज को वो कितना कैश करा पाते हैं ये देखने वाली बात होगी। क्योंकि बिहार की कामयाबी ये तय करेगी कि मोहन यादव का उपयोग यूपी में कितना हो पाता है। क्योंकि यूपी चुनाव भी बीजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण होंगे।

सीएम मोहन यादव के सामने प्रदेश में भी हैं बहुत चुनौतियां

ये तो हुई नेशनल लेवल की बात। अब प्रदेश के संदर्भों में बात करते हैं। सीएम मोहन यादव के सामने प्रदेश में भी बहुत सारी चुनौतियां हैं। जिसमें से एक है निगम मंडल में नियुक्तियों की चुनौती। पार्टी के बहुत से नेता इस इंतजार में हैं कि उनका नाम किसी निगम मंडल के लिए चुना जाएगा। जिसका नाम आएगा वो खुश होगा और जिसका नाम चूकेगा वो नाराजगी जताएगा। अब सारे अंचल और जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए मोहन यादव को ये अहम फैसला लेना होगा। जिससे तालमेल भी बना रहे और साथ में ही असंतोष पर काबू रखने की रणनीति भी पहले से ही तैयार करनी होगी।

सबसे अहम परीक्षा नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव

राज्य का प्रशासनिक अमला तो मोहन यादव के मन मुताबिक आकार ले चुका है, लेकिन पुलिस के स्तर पर थोड़ा काम होना अब भी जरूरी है। विपक्ष ही नहीं खुद पार्टी के ही नेता पुलिस के रवैये से असंतुष्ट हैं। इस शिकायत को दूर करना भी जरूरी है। सबसे अहम परीक्षा होगी नगरीय निकाय चुनाव, पंचायत चुनाव। ये साल गुजरते गुजरते पार्टी इन चुनावों की तैयारी में डूब जाएगी। इन सभी चुनावों के नतीजे बीजेपी के पक्ष में जितने ज्यादा होंगे। सीएम मोहन यादव की छवि उतनी ही मजबूत होगी और कद उतना ही ज्यादा ऊंचा होगा। पिछले नगरीय निकाय चुनाव में कुछ अहम नगर निगम बीजेपी के हाथ से निकल गई थीं। हालांकि, सियासी जोड़ तोड़ के बाद वो वापस बीजेपी का हिस्सा बन गईं। अब इस साल के बड़े फैसले और योजनाएं ये तय करेंगी कि नगरीय चुनाव में बीजेपी की जमीन कितनी मजबूत हो पाती है।

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