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News Strke : कहां हैं नेताजी में... आज बात करेंगे एक ऐसी नेत्री की जो बीजेपी के कद्दावर नेता को पूरे दम से टक्कर देती रही हैं। ये उन्हीं की बिसात है कि इंदौर जैसा शहर किसी एक नेता की मिल्कियत होने की जगह दो खेमों में बंटा रहा। 75 पार हैं और सक्रिय राजनीति से दूर रहने पर मजबूर कर दी गई हैं। सोशल मीडिया पर भी उनकी एक्टिविटी बमुश्किल ही नजर आती हैं। ऐसी दमदार नेत्री चुनावी रिटायरमेंट के बाद क्या कर रही हैं। क्या वो अपने गढ़ में एक्टिव हैं। चलिए आज यही जानने की कोशिश करते हैं।
ताई का पहला मुकाबला दिग्गज कांग्रेसी प्रकाश चंद्र सेठी से
हम आज जिस नेता की बात कर रहे हैं उनका नाम है सुमित्रा महाजन। जो मध्यप्रदेश की पहली ऐसी नेत्री हैं जो लोकसभा की स्पीकर भी रहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में सदन का संचालन उन्हीं के हाथ में रहा। सुमित्रा महाजन इंदौर में बड़ा चुनावी इतिहास रच चुकी हैं। बात करते हैं साल 1989 से। ये वो समय था जब इंदौर लोकसभा सीट को कांग्रेस के लिए बहुत आसान सीट माना जाता था। इस शहर में उस वक्त बहुत सी कपड़ा मिलें हुआ करती थीं जिनमें काम करने वाले मजदूर कांग्रेस के कोर वोटर थे। साल 1989 में सुमित्रा महाजन को इस सीट से टिकट मिला। उनका मुकाबला था प्रकाश चंद्र सेठी जैसे दिग्गज कांग्रेसी से। जो केंद्रीय मंत्री भी रह चुके थे, लेकिन सुमित्रा महाजन भी पक्का इरादा करके मैदान में उतरी थीं। इस चुनाव में उन्हें एक लाख 11 हजार से ज्यादा वोटों से जीत मिल थीं।
50 हजार से कम अंतर की जीत सिर्फ दो बार
इसके बाद इंदौर की आसान लड़ाई, चुनाव दर चुनाव कांग्रेस के लिए मुश्किल बनती चली गई। सुमित्रा महाजन इंदौर के लोगों के बीच इस कदर फेमस हुईं कि उन्हें ताई के नाम से भी बुलाया जाने लगा। हर चुनाव में उन्हें हराने के लिए कांग्रेस ने बहुत सी अलग अलग रणनीति अपनाई, लेकिन ताई की चुनावी तैयारी के आगे कांग्रेस हर बार मात खा गई। इंदौर लोकसभा सीट से सुमित्रा महाजन ने लगातार आठ बार चुनाव जीता। इसमें से तीन बार वो पटेल परिवार से चुनाव लड़ीं। उनका मुकाबला दो बार सत्यनारायण पटेल से हुआ और एक बार उनके पिता रामेश्वर पटेल से भी हुआ। इन आठ बार में बस दो बार 1998 और 2009 में उनकी जीत का अंतर पचास हजार से कम रहा।
विपक्ष ने ताई को हमेशा बायस्ड स्पीकर के तौर पर ही देखा
सुमित्रा महाजन ने लंबी चुनावी पारी खेली है। साल 2014 का चुनाव उनका अब तक का आखिरी लोकसभा चुनाव साबित हुआ। चुनावी पारी खत्म भी एक बड़ी उपलब्धि के साथ हुई। बीजेपी ने उन्हें लोकसभा का स्पीकर बनाया। हालांकि, इस दौरान वो कभी कभी विवादों में भी घिरी। विवाद इस वजह से कि विपक्ष उन्हें अक्सर बायस्ड स्पीकर के तौर पर ही देखता रहा। लोकसभा स्पीकर से उम्मीद होती है कि वो अपनी पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा से ऊपर उठकर सदन का संचालन करेगा, लेकिन हर स्पीकर का अपने दल की तरफ थोड़ा बहुत झुकाव तो होता ही है। दो स्पीकर बलराम जाखड़ और सुमित्रा महाजन पर अक्सर बहुत ज्यादा पक्षपात करने के आरोप लगे, लेकिन सुमित्रा महाजन हमेशा ही स्पीकर से ज्यादा एक निष्ठावान बीजेपी कार्यकर्ता के रूप में ही ज्यादा नजर आईं।
सुमित्रा महाजन को 2019 में टिकट नहीं मिला
ये निष्ठा उम्र के मामले में 75 का आंकड़ा छूते-छूते काम नहीं आई। 75 साल की उम्र और पार्टी का क्राइटेरिया उन पर भारी पड़ गया। सुमित्रा महाजन को साल 2019 में टिकट नहीं मिला, लेकिन उनका टिकट काटने का सीन भी बीजेपी में बड़ा ड्रैमेटिक रहा। हुआ यूं कि बीजेपी बार-बार लोकसभा की लिस्ट जारी करती रही, लेकिन सुमित्रा महाजन का नाम उसमें नहीं आया। कुछ लिस्ट तक ताई ने अपने नाम का इंतजार किया, लेकिन फिर खुद ही पार्टी की दुविधा खत्म कर दी। उन्होंने अपनी पार्टी के नाम पत्र लिखा और साफ कर दिया कि वो खुद ही चुनाव लड़ने से इंकार रही हैं। इसके बाद साल 2024 के चुनाव में भी सुमित्रा महाजन को टिकट नहीं मिला।
क्या ताई ने भाई के लिए मैदान छोड़ दिया है...
ताई चुनावी राजनीति से दूर हैं। तो, क्या इसका ये मतलब है कि इंदौर ताई और भाई की राजनीति से मुक्त हो चुका है। इंदौर में हमेशा दो दिग्गजों का मुकाबला चलता रहा है। ताई यानी कि खुद सुमित्रा महाजन और भाई यानी कैलाश विजयवर्गीय हैं। दोनों एक ही पार्टी के दमदार नेता हैं, लेकिन इंदौर दोनों के लिए दो शेरों की टेरिटोरियल फाइट के समान है। अब सुमित्रा महाजन चुनाव नहीं लड़ रही हैं। उनके सोशल मीडिया पर भी लंबे अरसे से सन्नाटा ही पसरा है। इसके क्या मायने हैं क्या ताई ने भाई के लिए मैदान छोड़ दिया है। इस सवाल का जवाब है नहीं।
चुनाव लड़ना बंद किया, लेकिन राजनीति धमक कायम है...
सुमित्रा महाजन भले ही अब चुनाव नहीं लड़ती। वो कहते हैं न कि शेर भले ही बूढ़ा हो जाए पर दहाड़ना नहीं भूलता। ताई तो वो शेरनी हैं जो अकेले ही कई शेरों पर भारी पड़ती रही हैं। कुछ ही महीनों पहले इस शेरनी की दहाड़ तब सुनाई दी जब भाई यानी कैलाश विजयवर्गीय ने एक पेड़ मां के नाम अभियान का ऐलान किया। ताई भी तुरंत मैदान में आईं और अहिल्या उत्सव के तहत हर मंदिर के आंगन में पौधे लगाने की योजना तैयार की। उन्होंने इस मुहिम में विधायकों और पार्षदों को भी जोड़ लिया। इंदौर में कैलाश गुट के विधायकों और पार्षदों के अलावा सभी ने ताई की मुहिम में हिस्सा लिया। खुद सीएम मोहन यादव भी उनसे मिलने पहुंचे थे। इससे ये तो साफ है कि सुमित्रा महाजन ने चुनाव लड़ना बंद किया है, लेकिन राजनीति में अपनी धमक वो फिलहाल बनाए हुए हैं।
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