News Strike : बीजेपी के लिए फिर बदले सीताराम आदिवासी के सुर!

मध्यप्रदेश में एक विधानसभा सीट पिछले कुछ महीने से हॉट सीट बनी हुई है। इस सीट को लेकर जितना सियासी ड्रामा हुआ है उतना अब तक किसी सीट को  लेकर नहीं हुआ। तब भी नहीं हुआ जब बड़ी संख्या में विधायकों ने पाला बदला था।

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Harish Divekar
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News Strike : मध्यप्रदेश में उपचुनाव वाली एक सीट को लेकर तू डाल डाल मैं पात पात का खेल जारी है। इस सीट पर कांग्रेस ने खूब हाथ पैर फेंके, लेकिन अब बीजेपी ने अपने एक ही दांव से कांग्रेस को बड़ी पटखनी दे दी है। हालांकि, जब तक जंग का अंजाम सामने न हो और एक भी वार करने की गुंजाइश हो तो हार नहीं माननी चाहिए। इसलिए लगता तो यही है कि कांग्रेस बहुत आसानी से हार नहीं मानेगी, लेकिन ये तो तय है कि इस सीट पर बीजेपी के ताजा वार ने कांग्रेस की उस उम्मीद को खत्म कर दिया है कि कांग्रेस की ये सीट आसानी से उसके खाते में चली जाएगी।

रामनिवास रावत की सीट पर सियासी नौटंकी जारी

मध्यप्रदेश में एक विधानसभा सीट पिछले कुछ महीने से हॉट सीट बनी हुई है। इस सीट को लेकर जितना सियासी ड्रामा हुआ है उतना अब तक किसी सीट को  लेकर नहीं हुआ। तब भी नहीं हुआ जब बड़ी संख्या में विधायकों ने पाला बदला था। मुझे लगता है अब तक आप समझ गए होंगे कि हम किस विधानसभा सीट की बात कर रहा हूं। नहीं समझे तो हम बता दें कि ये बात हो रही विजयपुर विधानसभा सीट की। जहां से विधायक थे कांग्रेस के कद्दावर नेता रामनिवास रावत थे इसलिए बोलना पड़ा रहा है क्योंकि रामनिवास रावत अब इस सीट से विधायक नहीं है। अलबत्ता सीएम मोहन यादव की कैबिनेट में मंत्री जरूर हैं। रामनिवास रावत की सीट पर जितनी सियासी नौटंकी जारी है। उनका बीजेपी में आना, मंत्री बनना और फिर शपथ लेना भी उतना ही ड्रामेटिक रहा। फिलहाल बीजेपी ने कौन सी बड़ी चाल चली है। उस पर बात करने से पहले एक बार क्विक रिविजन कर लेते हैं कि इस सीट पर और राम निवास रावत के साथ इस साल क्या-क्या हुआ।

रावत के कांग्रेस से इस्तीफे को लेकर सुगबुगाहट हुईं

रामनिवास रावत ने अचानक कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा था, लोकसभा चुनाव के पहले। उसके बाद सीट पर सन्नाटा छाया रहा। बीच-बीच में ये सुगबुगाहटें होती रहीं कि रामनिवास रावत कांग्रेस से इस्तीफा क्यों नहीं दे रहे। बीजेपी में शामिल होने के बाद भी वो बिना इस्तीफा दिए सीट पर बने रहे। उन की पुरानी पार्टी से कई बार उनके खिलाफ आवाज भी उठाई गई। हालांकि, बाद में रामनिवास रावत ने इस्तीफा दिया। उनकी बतौर मंत्री ताजपोशी भी हो गई। ड्रामा तब भी खूब हुआ। क्योंकि उन्होंने एक ही दिन में दो बार शपथ ली। पहली बार शपथ में उन्होंने खुद को राज्यमंत्री बोला। शायद दल बदल की शर्तों में राज्य मंत्री की जगह मंत्री पद शामिल रहा होगा। होना भी चाहिए राम निवास रावत बहुत सीनियर लीडर जो ठहरे। सो शपथ फिर से करवाई गई। शपथ के कारणों पर भरपूर लीपापोती हुई। उसके बाद शपथ फिर हुई और रामनिवास रावत ने मंत्री पद की शपथ ली।

बीजेपी का नया दांव कांग्रेस के लिए मुश्किल बन रहा है

अब रामनिवास रावत की अगली चुनौती है अपनी ही सीट से चुनाव जीतना। वैसे तो उनकी जीत तय मानी जा रही है, लेकिन बीजेपी के ही पुराने नेताओं अगर गेम खराब कर दिया तो रामनिवास रावत को जीत के लाले पड़ सकते हैं। अब तक सीताराम आदिवासी सबसे ज्यादा बागी तेवर दिखा रहे थे। वो इसी सीट पर पहले रावत को हरा चुके हैं। उनके साथ तगड़ा वोटबैंक का सपोर्ट भी है। लिहाजा कांग्रेस की नजर आदिवासी पर बताई जा रही थी, लेकिन अब बीजेपी का नया दांव कांग्रेस के इस काम को मुश्किल बना रहा है। इस सीट पर अभी उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई है। उससे पहले ही बीजेपी ने रूठे हुए आदिवासी को सहरिया विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बना दिया है। खबर थी कि आदिवासी इस बात से खासे नाराज हैं कि रावत के आने के बाद उनका सियासी भविष्य खतरे में है। कांग्रेस के कई नेता भी उनके संपर्क में बताए जा रहे थे। सीताराम आदिवासी रामनिवास रावत के पार्टी में शामिल होने से ही नाराज थे। रावत को मंत्री बनाने के बाद उनका गुस्सा और भी बढ़ गया था। क्योंकि ये इस बात का सबूत था कि रावत को टिकट मिलना पक्का है। गुस्साए आदिवासी कोई बड़ा कदम उठाएं उससे पहले ही बीजेपी ने बड़ा फैसला ले लिया। आदिवासी कांग्रेस के हाथ आते उससे पहले ही बीजेपी ने आदिवासी को अपनी तरफ फिर खींच किया।

सीताराम बिना चुनाव जीते राज्य मंत्री का दर्जा पा चुके हैं

बीजेपी का डर जायज भी है क्योंकि सीताराम आदिवासी अपने वोटबैंक में तगड़ी पकड़ रखते हैं। उनका कांग्रेस में जाना तो बाद की बात है उनका बागी होना ही बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता था। इसलिए पार्टी ने उन्हें बिलकुल हल्के में नहीं लिया। बताया जा रहा है कि उपचुनाव का सियासी गणित जमाने के लिए सबसे पहले सीएम हाउस में सीताराम आदिवासी के साथ लंबी मीटिंग की गई। उसके बाद उन्हें सहरिया विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बना दिया गया। अब वो बिना चुनाव जीते भी राज्य मंत्री का दर्जा हासिल कर चुके हैं। ये नियुक्ति भी ऐसे समय हुई है। जब बाकी निगम मंडलों में नियुक्ति पर बस चर्चा हो रही है। नाम किसी का फाइनल नहीं हो रहा। ऐसे समय में आदिवासी को खुश करे के लिए बीजेपी ने ये फैसला ले लिया है। इस ऐलान ने जादू का काम भी किया। क्योंकि टिकट मिलते ही उनके सुर भी बदल गए। 

आदिवासी भी अपने हक के लिए जागरूक हो गए हैं

सीएम से मुलाकात के बाद सीताराम आदिवासी ने कहा कि उन्हें अपनी पार्टी से कोई नाराजगी नहीं है। बल्कि, वो तो पार्टी के हर फैसले से बहुत खुश हैं। आदिवासी ने ये भी कहा कि टिकट नहीं मिला तो भी कोई बात नहीं। क्योंकि पार्टी उन्हें कई बार टिकट भी दे चुकी है और मान सम्मान भी बराबर मिल रहा है। इस मीटिंग के जादू में डूबे सीताराम आदिवासी की मुलाकात बाद में विधानसभा स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर से भी हुई। एक पद का कमाल देखिए यही सीताराम आदिवासी 15 जुलाई को ये कहते सुने गए थे कि उपचुनाव के लिए पार्टी से टिकट मागूंगा। टिकट नहीं मिला तो समाज के लोगों के साथ बैठकर फैसला लूंगा। बात यहीं खत्म नहीं हुई। 22 अगस्त को उन्होंने कराहल में तेंदूपत्ता बोनस वितरण कार्यक्रम में कहा आप चुनाव जीतने की चिंता मत करो, लेकिन समाज के लोगों को समझाना ही पड़ेगा कि वो लड़े झगड़े नहीं। आजकल आदिवासी भी अपने हक के लिए जागरूक हो चुके हैं। रावत को इशारों ही इशारों में आदिवासी ने ये बात तब कही थी जब मंच पर सीएम, विधानसभा अध्यक्ष और खुद रावत भी मौजूद थे। अब जब पद मिल चुका है तब वो पार्टी के हर फैसले से खुश हैं। 

बीजेपी में सब ऑल इज वेल है

वैसे आपको बता दूं कि विजयपुर सीट पर रावत समुदाय के 15 हजार वोटर्स हैं, जबकि आदिवासी समाज के वोटर्स की गिनती पचास हजार तक जाती है। ऐसे में सीताराम आदिवासी की नाराजगी बीजेपी के लिए मुसीबत बन सकती थी और कांग्रेस के लिए गेमचेंजर हो सकती थी, लेकिन अब उनकी खुशी जाहिर कर रही है कि बीजेपी में सब ऑल इज वेल है और विजयपुर सीट पर जीत का रास्ता भी आसान ही माना जा सकता है। आदिवासी की ये खुशी और बदले हुए सुर देखकर राम निवास रावत ने भी राहत की सांस ले ही ली होगी। पूर्व विधायक सीताराम आदिवासी वाकई अगर कांग्रेस में चले जाते तो रामनिवास रावत कहीं के नहीं रहते। उन्हें मंत्रीपद भी गंवाना पड़ता। विधायक तो खैर अभी वो हैं ही नहीं और बीजेपी को दगाबाज होने के ताने भी नहीं दे पाते। कांग्रेस में भी वापसी शायद नामुमकिन होती। हालांकि, अब कांग्रेस के सामने फिर वही सवाल है कि वो इस सीट से किसे टिकट दी और बीजेपी ने एक पंथ से दो काज कर लिए हैं। अपनी जीत पक्की की है और कांग्रेस को इस सीट पर फिर कमजोर कर दिया है।

FAQ

सीएम मोहन यादव कौन हैं?
मोहन यादव (जन्म 25 मार्च 1965) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और व्यवसायी हैं, जो 2023 से मध्य प्रदेश के 19वें और वर्तमान मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं। भारतीय जनता पार्टी के सदस्य, वे 2013 से मध्य प्रदेश विधान सभा के सदस्य के रूप में उज्जैन दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्तमान में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।

 

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