News Strike : मध्यप्रदेश में उपचुनाव की बिसात अब साफ हो चुकी है। बीजेपी ने परिवारवाद से दूरी बनाए रखने के अपने सिद्धांत पर चलते हुए शिवराज सिंह चौहान को निराश किया है। तो कांग्रेस अपने एक पुराने चेहरे और एक बागी चेहरे पर दांव चला है। विजयपुर की बिसात इसलिए ज्यादा दिलचस्प है कि यहां अब दो बागियों में ही सामना होने वाला है। बुधनी और विजयपुर विधानसभा उपचुनाव में दोनों प्रत्याशी तय हो चुके हैं। आज हम बात करेंगे किस सीट पर किसे और क्यों टिकट दिया गया है।
विजयपुर और बुधनी सीटों पर उपचुनाव
मध्यप्रदेश में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना हैं। ये विधानसभा सीटें हैं विजयपुर और बुधनी। दोनों विधानसभा सीटें बेहद खास हैं। विजयपुर सीट की बात करें तो ये सीट दलबदल के चलते खाली हुई। इस सीट पर 2023 के विधानसभा चुनाव में रामनिवास रावत जीते थे वो भी कांग्रेस के टिकट से। लोकसभा चुनाव से पहले रावत ने बीजेपी का दामन थाम लिया इसलिए यहां उपचुनाव होने हैं। बुधनी में उपचुनाव इसलिए है क्योंकि यहां शिवराज सिंह चौहान ने बंपर वोटों से जीत हासिल की थी। इसके बाद उन्हें लोकसभा का टिकट मिला वो जीते और अब मोदी कैबीनेट में मंत्री हैं। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। इसलिए अब बुधनी सीट पर उपचुनाव है। इन दो सीटों पर विजयपुर सीट से बीजेपी उम्मीदार पहले दिन से तय थे कि वो रामनिवास रावत ही होंगे, लेकिन कांग्रेस का चेहरा कौन होगा। बुधनी में दोनों दल किसे मौका देते हैं। इस पर सबकी निगाहें टिकी थीं। अब ये तय हो चुका है।
विजयपुर सीट पर आगे की बिसात क्या...
पहले बात करते हैं विजयपुरा सीट की। इस सीट से पहले बात इसलिए करते हैं क्योंकि ये सीट पिछले कई दिनों से सुर्खियों में है। इस सीट पर पॉलिटिकल ड्रामा लोकसभा चुनाव के पहले से ही जारी हो चुका था। बहुत शॉर्ट में पुरानी पूरी कहानी रिवाइज करवा देते हैं। फिर बताएंगे कि आगे कि बिसात क्या जमी है। विजयपुर सीट से कांग्रेस के विधायक रामनिवास रावत जो पार्टी के ही दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के खास भी माने जाते हैं। वो बीजेपी में जाने की घोषणा कर देते हैं। इसके बाद कांग्रेस और बीजेपी के बीच छींटाकशी का दौर भी चलता है। कुछ दगाबाजी के आरोप रावत पर भी लगते हैं। ड्रामा थोड़े और वक्त तक जारी रहता है रावत कांग्रेस से इस्तीफा नहीं देते। थोड़ा बवाल उस पर भी होता है। उसके बाद थोड़ा बहुत ड्रामा और होता है और रावत यादव कैबिनेट में मंत्री भी बना दिए जाते हैं। ये तो हुई एक ड्रामे की बात। इन सबके बीच बात सीताराम आदिवासी की भी कर लेते हैं। जो बीजेपी के नेता हैं और रावत के बीजेपी में आने के बाद से खासे नाराज भी चल रहे थे। खबरें यहां तक आई थीं कि आदिवासी कांग्रेस में जा सकते हैं। और टिकट भी हासिल कर सकते हैं, लेकिन बीजेपी ने आदिवासी को सहरिया जाति विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाया और ये बाजी भी मार ली।
कांग्रेस के फैसले से विजयपुर चुनाव बना दिलचस्प
इन सारे ड्रामे के बाद अब कांग्रेस ने इस सीट से टिकट दिया है मुकेश मल्होत्रा को। इस नाम को चुनने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। जैसे राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के बाद से ही जातिगत जनगणना और आदिवासियों के मुद्दे पर जोर शोर से बात कर रहे हैं। एक सामान्य सीट से आदिवासी समुदाय के प्रत्याशी को उतारकर कांग्रेस उनका मैसेज आगे क्लियर कर सकती है। इसके अलावा कुछ संयोग भी इस नाम से जुड़े हैं। मुकेश मल्होत्रा के नाम का ऐलान होते ही विजयपुर सीट पर अब मुकाबला दो दल बदलुओं का हो गया है। राम निवास रावत खुद एक दलबदलू हैं और मल्होत्रा भी दलबदलू ही हैं। मल्होत्रा भी पहले बीजेपी में ही थे। 2013 में उन्हें भी सहरिया विकास प्राधिकरण का जिम्मा सौंपकर राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था। फिलहाल वो सिलपुरी पंचायत के सरपंच भी हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले वो बागी हो गए। बीजेपी से टिकट नहीं मिलने पर मल्होत्रा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। निर्दलीय होकर भी वो तीसरे नंबर आए थे। उन्हें इस सीट से 44 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। उसकी वजह है मुकेश मल्होत्रा की इस सीट के आदिवासी वोटबैंक पर अच्छी पकड़ होना। खुद मल्होत्रा सहरिया जनजाति से ही आते हैं। कांग्रेस ने अपने इस फैसले से विजयपुर सीट के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।
बीजेपी के परिवारवाद को न बढ़ाने की परंपरा कायम
अब बात करते हैं बुधनी विधानसभा सीट की। वैसे तो इस सीट को बीजेपी की तयशुदा सीट ही माना जा रहा है, लेकिन कुछ दिलचस्प फैक्ट्स तो इस सीट से भी जुड़ ही जाते हैं। शिवराज सिंह चौहान के इस सीट को छोड़ने के बाद से खबरें थीं कि वो यहां से अपने बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान को टिकट दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, शिवराज सिंह चौहान ने कभी इस तरह का कोई बयान या प्रतिक्रिया नहीं दी। बीजेपी ने परिवारवाद को न बढ़ाने की अपनी परंपरा को कायम रखा है। इस सीट से रमाकांत भार्गव को टिकट दिया है। उन्हें टिकट मिलने के बाद कार्तिकेय चौहान ने भी ट्वीट किया कि आदरणीय दादा हमारे मार्गदर्शक हैं। उन्होंने ये भी लिखा कि उनके नेतृत्व में हम सभी कार्यकर्ता पूरी ताकत से जुटेंगे और भारी बहुमत से चुनाव जीतेंगे। रमाकांत भार्गव शिवराज सिंह चौहान के भी खास और करीबी नेता माने जाते हैं। सुषमा स्वराज ने जब ये सीट छोड़ी थी, तब रमाकांत भार्गव को यहां से चुनाव लड़ने का मौका मिला था। शिवराज सिंह चौहान के लिए भार्गव ने अपनी संसदीय सीट भी छोड़ दी। जिन्हें अब विधायक बनकर वापसी करने का मौका मिल सकता है।
23 नवंबर को पता चलेगा किसकी रणनीति कामयाब
कांग्रेस ने इस सीट पर अपने पुराने चेहरे पर ही भरोसा जताया है। ये चेहरा हैं राजकुमार पटेल। जो पहले भी इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं। पटेल भी उसी समाज से आते हैं जिस समाज से खुद शिवराज सिंह चौहान आते हैं। यानी किरार समाज से। शायद इसलिए कांग्रेस ने राजकुमार पटेल पर ही भरोसा जताया है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ही ये सीट नाक का सवाल है। अध्यक्ष बनने के बाद से हर चुनाव में हार का मुंह देख चुके जीतू पटवारी भी चाहेंगे कि कम से कम एक सीट तो कांग्रेस के खाते में आए। बीजेपी भी चाहेगी कि दोनों सीटें वो अपने कब्जे में ले सके। कौन किस पर भारी पड़ता है इसका फैसला 13 नवंबर को ईवीएम में कैद होगा। और 23 नवंबर को ये खुलासा हो जाएगा कि किसकी रणनीति कामयाब रही।
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