News Strike : कांग्रेस के हर पद पर पिछड़े वर्ग का कब्जा, कैसे सुधरेगा पीसीसी में फैला जातिगत असंतुलन ?

मध्यप्रदेश कांग्रेस के शीर्ष पद से लेकर किसी भी संगठन के पद को देखें और उस पर बैठे नेता का नाम जरूर पूछें। आप जान जाएंगे कि उस पद पर जो नेता है वो पिछड़े वर्ग से आता है। ये कहानी किसी एकाध पद के लिए नहीं है बल्कि, हर पद पर यही हाल है...

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Harish Divekar
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News Strike : अगड़े, पिछड़े, अति पिछड़े, दलित जैसे शब्द इन दिनों बार-बार सुनाई दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्टे ने भी कोटे में कोटे की बात कहकर आरक्षण की प्रक्रिया में बदलाव बता दिए हैं। लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जाति और जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं। ऐसे माहौल में एक नजर मध्यप्रदेश कांग्रेस के स्वरूप पर भी डाल लेना जरूरी है। इसे आप इत्तेफाक कहेंगे या फिर कांग्रेस की किसी सोची समझी प्लानिंग का हिस्सा कि पार्टी हर बड़े पद पर सिर्फ पिछड़ों का कब्जा है। मैं आपको एक-एक नाम गिनवाता हूं और बताता हूं कि पद कौन सा है और उस पर कौन पदस्थ है। साथ में ये भी बताउंगा कि इस राजनीति का कांग्रेस पर क्या असर पड़ रहा है।

फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशन में पिछड़ी जाति के नेता का ही राज

मध्यप्रदेश कांग्रेस के शीर्ष पद से लेकर किसी भी संगठन के पद को देखें और उस पर बैठे नेता का नाम जरूर पूछें। आप जान जाएंगे कि उस पद पर जो नेता है वो पिछड़े वर्ग से आता है। ये कहानी किसी एकाध पद के लिए नहीं है। बल्कि, हर पद पर यही हाल है। कांग्रेस ने प्रदेश इकाई के हर पद पर पिछड़ी जाति के नेता को तवज्जो दी है। पीसीसी के जितने भी फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशन हैं यानी कि अहम संगठन है वहां पिछड़ी जाति के नेता का ही राज है। टॉप टू बॉटम हाल यही है। वैसे ये भी याद दिला दूं कि जो कांग्रेस जातिगत जनगणना की बात करती है। वही कांग्रेस जितनी आबादी उतना अधिकार का नारा भी बुलंद कर ही रही है, लेकिन खुद कांग्रेस में ही अगड़ों को बुरी तरह इग्नोर कर दिया गया है और ये हाल सिर्फ इसलिए नहीं है कि पीसीसी चीफ जीतू पटवारी खुद ओबीसी से आते हैं। बल्कि, ये फैसला आलाकमान के दरबार से होकर आ रहा है।

सामान्य वर्ग से केवल एक-दो संगठन के ही मुखिया

कांग्रेस के जितने भी मोर्चे हैं, उनमें से दो तिहाई से ज्यादा की कमान ओबीसी वर्ग के नेता को सौंप दी गई है। सामान्य वर्ग की हालत तो यह है कि केवल एक-दो संगठन के मुखिया का पद ही मिल सका है तो एससी-एसटी अपने वर्ग के ही संगठन तक सीमित कर दिए गए हैं। खैर एससी-एसटी कांग्रेस में तो इन्हीं वर्गों से मुखिया बनाना मजबूरी भी है। इनको छोड़ दें तो पूरी कांग्रेस में ओबीसी का एक तरफा राज ही दिखाई देगा। विपक्ष के नेता का पद भी एसटी के उमंग सिंघार के पास है। हालत यह हो गई कि अल्पसंख्यक कांग्रेस की कमान भी ओबीसी वर्ग के हाथों में ही सौंप दी गई है।

कांग्रेस में 40 मोर्चा और करीब 10 फ्रंटल आर्गेनाइजेशन

जानकारी के अनुसार कांग्रेस में 40 मोर्चा और करीब 10 फ्रंटल आर्गेनाइजेशन विभाग हैं। इनमें से आठ ऑर्गेनाइजेशन ऐसे हैं जिसमें ओबीसी वर्ग का नेता ही मुखिया है। इनमें भी प्रदेश से लेकर जिला कार्यकारिणी में भी पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व ज्यादा है। कांग्रेस के जिन नेताओं के हाथ में अलग-अलग संगठनों की कमान है वो कुछ इस तरह है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी, महिला कांग्रेस अध्यक्ष विभा पटेल, युकां अध्यक्ष मितेंद्र दर्शन सिंह यादव और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के अध्यक्ष आशुतोष चौकसे हैं। इसी तरह से सेवादल की कमान योगेश यादव,  किसान कांग्रेस की कमान दिनेश गुर्जर, पिछड़ा वर्ग कांग्रेस की कमान सिद्धार्थ कुशवाह, मोर्चा प्रकोष्ठ प्रभारी जेपी धनोपिया और अल्पसंख्यक कांग्रेस की कमान शेख अलीम के पास है।

प्रदेश कांग्रेस में बदलाव की अटकलें तेज हो रही हैं

कांग्रेस ने ये व्यवस्था क्यों की इसको लेकर बहुत से सवाल उठ सकते हैं। देखा जाए तो ये एक अच्छी सियासी व्यवस्था हो सकती है, लेकिन कांग्रेस फिलहाल इससे नुकसान ही उठा रही है। इस व्यवस्था के चलते दूसरे वर्गों के नेताओं में असंतोष है और उसका असर अब उनके कामकाज और आपसी मुद्दों और पार्टी के अंदर की व्यवस्था में भी नजर आने लगा है। दूसरी जातियों से आने वाले नेताओं में अब धीरे-धीरे बदलाव की मांग जोर पकड़ रही है। वैसे भी जीतू पटवारी के अध्यक्ष बनने के बाद से प्रदेश कांग्रेस में बदलाव की अटकलें तेज होती जा रही हैं। कई दिग्गज नेता इस फिराक में हैं कि उन्हें फिर पीसीसी में बड़ा पद मिल सकता है। ऐसी उम्मीद लगाने वाले नेताओं में जाति का कोई बंधन नहीं है। कुछ नेताओं का ये भी मानना है कि सबसे पहले प्रदेश कांग्रेस के अंदर ही जातिगत संतुलन बनाए रखने की जरूरत है। ये तभी संभव हो सकेगा जब प्रदेश कांग्रेस में बदलाव होंगे। इसके लिए पूरी कांग्रेस दिल्ली की तरफ ही टकटकी लगाकर बैठी है। जाति से जुड़े इस मुद्दे पर कांग्रेसियों में नाराजगी तो है, लेकिन बोलने से सभी कतरा रहे हैं। सिर्फ मीडिया प्रभारी मुकेश नायक ने ये भरोसा दिलवाया है कि आगे होने वाले बदलाव और नई नियुक्ति के दौरान इस असंतुलन को खत्म करने की पूरी कोशिश होगी। 

अब दूसरे वर्ग के नेता नाराजगी जताने लगे हैं

इस मामले में नाराजगी अंदर ही अंदर सुलग रही है, लेकिन खामोश रहने की वजह है आलाकमान की मुहर। असल में कांग्रेस के जितने बड़े संगठन है। सब पर नियुक्ति दिल्ली दरबार से ही होती है। आलाकमान के पास दो से तीन नामों का पैनल भेजा जाता है। जिसके नाम पर मुहर लगती है, उसके नाम का ऐलान उस पद के लिए कर दिया जाता है। अब तक आलाकमान ने हर पैनल में ऐसे नेता को चुना है जो पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं। कांग्रेस जिस हिसाब से राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना का मामला उठा रही है, उसे देखकर लगता है कि पीसी पर भी वही एजेंडा लागू हो रहा है, लेकिन अब इसकी वजह से दूसरे वर्ग के नेता नाराजगी जताने लगे हैं। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह के सामने भी कुछ कांग्रेसी अपनी ये नाराजगी जाहिर कर चुके हैं

राज्य में आधी आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की है

कांग्रेस में इस व्यवस्था की वजह क्या है। क्या कांग्रेस को लगता है कि पिछड़ों को ज्यादा पावर देकर कांग्रेस प्रदेश के उस वोट बैंक में सेंध लगा सकें। एक मोटा-मोटा अनुमान देखिए कि राज्य में 50.09 फीसद यानी आधी आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की है। यानी कि ओबीसी की अलग-अलग जातियों की है। इसी तरह प्रदेश में अनुसूचित जाति की आबादी 15.6 फीसद है। माना जा रहा है कि इस आधी आबादी को साधने के लिए कांग्रेस ने यह दांव चला है। हालांकि, ये दांव लोकसभा चुनाव में बिलकुल काम नहीं आया। सिर्फ लोकसभा चुनाव ही क्यों। अगर हम विधानसभा चुनाव की बात करें तो उस समय जीतू पटवारी के अलावा कांग्रेस की पूरी जमावट यही थी। दोनों ही चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहा ये बताने की जरूरत नहीं। यानी इशारा साफ है कि कांग्रेस को पीसीसी में संतुलन बनाने की जरूरत है। जिसके लिए बदलाव बहुत जरूरी है। जो कांग्रेस के स्तर पर लगातार टल रहा है।

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