News Strike : वसीम बरेलवी की लिखी ये वो पंक्तियां हैं, जो मध्यप्रदेश की सत्ता में गूंजी और पंद्रह महीने में ही कमलनाथ की सरकार लड़खड़ा कर गिर गई। एक बार फिर वही मुद्दा प्रदेश में जोर पकड़ रहा है, लेकिन इस बार न उसूलों की बात हो रही है और न ही किसी के पुराने वादों पर आंच आ रही है। बल्कि जिसे अतिथि देवो भव का दर्जा मिलना चाहिए था, उसके लिए कह दिया गया कि वो मेहमान है अब क्या पूरे घर पर कब्जा करके मानेंगे। हम बात कर रहे हैं प्रदेश के अतिथि शिक्षकों की। सरकारें बदलीं और अब तो मुखिया भी बदल गए, लेकिन उनकी मांग ज्यों कि त्यों है। यही वजह है कि अतिथि शिक्षक एक बार फिर सड़कों पर हैं।
बार-बार सपने दिखाकर नजरअंदाज किया जाता है
मध्यप्रदेश में अतिथि शिक्षकों का मुद्दा कोई नया नहीं है। बल्कि पंद्रह साल से वो लगातार अपनी मांगों को लेकर इसी तरह प्रदर्शन करते आ रहे हैं, लेकिन हालातों में कोई खास फर्क नजर नहीं आया है। अलबत्ता वो सियासतदानों के हाथ का खिलौना जरूर बनते रहे हैं। कभी सत्ता में बने रहने की खातिर, इनके वोट के लिए राजनेता आश्वासनों की झड़ी लगा देते हैं। कभी पंचायत कर उनके दिन बदलने के सपने दिखाते हैं और कभी ऐसा होता है कि उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। अतिथि शिक्षकों के मुद्दे को पूरा तफ्सील से समझेंगे। पर सबसे पहले जान लीजिए कि किन मांगों को लेकर प्रदेश के अतिथि शिक्षक इतनी लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं। बापू की जयंती यानी 2 अक्टूबर को एक बार फिर प्रदेश के अतिथि शिक्षकों ने राजधानी का रुख किया था। अतिथि शिक्षकों की हमेशा से सबसे बड़ी मांग रही है नियमितीकरण की। जिसकी खातिर बार-बार ये अतिथि शिक्षक राजधानी में डेरा जमा लेते हैं।
इसके अलावा अतिथि शिक्षक की ये मांगे हैं...
पीरियड नहीं बल्कि, महीने के हिसाब से मानदेय।
एक साल के लिए कॉन्ट्रेक्ट हो, इसे हर साल आगे बढ़ाया जाए।
शिक्षक भर्ती में 25% को बढ़ाकर 50% किया जाए।
हर महीने एक निश्चित तारीख पर मानदेय मिले।
पात्रता परीक्षा लेकर अतिथि शिक्षकों को नियमित करने की दिशा में योजना बनाई जाए।
साल के बीच में कोई गैप न हो, न ही किसी अतिथि शिक्षक की सेवा समाप्त की जाए।
ये वो मांगें हैं जिन्हें लेकर अतिथि शिक्षकों ने मोर्चा खोला। इसके बदले फिलहाल प्रदेश की स्थाई सरकार से उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला। उल्टा एक विवादित बयान जरूर सुनने को मिल गया। इन अतिथि शिक्षकों के लिए प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदयप्रताप सिंह ने कहा इनका नाम ही अतिथि है। अतिथि यानी कि मेहमान बनकर आएंगे तो क्या पूरे घर पर ही कब्जा कर लेंगे। जो पदनाम है उसके अनुसार तो ये तर्क सही है कि अतिथि शिक्षक का मतलब ही है कि वो रेगुलर टीचर्स से अलग होंगे, लेकिन ऐसा ही है तो हर बार हर सरकार में उन्हें एक नया आश्वासन क्यों मिलता है। क्यों हर बार सरकार उनके दम पर बनती बिगड़ जाती है। ये उदाहरण ज्यादा पुराना नहीं है। बात 2020 की ही है। जब प्रदेश में कमलनाथ की सरकार काबिज थी। तब भी अतिथि शिक्षकों का मामला प्रदेश में तेजी से गर्मा रहा था। उस वक्त इस मुद्दे को उठाकर राजनीतिक रोटियां खूब सेंकी गईं।
अतिथि शिक्षकों के लिए उम्मीद की किरण बने सिंधिया
ज्योतिरादित्य सिंधिया जो उस वक्त कांग्रेस के नेता थे वो अतिथि शिक्षकों के लिए उम्मीद की किरण बनकर आए और उनसे वादे भी किए। अगर आप भूल चुके हों तो मैं आपको पूरा वाकया याद दिला देता हूं। साल 2018 में भी अतिथि शिक्षकों का प्रदर्शन इसी तरह जारी था। उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया इन अतिथि शिक्षकों के बीच पहुंचे थे। सिंधिया ने पूरे दम से उन्हें वादा किया कि उनकी मांगों की खातिर वो भी सड़क पर उतर आएंगे। सिंधिया के इस रूख पर तत्कालीन सीएम कमलनाथ से सवाल हुआ। कमलनाथ ने भी सपाट लहजे में जवाब दिया कि तो उतर आएं। इसके बाद मसला इतना बढ़ा कि सिंधिया वाकई सड़क पर उतर आए। अतिथि शिक्षकों के बहाने प्रदेश में राजनीतिक बवंडर आया और कमलनाथ की सरकार को ढहाकर गुजर गया।
अतिथि शिक्षक जहां थे वहीं के वहीं हैं
कमलनाथ की सरकार गिर गई। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार दोबारा प्रदेश पर काबिज हुई। सिंधिया जो चाहते थे वो भी उन्हें मिल गया। वो वापस पावर में लौटे। बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा के जरिए सांसद और फिर केंद्रीय राज्य मंत्री का ओहदा दिया। उनके अधिकांश समर्थकों को मंत्रीपद और मन मुताबिक विभाग भी मिले, लेकिन अतिथि शिक्षक वहीं के वहीं रह गए। सिंधिया के उसूलों की लाज रखने की खातिर शिवराज सिंह चौहान ने एक महापंचायत जरूर की और कहा कि एक योजना बनाई जाएगी और अतिथि शिक्षकों के नियमितिकरण का रास्ता भी निकाला जाएगा। इसके बाद से अतिथि शिक्षक जहां थे वहीं के वहीं हैं। महापंचायत में जो आश्वासन मिले उसका कोई लाभ अतिथि शिक्षकों को नहीं मिला। 2020 से 2023 तक शिवराज सिंह चौहान की सरकार ही काबिज रही। इसके बाद साल 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद भी बीजेपी की ही सरकार की वापसी हुई। अब तो सरकार भी अपनी है। सरकार के पास पर्याप्त समय भी है। इसके बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया इस मुद्दे पर खामोश हैं। अतिथि शिक्षकों का रास्ता भी बैरिकेड लगाकर रोका जा रहा है। कभी उन्हें प्रदर्शन स्थल से जबरदस्ती उठाया जा रहा है, लेकिन उनकी मांग सुनने वाला कोई नहीं। उल्टे स्कूल शिक्षा मंत्री के बयान से ये जरूर साफ हो चुका है कि नियमितिकरण का आश्वासन उनके लिए महज एक सपना बनकर ही रहने वाला है।
असल में ये कोई छोटा मोटा मुद्दा नहीं है। प्रदेश में अतिथि शिक्षकों की संख्या 70 हजार के आसपास है। फिलहाल प्रदेश पर जबरदस्त कर्ज है। उस पर लाड़ली लक्ष्मी योजना को पूरा करना भी एक चैलेंज है। ऐसे में फिलहाल अतिथि शिक्षकों की मांगों को पूरा करने में सरकार सक्षम नजर नहीं आती है।
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