News Strike : जीतू पटवारी का प्रदेश में हल्ला बोल, छोटे मुद्दों पर भी बड़े आंदोलन की तैयारी !

मध्यप्रदेश में पिछले करीब दो दशक से कांग्रेस के क्या हाल हैं ये किसी से छिपा नहीं है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस लगातार कमजोर पर कमजोर होती चली गई। ऐसा लगता है कि खुद नेताओं ने पार्टी को किस्मत के भरोसे छोड़ दिया है...

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Harish Divekar
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News Strike : मध्यप्रदेश में कांग्रेस का कोई नेता अगर ये गुनगुनाता दिखे, सुख भरे दिन बीते रे भईया.... बीते रे भईया... तो हैरान मत होइएगा। क्योंकि अब प्रदेश में कांग्रेस के नेताओं की आराम तलबी के दिन अब बीत चुके हैं। आलाकमान ने कांग्रेस के लिए ऐसा फरमान जारी किया है, जिसके बाद दिमाग भी दौड़ाना पड़ेगा और फिजिलकल मशक्कत भी जमकर करनी पड़ेगी। इस बार भी आलाकमान के आइडिये पर सबसे पहले एक्टिव हुए हैं दिग्विजय सिंह। जीतू पटवारी भी अपनी टीम के साथ हल्ला बोल के मोड में आ चुके हैं।

कांग्रेस लगातार कमजोर होती चली गई

मध्यप्रदेश में पिछले करीब दो दशक से कांग्रेस के क्या हाल हैं ये किसी से छिपा नहीं है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस लगातार कमजोर पर कमजोर होती चली गई। साल 2018 में कांग्रेस ने चुनाव जीता और सत्ता में वापसी की थी तो लगा था कि अब कांग्रेस खूब चलेगी, लेकिन कांग्रेस की सरकार 15 महीने से ज्यादा लंबा समय नहीं खींच पाई। अपनों ने ही कांग्रेस की सरकार पर ऐसा वार किया कि सरकार धराशायी हो गई। उसके बाद से कांग्रेस लगातार पस्त नजर आ रही है। ऐसा लगता है कि खुद पार्टी के नेताओं ने हथियार डाल दिए हैं और पार्टी को किस्मत के भरोसे छोड़ दिया है। 

मैसेज ये है कि कांग्रेस को रिवाइव करें, रिलाइव करें

विधानसभा में कांग्रेस का परफोर्मेंस बहुत बेकार रहा और लोकसभा में तो उसे पुअरेस्ट परफोर्मेंस कहें तो भी गलत नहीं होगा। जिसमें कांग्रेस एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हुई। विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में बड़े बदलाव भी हुए और लीडरशिप की कमान नए चेहरों के हाथ में दे दी गई। उसके बाद भी कांग्रेस में वो एनर्जी अब तक नजर नहीं आई। जिसकी दरकार थी। कांग्रेस अब भी उतनी ही सुस्त और शांत दिखाई देती है, जबकि नेशनल लेवल पर कांग्रेस ने रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी सदन से लेकर सड़क तक एग्रेसिव रुख अपना रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस का हाल ये ही कि कहीं धमक सुनाई ही नहीं देती। अब खुद पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने इसका तोड़ निकाला है और प्रदेश के नेताओं को नया फरमान जारी कर दिया है। अब कांग्रेस नेता अपने दफ्तर के कमरों में बैठकर सिर्फ बीजेपी के खिलाफ बाइट्स नहीं देते दिखेंगे। बल्कि, उनको प्रदेश की गली-गली और कूचे-कूचे में जाकर एक्टिवली सरकार के खिलाफ मुद्दे उठाने होंगे। कांग्रेस आलाकमान ने सख्त निर्देश दिए हैं कि पार्टी के नेता नए-नए मुद्दे तलाशें और ब्लॉक स्तर से लेकर जिला स्तर तक प्रदर्शन के लिए तैयार रहें। कुलजमा मैसेज ये है कि कांग्रेस को रिवाइव करें, रिलाइव करें और संघर्ष की भूमिका में नजर आएं। स्वतंत्रता दिवस बीतने के बाद ही कांग्रेस के कुछ नेताओं की आराम करने की आजादी भी छिन ही जाएगी। अब सब नेताओं को प्रदेश के लेवल से लेकर जिले के लेवल तक एक्टिव होना है। हर महीने किन मुद्दों पर बैठक हो सकती है और किन मुद्दों पर जनता की आवाज बना जा सकता है, उसका एक कैलेंडर भी तैयार करना होगा। इस तरह पार्टी के हर नेता को कांग्रेस को एक्टिव करने की जिम्मेदारी संभालनी होगी और अपना-अपना कंट्रीब्यूशन देना होगा। 

पंद्रह दिन में चार बड़े आंदोलन करेगी कांग्रेस!

इसके लिए एक और होमवर्क करने का काम कांग्रेस नेताओं के सुपुर्द किया गया है। कांग्रेस नेताओं को ये देखना है कि उनके क्षेत्र में पिछले से एक से डेढ़ दशक के बीच कितने निर्माण हुए या कौन-कौन से जरूरी काम हुए। इन कामों में नेताओं को कमियां तलाशना है। उस पर डिस्कशन करना है और फिर जनता के बीच उसे एग्रेशन के साथ लेकर जाना है। इसके अलावा पेपर लीक मामला, नर्सिंग घोटाला जैसे मुद्दा तो छाया ही रहेगा। डेम फूटने जैसे मुद्दों पर भी कांग्रेस नेताओं को चुप न बैठने के लिए ताकीद किया गया है। 
कांग्रेस का ये बदला हुआ स्वरूप इसी महीने से यानी कि अगस्त से ही दिखाई देने वाला है। बेशक इस महीने के 15 दिन बीत चुके हैं, लेकिन कांग्रेस की कोशिश है कि अगले पंद्रह दिन में चार बड़े आंदोलन कर दिए जाएं।  जिनकी धमक बीजेपी और कांग्रेस आलाकमान दोनों के दरबार तक सुनाई दे। कांग्रेस नेताओं के बदले हुए सुर सुनकर लगता है कि अगस्त माह के बचे खुचे दिन भारी बवाल से भरपूर होंगे। कुछ नेता तो इस रणनीति को कांग्रेस की अगस्त क्रांति कहने से भी नहीं चूक रहे। 

कांग्रेस ने आंदोलन की शुरुआत के लिए उज्जैन को चुना

आपको बता दें कि अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज अगस्त में ही किया था। 9 अगस्त 1942 को ये आंदोलन शुरू हुआ था। जिसे अगस्त क्रांति का नाम भी दिया गया था। उसी तर्ज पर कांग्रेस ने अपने आंदोलनों को अगस्त क्रांति मान लिया था। जिसके बाद बापू के दूसरे नारे करो या मरो पर भी अमल करने की पूरी तैयारी है। अब कांग्रेस के पास अगस्त क्रांति को अमलीजामा पहनाने के लिए बमुश्किल 15 दिन का समय है। इस क्रांति की शुरुआत आज से हो चुकी है। कांग्रेस ने आंदोलन की शुरुआत के लिए उज्जैन शहर को चुना है। जो मध्यप्रदेश के मुखिया मोहन यादव का गढ़ भी है। यहां से कांग्रेस ने हल्ला बोल आंदोलन शुरू किया। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह खुद उज्जैन पहुंचे। उनके अलावा कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार, अरूण यादव सहित कई नेता उज्जैन पहुंचे। पहले आमसभा हुई और उसके बाद कांग्रेस नेताओं ने पद यात्रा भी की। 

कांग्रेस की पूरी तैयार बीजेपी को घेरने की है

वैसे ये आंदोलन पहले 13 अगस्त को प्रस्तावित था, लेकिन दिल्ली की बैठक के चलते जीतू पटवारी का वहां जाना मजबूरी था। इसके बाद 14 अगस्त को सिक्योरिटी रीजन्स की वजह से परमिशन नहीं मिली। जिसके बाद आंदोलन 16 अगस्त तक पोस्टपोंड हो गया था। इस आंदोलन के बाद अब कांग्रेस प्रदेश के अलग-अलग जिलों या क्षेत्रों को निशाना बनाएगी। ऐसी जगह जो किसी भी क्षेत्र का पावर सेंटर बन चुकी हैं वहां कांग्रेस का प्रदर्शन होगा। कांग्रेस की पूरी तैयार किसान, युवा, वचन पत्र के वादे, कर्ज, महंगाई, कानून व्यवस्था के मुद्दों पर बीजेपी को घेरने की है। इससे पहले कांग्रेस छतरपुर, दतिया, सागर, इंदौर और लहार में भी आंदोलन कर चुकी है। इंदौर में कांग्रेस के हंगामे के दौरान एक प्रेसकर्मी को चोट आई थी। सागर का कांग्रेस का आंदोलन इतना जबरदस्त था कि प्रशासन को वॉटर कैनन तक का उपयोग करना पड़ गया था। 

कांग्रेस को अब धीरे-धीरे जंगी रुख अख्तियार करना है। हालांकि, बीजेपी को ये भरोसा है कि कांग्रेस की गुटबाजी उसे किसी रणनीति पर अमल करने नहीं देगी। अब आने वाले पंद्रह दिन ये तय करेंगे कि वाकई कांग्रेस ये साबित कर पाती है कि उसमें प्रदेश में जिंदा होने की ललक है या फिर बीजेपी का अंदेशा सही साबित होता है और कांग्रेस वापस सुस्त मोड में चली जाती है।

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