News Strike : मध्यप्रदेश में आखिरकार मंत्रियों को जिलों का प्रभार सौंप दिया गया है। इस मामले में प्रदेश सरकार जरा देर से आई, लेकिन जब आई तो चौंकाया बहुत। सीएम मोहन यादव ने जिलों का जो बंटवारा किया है। हर बार की परंपरा से काफी अलग है। वैसे तो हर सीएम के राज में मंत्रियों को जिलों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, लेकिन इस बार बहुत कुछ ऐसा है जो हर बार से अलग है। आज मैं आपको बताता हूं कि मंत्रियों को जिलों का प्रभार क्यों सौंपा जाता है। इस बार जिलों के प्रभार की लिस्ट साफ बता रही कि कौन हुआ दमदार, किसके पर कतरे गए हैं और ये भी कि सीएम का नाम खुद क्यों इस लिस्ट में शामिल है।
प्रभारी की लिस्ट में सीएम का नाम चौंकाने वाला
मध्यप्रदेश में मंत्रियों को करीब सात माह के लंबे इंतजार के बाद जिलों का प्रभार सौंपा गया है। इस लिस्ट को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसे तैयार करने में इतना समय क्यों लगा होगा। सुनने में तो ऐसा ही लगता है कि जिलों प्रभार देने में क्या नया है। ये तो हर बार की प्रक्रिया है, लेकिन इस बार एक लिस्ट से बहुत सारे नए समीकरण साधे गए हैं। इस लिस्ट में जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है वो खुद सीएम मोहन यादव का नाम। इस बारे में मैंने खुद बहुत सोचा अपनी याददाश्त पर जोर डाला, लेकिन मुझे मंत्रियों के प्रभार वाली ऐसी कोई लिस्ट याद नहीं आई जिसमें खुद सीएम का नाम शामिल हो। इस बारे में कुछ पुराने राजनीतिक जानकारों से भी चर्चा हुई, लेकिन उनके लिए भी लिस्ट में सीएम का नाम उतना ही चौंकाने वाला है। खासतौर से हम बीजेपी की सरकार के पिछले बीस सालों की बात करें तो।
सीएम तो पूरे प्रदेश का मुखिया होता है...
इसके बाद ये सोचना तो लाजमी है कि आखिर सीएम मोहन यादव ने ऐसा फैसला क्यों लिया। सबसे पहले इस लिस्ट से जुड़े, हैरान करने वाले इसी प्वाइंट पर बात करते हैं। मंत्रियों की जिलों वाली लिस्ट में 55 जिले का प्रभार 32 मंत्रियों को सौंपा गया है। जिसमें से इंदौर का प्रभार सीएम ने खुद अपने पास रखा है। लिस्ट जारी होने के बाद से ये नई पहल राजनीतिक हलकों में खूब डिस्कस की जा रही है। इसको हम कुछ यूं समझ सकते हैं कि सीएम मोहन यादव शायद अपने कैबिनेट के साथियों को कुछ नया संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे तो सीएम पूरे प्रदेश का मुखिया होता है। वो किसी एक जिले के ही बारे में नहीं सोच सकता, लेकिन प्रदेश की आर्थिक राजधानी की कमान सीधे उनके हाथ में होगी तो इसका असर कुछ और ही हो सकता है। वैसे भी मालवा में बीजेपी पिछले चुनाव में बहुत ज्यादा मजबूत हुई है, लेकिन यहां दल बदल की वजह से गुस्सा भी बहुत देखा गया है। अब ये उम्मीद है कि सीएम खुद मालवा के सबसे बड़े जिले और संभाग की कमान संभालेंगे तो सारी शिकायतें और नाराजगी उन तक पहुंचेगी और वो वहीं फर्स्ट हैंड डिसिजन लेकर उसे सॉल्व भी कर सकेंगे। मुख्यमंत्री खुद उज्जैन से। उज्जैन वो शहर है जो इंदौर की सीमाओं को छूता है। इंदौर से लेकर उज्जैन और फिर ओंकारेश्वर तक टूरिज्म का नया हब बनाने की पहल भी जारी है। इंदौर का प्रभारी होने के नाते खुद मोहन यादव इस योजना से भी सीधे टच में रहेंगे। ये भी उम्मीद की जा सकती है कि उनकी सक्रियता मंत्रियों के बीच एक हेल्दी कॉम्पिटिशन की वजह बनेगी और वो भी अपने प्रभार वाले जिलों पर ज्यादा ध्यान देंगे, लेकिन इसमें भी बहुत सारे पेंच हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबदबा अब भी कायम है!
जिलों के जो प्रभार बंटे हैं उसके समीकरण भी अलग-अलग हैं और चौंकाने वाले है। यही हमारे डिस्कशन का दूसरा प्वाइंट भी है जो काफी गौर करने लायक है। प्रभारी मंत्रियों की ये लिस्ट जाहिर करती है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबदबा अब भी प्रदेश में कायम है। जो लिस्ट बनी है उसे देखकर ये अंदाजा लगाना आसान है कि इसमें उनकी सहमती जरूर शामिल होगी। सिंधिया की हमेशा कोशिश रही है कि उनकी लोकसभा सीट का प्रभार हमेशा ऐसे मंत्री के पास ही रहे जो उनका समर्थक है। इस बार भी वो इसमें कामयाब रहे हैं। उनके खेमे से आने वाले सीनियर एमएलए और मोहन यादव कैबिनेट के मंत्री तुलसी राम सिलावट को ग्वालियर और बुरहानपुर का जिम्मा मिला है। उनके दूसरे कट्टर समर्थक मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को गुना जिले का प्रभार दिया गया है साथ ही नरसिंहपुर भी उन्हीं के खाते में है। ये नाम इसलिए चौंका रहे हैं क्योंकि इन जिलों को लेकर इस बार कुछ अलग चर्चाएं थीं। चर्चा थी कि इस बार ग्वालियर का प्रभार सिंधिया समर्थक को मिलना मुश्किल है। इस जिले के प्रभार की रेस में इंदर सिंह परमार का नाम चल रहा था और दूसरा नाम नए नवेले भाजपाई हुए और मंत्री बने राम निवास रावत का चल रहा था। बात करें सिंधिया के तीसरे समर्थक मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की तो वो शिवपुरी और पांढुर्णा का प्रभार संभाल रहे हैं। ये नाम देखकर कौन इंकार कर सकता है कि गुना शिवपुरी और ग्वालियर में जमावट सिंधिया के मनमुताबिक नहीं हुई है।
प्रभार वाली लिस्ट में दोनों उपमुख्यमंत्रियों की ताकत बढ़ी
अब बात करते हैं लिस्ट के तीसरे प्वाइंट की और ये मत समझिए कि आखिरी प्वाइंट है तो बस यूं ही होगा। याद रखिए लास्ट बट नॉट लीस्ट। प्रभार वाली लिस्ट में दोनों उपमुख्यमंत्रियों की ताकत बढ़ा दी गई है, ये भी नजर आ रहा है, लेकिन कुछ मंत्री ऐसे भी हैं जिनकी ताकत कुछ कम कर दी गई है। पहले बात करते हैं उपमुख्यमंत्रियों की। दोनों डिप्टी सीएम को बड़े संभाग वाले जिले सौंपे गए हैं। जगदीश देवड़ा को जबलपुर और देवास का प्रभार सौंपा गया है और राजेंद्र शुक्ला के पास सागर संभाग का सबसे बड़ा जिला सागर और दूसरा शहडोल है, जबकि कुछ बड़े मंत्रियों को छोटे जिले तक सौंप दिए गए हैं। इसमें सबसे पहला नाम कैलाश विजयवर्गीय का ही है जो मोहन कैबिनेट के सबसे सीनियर मंत्री हैं और इंदौर के कद्दावर नेता हैं। इनका इंदौर सीएम के पास है और कैलाश विजयवर्गीय को सतना और धार का प्रभार दे दिया गया है। प्रहलाद पटेल को भिंड और रीवा की जिम्मेदारी मिली है और राकेश सिंह को छिंदवाड़ा और नर्मदापुरम का प्रभार दे दिया गया है। हालांकि, कुछ राजनीति जानकार ये भी मान कर चल रहे हैं कि सतना में चल रहे चित्रकूट प्रोजेक्ट का काम ठीक तरह से जारी रह सके इसलिए कैलाश विजयवर्गीय को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है।
मोहन यादव जब से सीएम बने हैं राजनीतिक हलकों की नजरें उनके काम करने पर टिकी हैं। जो ये जानना चाहते हैं कि इतने सारे सीनियर्स से घिरे मोहन यादव किस तरह से फैसले ले पाते हैं और मंत्रियों से काम करवा पाते हैं। प्रभार वाले जिलों की ये लिस्ट उसकी पहली बानगी समझी जा सकती है। जो उनके इंडिपेंडेंट डिसिजन्स की झलक साफ दिखा रही है।
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