News Strike : आपने गायों को अक्सर चारा खाते हुए ही देखा होगा, लेकिन मध्यप्रदेश में गाय एससीएसटी का बजट चर गई हैं। अब इस घटना की जुगाली इतने दिन से चल रही है कि उससे सत्ता और शासन तक सब परेशान हो गए हैं। इससे बचने के लिए सरकार ने खंडन के डंडे से भी हकालने की कोशिश की, लेकिन अब गाय भैंसों का हाल तो आप जानते ही हैं। एक बार जहां जम गईं वहां जम गईं आसानी से कहां उठती है वही हाल इस मसले का भी है। गाय, भैंस, चारा, गौशाला के मुद्दे ने इतना जोर पकड़ा है कि सरकार की सफाई भी से मामला शांत नहीं हुआ है।
गोशालाओं के हालात सुधारने की कवायद
एमपी अजब है और सबसे गजब है ये तो सभी जान चुके हैं। इसी अजब एमपी में एक और गजब कारनामा हुआ है। मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ समय पहले घोषणा की थी कि प्रदेश में हर गाय के लिए 40 रुपए का अनुदान दिया जाएगा। उनकी घोषणा से पहले तक यह राशि मात्र 20 रुपए हुआ करती थी। गायों के लिए अनुदान राशि बढ़ाते समय ही ये भी ऐलान हुआ था गोशालाओं की हालत को सुधारा जाएगा। ये जो ऐलान हुए हैं। अच्छी बात हैं गायों की फिक्र होनी ही चाहिए। न सिर्फ गाय की बल्कि, उन जगहों की भी चिंता होनी चाहिए जहां गायों को रखा जाता है। यानी गोशालाओं की। मध्यप्रदेश सरकार यही कर भी रही है। गायों की सेहत के लिए बजट सेंक्शन होता है तो ये अच्छी ही बात है। 'द सूत्र' सरकार की इस सोच की सराहना करता है।
गायों के कल्याण के लिए 252 करोड़ का प्रावधान
बात गाय या गोशाला की नहीं है। बात है बजट की। मध्य प्रदेश सरकार की ओर से अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आवंटित राशि के एक हिस्से को गो-कल्याण और मंदिरों के रख-रखाव के लिए दिया गया है। अनुसूचित जाति और जनजाति विभाग के पैसों को दूसरी जगह इस्तेमाल की जानकारी हाल ही में पेश किए गए राज्य सरकार के बजट से मिली है। बजट से ये पता लगा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के कल्याण और उत्थान के लिए मिलने वाली राशि का पैसा दूसरे विभागों में खर्च किया जा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार ने इस साल गायों के कल्याण के लिए 252 करोड़ का प्रावधान किया है। इस बजट में 96 करोड़ रुपए अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति विशेष योजना के हैं, जिसे केंद्र सरकार ने आवंटित किया था। साथ ही सरकार ने प्रदेश में मंदिरों और स्मारकों को भी बेहतर बनाने की घोषणा की थी। इसके लिए भी पैसा अनुसूचित जाति और जनजाति के फंड से दिया गया। संस्कृति विभाग को पांच मंदिरों और स्मारकों के लिए इस फंड से 58 लाख रुपए दिए जा रहे हैं। पहले आपको एससी एसटी से जुड़ी उपयोजना क्या है। एसटी उप-योजना की शुरुआत 1974 में और एससी उप-योजना की शुरुआत 1979-80 में की गई थी। इसके तहत राज्यों को कमजोर वर्गों की शिक्षा और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने की देखभाल करने का प्रावधान किया गया है। इस योजना के तहत केंद्र राज्यों को उनकी एससी/एसटी उप-योजनाओं के वित्त पोषण के लिए 100% विशेष सहायता देता है।
ऐसा करने वाला मध्यप्रदेश इकलौता राज्य नहीं
अब बात करते हैं ताजा मामले की। बता दें कि गोकल्याण कोष में पिछले साल की तुलना में लगभग 90 करोड़ रुपए का इजाफा हुआ है। जानकारी के अनुसार गोसंवर्धन और पशुपालन के लिए 252 करोड़ रुपए में से 95.76 करोड़ एससी/एसटी उप-योजना से आवंटित किए गए हैं। इसी प्रकार छह धार्मिक स्थलों के पुनर्विकास के लिए, चालू वित्तीय वर्ष के लिए आवंटित धनराशि का लगभग आधा हिस्सा एससी/एसटी उप-योजना से है। सरकार ने जुलाई में पेश बजट में सीहोर में श्री देवी महालोक, सागर में संत श्री रविदास महालोक, ओरछा में श्री राम राजा महालोक, चित्रकूट में श्री रामचंद्र वनवासी-महालोक और ग्वालियर में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के स्मारक के विकास के लिए 109 करोड़ रुपए की घोषणा की थी। यानी इन लोकों का निर्माण SC-ST Sub-Plan के पैसों से होगा। आपको ये भी बता दें कि ऐसा करने वाला मध्यप्रदेश पहला या इकलौता राज्य नहीं है। इससे पहले कर्नाटक सरकार भी ऐसा कर चुकी है। कर्नाटक में भी एससी-एसटी की योजनाओं की राशि दूसरी योजनाओं में डायवर्ट की जा चुकी है। कल्याण योजना के लिए उप-योजना से 14,000 करोड़ रुपए लेने के कर्नाटक के फैसले के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने तुरंत कार्रवाई भी की थी। आयोग ने सरकार से स्पष्टिकरण मांगा और उसके बाद कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था।
ये दलित-आदिवासियों के साथ हकमारी का मामला है
इस मामले का खुलासा होते ही दलित और आदिवासी संगठनों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आने लगी है। इस मामले में 'द सूत्र' ने SC-ST मामलों के जानकार डॉ. एसके सदावर्ते से बात की। उनका कहना है कि यह उप-योजना के लिए पूर्ववर्ती योजना आयोग द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पूरी तरह उल्लंघन है। उनके हिसाब से ये दलित-आदिवासियों के साथ हकमारी का मामला है। इस बारे में हमने समाजसेवी डॉ. मेजर मनोज राजे से भी चर्चा की। उनके मुताबिक ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में Scheduled Caste Sub Plan (SCSP) और TSP ( Tribe Sub Plan ) के लिए दिशा-निर्देश योजना आयोग ने तैयार किए गए थे। इसके अनुसार, विभाग को एससीएसपी और टीएसपी के लिए निर्धारित धनराशि को अलग रखना चाहिए, ताकि इसे किसी अन्य योजना में डायवर्ट न किया जा सके। आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ और द कांस्टीट्यूशन फोरम के प्रोफेसर डॉ. पीडी महंत भी बजट के यूज में बदलाव को सही नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि एससीएसपी और टीएसपी के तहत केवल उन योजनाओं को शामिल किया जाए जिनसे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों या परिवारों को सीधा लाभ मिलता हो। इस राशि का मंदिरों, संग्रहालयों और गोशालाओं के निर्माण के लिए उपयोग नहीं हो सकता।
दलित कर्मचारी संगठनों का आरोप, ये योजना का दुरुपयोग
'द सूत्र' ने इस मामले में और तह तक जाने की कोशिश की और आदिवासी विभाग के अफसरों से भी संपर्क किया। मामले में एक अधिकारी ने कुछ कहने की तो हिम्मत जुटाई, लेकिन नाम न जाहिर करने की गुहार भी लगाई। इस अधिकारी के मुताबिक धार्मिक गलियारों और संग्रहालय में दुकानें होंगी, जहां सभी वर्गों के लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। आदिवासी परंपरा को बढ़ावा देने के लिए गलियारों में कलाकृतियां भी बनाई जाएंगी। हालांकि, दलित कर्मचारी संगठनों का आरोप है कि एससी/एसटी उप-योजना का डायवर्जन केंद्र की योजना का दुरुपयोग है और एससी एसटी वर्ग के साथ नाइंसाफी है। वैसे तो सरकारी नुमाइंदे ये जताने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि बजट एससीएसटी कल्याण पर ही खर्च होगा और कुछ गलत नहीं हुआ है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मामले ने सरकार की नाक में दम जरूर किया है। जिसके बाद सरकार की ओर से बकायदा इस योजना और बजट से जुड़े कई बिंदुओं का खंडन किया गया है और जानकारी दी गई है कि कौन सा बजट कहां पर इस्तेमाल हो रहा है।
इस खंडन से इतना तो साफ है कि बजट से जुड़े इस मसले से सरकारी गलियारों में उथल पुथल तो मची है। खंडन की वजह भी यही है। चौंकाने वाली बात ये है कि इतने बड़े मुद्दे पर प्रदेश का विपक्ष पूरी तरह खामोश ही रहा। अब देखना ये है कि क्या ये खंडन एससी एसटी संगठनों की नाराजगी दूर करेगा या इस आग की लपटें अभी और ऊपर उठेंगी।
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