News Strike : नागर सिंह चौहान की नाराजगी, BJP में बजा खतरे का बिगुल, कैसे होगा डैमेज कंट्रोल ?

मध्यप्रदेश बीजेपी में ताजा मामला उस नेता का है जो मोहन कैबिनेट में मंत्री है इसके बावजूद नाराज हैं। बीजेपी के घरवाले यानी वो नेता जो पार्टी लाइन को अच्छे से समझते हैं। वही नेता अब गुस्सा दिखाने से बाज नहीं आ रहे...

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Harish Divekar
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News Strike : अनिल कपूर की फिल्म याद है आपको, घरवाली बाहरवाली। मध्यप्रदेश की सरकार का हाल भी आज कल इन दोनों के बीच में बंटा हुआ है। फिल्म में अनिल कपूर अगर घरवाली की सुनते तो बाहरवाली रूठ जाती थी और बाहरवाली पर ध्यान दिया तो घरवाली खफा हो जाती थी। बीजेपी सरकार में भी बाहरवाले को मनाने की कोशिश होती है तो घर वाले रूठ जाते हैं। पहले तो ये गुस्सा और रूठा राठी पार्टी के भीतर ही रहती थी, लेकिन अब घरवाली या यूं कहें कि घरवालों का पारा हाई हो चुका है और आवाज मुखर। जो खुलेआम पार्टी आलाकमान का नाम लेकर आंखें तरेरने से नहीं कतराते हैं। 

समझते हैं इस घरवाले और बाहरवाले झगड़े को...

ताजा मामला उस नेता का है जो मोहन कैबिनेट में मंत्री है इसके बावजूद नाराज हैं। बीजेपी के घरवाले, यानी वो नेता जो पार्टी लाइन को अच्छे से समझते हैं। इसी पार्टी के डिसिप्लीन में पगे हुए हैं। वही नेता अब गुस्सा दिखाने से बाज नहीं आ रहे और सारा झगड़ा हुआ है बाहरवाले की वजह से। जो बिना घरवालों की मर्जी से उनके घर में घुस आया है या घुसा दिया गया है। नाराजगी जताने वाले घर वाले नागर सिंह चौहान। घरवाले और बाहरवाले के झगड़े को समझे उससे पहले जान लीजिए कि नागर सिंह चौहान किस कद के नेता हैं।

नागर सिंह चौहान बड़े आदिवासी नेता हैं

मोहन सरकार में मंत्री नागर सिंह चौहान भारतीय जनता युवा मोर्चा की कार्यसमिति के सदस्य हैं। मंत्री नागर नगरपालिका अलीराजपुर के अध्यक्ष रहे हैं। 2003 में पहली बार विधायक चुने गए नागर सिंह चौहान, 2008 में दूसरी बार, 2013 में तीसरी बार और बीते साल यानी 2023 में चौथी बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। इससे बड़ा दबदबा इस बात का है कि नागर सिंह चौहान बड़े आदिवासी नेता हैं। इस बार अलीराजपुर से विधायक चुने जाने के बाद पहली बार उन्हें मंत्री बनने का मौका मिला। उन्हें आदिवासी कल्याण मंत्रालय के साथ-साथ वन और पर्यावरण मंत्रालय का प्रभार दिया गया था। जिसकी शपथ उन्होंने  25 दिसम्बर 2023 को ली थी। 

अनीता नागर सिंह चौहान पहली महिला सांसद

अब नागर सिंह चौहान की पत्नी के बारे में भी जान लीजिए। उनकी पत्नी अनीता सिंह चौहान भी राजनीति में सक्रिय हैं, जो रतलाम में बीजेपी सांसद हैं। अनीता चौहान रतलाम की पहली महिला सांसद हैं, जो कांग्रेसी दिग्गज कांतिलाल भूरिया को दो लाख से ज्यादा वोटों से शिकस्त देकर संसद पहुंची। अब नागर सिंह चौहान और उनकी पत्नी अनीता नागर सिंह दोनों ही इस्तीफा देने की तैयारी कर रहे हैं। नागर सिंह चौहान ने तो चिल्ला चिल्लाकर इस्तीफे का ऐलान भी कर दिया है और ये भी जता दिया है कि वो पार्टी फोरम पर आलाकमान के सामने अपना पक्ष रखेंगे। वो ये ताकीद भी कर चुके हैं कि वो खुद पहले मंत्री पद से इस्तीफा देंगे और फिर उनकी पत्नी भी अपने पद से इस्तीफा देंगी। नागर सिंह चौहान इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने कहा कि वो एक आम विधायक की तरह अपने क्षेत्र में रहकर जनता की सेवा करते रहेंगे। 

बाहर वाले को घर वाले का मंत्री पद दे दिया

अब आप जरूर जानना चाहेंगे कि जब वो मंत्री बनाए जा चुके हैं तो फिर किस बात की नाराजगी और इस्तीफे की वजह क्या है। तो आपको बता दूं कि इस्तीफे का कारण हैं बाहर वाले एक नेता। जो बीजेपी के अपने हो चुके हैं। अपने भी इतने अपने हुए कि उन्हें मंत्री पद भी दे दिया गया और जो विभाग दिया गया है वो नागर सिंह चौहान की जेब से निकाल कर दिया गया है। भई बात तो वैसी ही हुई न कि घरवाले के हिस्से की सेविंग बिना उसकी मर्जी जाने या बिना उसे बताए बाहर वाले को दे दी जाए। गुस्सा आना तो लाजमी है।
ये बाहर वाले हैं राम निवास रावत। जो बहुत सालों तक कांग्रेस विधायक रहे और अब भाजपाई हो चुके हैं। उनकी सीट पर भी अब उपचुनाव होना तय है। उससे पहले बीजेपी ने उन्हें दलबदल का इनाम दिया और मंत्री पद सौंप दिया। इस इसके बाद जो विभाग उन्हें दिया गया, वो है वन और पर्यावरण मंत्रालय। ये विभाग पहले नागर सिंह चौहान के पास ही था। अब उनके पास केवल आदिवासी कल्याण विभाग बचा है।

इधर... अनीता चौहान की जीत ने सबकी बोलती बंद कर दी 

एक विभाग छिनने के बाद नागर सिंह चौहान ने इसे न सिर्फ अपना बल्कि, आदिवासी समाज का अपमान बनाया है। असल में नागर सिंह चौहान का आदिवासी बाहुल इलाकों में खास दबदबा है। खासतौर से रतलाम-आलीराजपुर वाली बेल्ट की हम बात करें तो यहां नागर सिंह चौहान अपनी मजबूत पकड़ बना चुके हैं। आलीराजपुर को अलग जिला बनाने की प्रक्रिया भी उनके विधायक रहते ही पूरी हुई थी। इस वजह से वो इस क्षेत्र में अपना प्रभाव कायम कर सके। उनके ही प्रभाव से उनकी पत्नी को भी टिकट मिला था। हालांकि, इसका भी खासा विरोध हुआ था। परिवारवाद की खिलाफत करने वाली पार्टी बीजेपी ने नागर सिंह चौहान के परिवार पर खास नजरें इनायत कीं। नागर सिंह चौहान लगातार टिकट हासिल करते रहे। जीते और इस बार मंत्री भी बने। इसके बाद पार्टी ने उनकी पत्नी को टिकट भी दिया। तब बीजेपी के ही कार्यकर्तांओं ने विरोध दर्ज करवाया था, लेकिन अनीता नागर सिंह चौहान की जीत ने सबकी बोलती बंद करवा दी।

कई निष्ठावान नेता हद में रहकर विरोध दर्ज करवाते रहे

इस हिसाब से देखा जाए तो बीजेपी पहले ही नागर सिंह चौहान को एथिकल लाइन क्रॉस करके काफी नवाज चुकी है। ऐसे में एक विभाग छिन जाने से यूं नागर सिंह चौहान का खुलकर गुस्सा जताना क्या आलाकमान को खटकेगा नहीं। फिलहाल सवाल ये नहीं है। सवाल ये है कि बीजेपी अब इन हालातों को कितना समझ रही है। जयंत मलैया, अजय विश्नोई, अनूप मिश्रा सरीखे नेता भी बाहर वालों पर इसी तरह आपत्ती जताते रहे, लेकिन पार्टी लाइन से बंधे निष्ठावान नेता हैं। इसलिए हद में रहकर ही विरोध दर्ज करवाते रहे। दलबदलुओं का आना और फिर मलाईदार पद पाने की प्रक्रिया पर  खुलकर नाराजगी जताने का साहस या कहें कि हिमाकत बीजेपी में नागर सिंह चौहान ने ही दिखाई दी है। उन पर कार्रवाई होगी, होगी या नहीं होगी सब बाद की बात है। फिलहाल तो बीजेपी को ये फोकस करना चाहिए कि वो लगातार बढ़ रहे इस असंतोष और गुस्से के कैसे काबू में करेगी। खुद सीएम मोहन यादव क्या इस तरह का असंतुलन लेकर सरकार बहुत आसानी से चला सकेंगे। अगर जरूरत पड़ ही गई तो वो किसे चुनेंगे, घर वाले या बाहर वाले।

पार्टी में अब एक नागर सिंह नहीं अनेक नागर सिंह हैं...

एक बात और बता दूं कि बेशक नागर सिंह चौहान ने वो रास्ता चुना है जो पार्टी लाइन से इतर है, लेकिन बीजेपी को भी ये अंदेशा होगा ही कि फिलहाल पार्टी के भीतर एक नागर सिंह चौहान नहीं अनेक नागर सिंह चौहान हैं। जिनकी नाराजगी मतदाताओं पर अलग प्रभाव डाल सकती है। वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन काफी एग्रेसिव रूप से आगे बढ़ रहा है। जिसका रुख फिलहाल गुजरात की तरफ है, लेकिन उसके बाद मध्यप्रदेश में भी चुनाव हैं। अगर इंडिया गठबंधन का रुख एमपी हुआ और रफ्तार यही रही। तो, ये कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी की मुश्किलें एमपी में भी बढ़ जाएंगी। यानी अब बॉल सीएम मोहन यादव और आलाकमान के पाले में हैं। जिनका अगला कदम आगे की राजनीति की दिशा तय करेगा

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