News Strike : नवरात्र के मौके पर प्रदेश की सियासत एक नया मोड़ लेने वाली है और सीएम मोहन यादव की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। मुश्किल इसलिए बढ़ेगी क्योंकि सीएम यादव के सामने दो बड़ी चुनौती खड़ी होने वाली है। अगर वो दोनों के बीच बैलेंस कर पाए तो संघ और संगठन के साथ साथ वो जनता के भी फेवरेट लीडर बन जाएंगे। अगर चूके तो किसी एक पक्ष की नाराजगी उनको झेलनी होगी। क्या हैं ये दो चुनौतियां और नवरात्र के मौके पर ही ये सीएम के सामने क्यों आएंगी। आज इसी पर विस्तार से चर्चा होगी।
सीएम मोहन के सामने भी चुनौतियां आने वाली हैं
कावड़ यात्रा के समय उपजा धार्मिक विवाद याद होगा आपको। इस यात्रा के दौरान यूपी में ये सख्त हिदायत दे दी गई थी कि दुकानदार को अपनी दुकान पर अपना नाम भी लिखना होगा। तब विवाद भी खूब गहराया। इस मामले ने तूल भी खूब पकड़ा। बहुत सी हिंदू नाम वाली दुकानों के मालिक मुसलमान निकले। तो बहुत सी दुकानों पर गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल भी दिखाई दी। अब आप जरूर सोच सकते हैं कि हम सीएम मोहन यादव की चुनौतियों पर बात करते-करते अचानक कावड़ यात्रा पर कैसे पहुंच गए। इसकी वजह ये है कि सीएम मोहन यादव के सामने भी कुछ ऐसी ही चुनौतियां आने वाली हैं। नवरात्र शुरू होने से पहले धर्म की सियासत जिस तरह से मध्यप्रदेश में उबाल पर आ रही है वो यकीनन सीएम मोहन यादव के सामने नई चुनौती लेकर आने वाली है।
गरबा पंडाल में प्रवेश करने वाले पहले गोमूत्र का आचमन करें
शुरुआत करते हैं इंदौर के जिलाध्यक्ष चिंटू वर्मा से। फिर बात करेंगे रतलाम की और संस्कृति बचाओ मंच के नए ऐलान की। इंदौर जिलाध्यक्ष चिंटू वर्मा ने गरबा आयोजन को लेकर एक बयान दिया। चिंटू वर्मा ने कहा कि नवरात्र के दौरान जो भी गरबा पंडाल में प्रवेश करना चाहते हैं वो पहले गोमूत्र का आचमन करें। उसके बाद पंडाल में जाएं। इस बयान पर राजनीति तो गर्मानी ही थी। कांग्रेस नेताओं ने तुरंत इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी और कहा कि सबसे पहले ये काम सारे बीजेपी नेताओं से ही शुरू होना चाहिए। कांग्रेस ने इसे ध्रुवीकरण की राजनीति भी करार किया। हालांकि, इस बयान पर ज्यादा सियासी उबाल नजर आया तो चिंटू वर्मा अपने बयान से पलट भी गए। उन्होंने कहा कि ये उनके निजी विचार हैं। वो ये कतई नहीं कहना चाहते थे कि गोमूत्र से आचमन को एक अनिवार्य व्यवस्था बनाया जाए।
पंडाल में वही एंट्री करें जो विष्णु अवतार वराह की पूजा करते हों
अब इस के पीछे कोई सियासी दबाव था या फिर गरबा आयोजकों का प्रेशर ये तो चिंटू वर्मा ही बेहतर बता सकते हैं। खैर... एक बार ऐसे बयानों का सिलसिला शुरू होता है तो वो बाढ़ में तब्दील हो ही जाते हैं। चिंटू वर्मा ने तो यू टर्न ले लिया, लेकिन फिर संस्कृति बचाओ मंच ने भी ये जिम्मा संभाल लिया। गरबा पंडाल में प्रवेश की शर्त रखने के मामले में मंच और चार कदम आगे निकल गया। मंच के प्रमुख चंद्रशेखर तिवारी ने कहा कि गरबा पंडाल में उन्हीं लोगों को एंट्री मिलनी चाहिए जो विष्णु के तीसरे अवतार वराह की पूजा करते हों। जो सनातन धर्म पर विश्वास करते हों और जिन्हें पंच गव्य लेने से एतराज न हो। आपको बता दें कि पंच गव्य का मतलब होता है गाय का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी से मिलकर बना तत्व। राजकुमार तिवारी अपने नॉन पॉलिटिकल व्यक्ति हैं इसलिए उनके बयान पर ज्यादा बवाल नहीं मचा। हालांकि, वो सुर्खियां बटोरने में जरूर थोड़े कामयाब हो गए।
दुकान के बाहर दुकानदार को नाम लिखना अनिवार्य
अब बात करते हैं रतलाम की। यहां मामला थोड़ा ज्यादा गंभीर है। क्योंकि जो निर्देश जारी हुए हैं उसमें एमआईसी के सदस्यों के नाम भी शामिल है। रतलाम में नवरात्र के दौरान कालिका माता नवरात्रि मेले का आयोजन होता है। इस बार ये तय कर दिया गया है कि जो भी इस मेले में दुकान लेगा उसे दुकान के बाहर अपने नाम लिखना होगा। ये आदेश कोई राजनीतिक शगूफा नहीं है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया है कि नगर निगम रतलाम के एमआईसी के राजस्व विभाग समिति सदस्यों ने ये फैसला लिया है। बीजेपी पार्षद और मेला दुकान आवंटन प्रभारी दिलीप गांधी ने खुद बताया कि दुकान के बाहर दुकानदार को नाम लिखना अनिवार्य होगा, लेकिन इसके पीछे वो कोई धार्मिक तर्क नहीं दे रहे हैं। उनका कहना है कि अक्सर दुकान आवंटन किसी और के नाम पर होता है और दुकान पर बैठता कोई और है। इसलिए बिचौलिया व्यवस्था को खत्म करने के लिए ऐसा किया जा रहा है। गांधी ने ये भी कहा कि बिचौलिये पहले दुकान आवंटित करता हैं और फिर दूसरे व्यापारियों को मोटे दाम में दे देते हैं, लेकिन उनके फैसले ने कावड़ यात्रा के दौरान यूपी सरकार के फैसले की याद दिला दी। कुछ इसी अंदाज में उनका फैसला सुर्खियां भी बटोर रहा है। कांग्रेस ने इस फैसले को धर्म की राजनीति का ही नाम दिया है।
संगठनों का दावा मस्जिद, गायत्री मंदिर की जमीन पर बन रही
इसी बीच जबलपुर में भी तनाव की स्थिति बन गई है। यहां एक मस्जिद निर्माण पर विहिप और बजरंग दल के कार्यकर्ता सड़क पर उतर आए हैं। संगठनों का दावा है कि मस्जिद, गायत्री मंदिर की जमीन पर बन रही है जो गलत है। इतना ही नहीं ये संगठन ये ऐलान भी कर चुके हैं कि प्रशासन ने कार्रवाई नहीं कि तो आगे का जिम्मा वो खुद संभाल लेंगे। फिलहाल स्थानीय प्रशासन ने स्थिति पर काबू पा लिया है।
सीएम के सामने धर्म की राजनीति पर लगाम लगाने की चुनौती
ये हालात इशारा कर रहे हैं कि नवरात्र के मौके पर धर्म की राजनीति भी जोर पकड़ सकती है। अब सीएम मोहन यादव के सामने चुनौती ये है कि वो इस धर्म की राजनीति पर लगाम कैसे कसते हैं। ये भी बता दें कि इसी तरह की राजनीति के दम पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ एक कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि बना चुके हैं, लेकिन क्या एमपी में रह कर ऐसी कट्टर हिंदूवादी सीएम की छवि बनाना उचित होगा। या फिर शिवराज सिंह चौहान की तरह सीएम मोहन यादव को भी बहुत हार्ड से थोड़ी सॉफ्ट हिंदूवादी छवि की राह ही पकड़नी होगी।
ये चुनौती बड़ी है, लेकिन नामुमकिन नहीं
अगर वो इस तरह के धर्म से जुड़े विवादित बयानों को मौन सहमति देते हैं या इन बयानों का हिस्सा बनते हैं तो संघ और संगठन की नजरों में ऊपर उठ सकते हैं, लेकिन वोटर्स का ध्रुवीकरण तेजी से हो सकता है। या, मोहन यादव ऐसा कोई रास्ता निकाल सकते हैं कि वो हिंदूवादी नेता की छवि को भी बनाकर रख सकें और प्रदेश में धार्मिक बयानबाजी से सुर्खियों बटोरने वाले नेताओं और संगठनों पर भी लगाम कस सकें। ये चुनौती बड़ी है, लेकिन नामुमकिन नहीं। क्योंकि अपने लाउडस्पीकर वाले फैसले से और खुले में मास बेचना बंद करने के फैसले से वो पहले ही एक अलग और सनातन वाली छवि गढ़ चुके हैं। अब नवरात्र के मौके पर धार्मिक बयानबाजी पर लगाम कस भी दी जाए तो मोहन यादव के इन सख्त फैसलों को भुलाया नहीं जा सकेगा। जो उन्हें हिंदूवादी नेताओं की कट्टर छवि से अलग भी खड़ा करते हैं और सनातन का पैरोकार भी बताते हैं।
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