News Strike : दो लिस्ट जारी होने के बाद भी कांग्रेस में जारी है कलह

वो क्या मजबूरियां हैं जो कमिटमेंट से ज्याद कंप्रोमाइज करने पर मजबूर कर देती हैं। चलिए जानते हैं बीते एक हफ्ते के भीतर मध्यप्रदेश कांग्रेस में ऐसा क्या हुआ जिसने ये सोचने पर मजबूर किया। शायद आप में से बहुत लोग भी यही जानना चाहते होंगे...

Advertisment
author-image
Harish Divekar
New Update
thesootr
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

News Strike : कांग्रेस में कलह- सच बताइए, अब ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस के साथ कलह शब्द जुड़ सा गया है। नई कार्यकारिणी बनने के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस लगातार कलह से जूझ रही है। इसका अंजाम क्या हुआ ये बाद में बताऊंगा, लेकिन इससे पहले मैं एक सवाल करना चाहता हूं। ये सवाल मैं कांग्रेस के तमाम दिग्गज, डिसीजन मेकर्स और रिस्पॉसिबिलीट होल्डर्स से करना चाहता हूं। मेरा सवाल ये है कि कांग्रेस सख्त फैसले लेने के बाद उस पर टिक क्यों नहीं पाती है। वो क्या मजबूरियां हैं जो कमिटमेंट से ज्याद कंप्रोमाइज करने पर मजबूर कर देती हैं। चलिए जानते हैं बीते एक हफ्ते के भीतर कांग्रेस में ऐसा क्या हुआ जिसने मुझे तो ये सोचने पर मजबूर किया ही शायद आप में से बहुत लोग भी यही जानना चाहते होंगे।

मोहन यादव को सीएम बनाकर बीजेपी ने समीकरण साधे

लगातार चार बार के सीएम को एक झटके में बदल देना, वो भी तब जब वो सीएम लगातार पापुलेरिटी के शिखर पर बैठा हो। क्या ये आसान काम है। क्या इससे पार्टी को नुकसान नहीं हुआ होगा, लेकिन एक सख्त फैसला लेकर पार्टी ने आने वाले समय के लिए एंटी इंकंबेंसी की शिकायत को दूर कर दिया और दो बड़े राज्यों की सियासत में मजबूत पकड़ बनाने की रणनीति भी तैयार कर ली। हम जिस पार्टी की बात कर रहे हैं वो पार्टी है बीजेपी और जिस सीएम के बदले जाने की बाद कर रहा हूं वो हैं शिवराज सिंह चौहान। प्रदेश तो आप समझ ही गए होंगे कि मध्यप्रदेश है। यहां मोहन यादव को सीएम की कुर्सी सौंपकर बीजेपी ने बहुत सारे समीकरण साधे हैं। मोहन यादव के सीएम बनने से दलित और पिछड़े वाला मुद्दा भी खत्म हुआ है और बीजेपी में बड़े यादव फेस की कमी भी पूरी हुई है। आप ये जरूर सोच सकते हैं कि कांग्रेस की कार्यकारिणी की बात करते करते मैं अचानक बीजेपी के फैसले पर क्यों आ गया। वो भी इतने पुराने।

सत्ता में रहने के बावजूद बीजेपी सख्त फैसले लेने से नहीं चूकती

असल में ये बताने के पीछे कोशिश केवल इतनी है कि राजनीति की दुनिया के सख्त फैसलों की एक बानगी आपके सामने पेश कर सकें। मध्यप्रदेश में फिलहाल चुनावी मुकाबला दो ही दलों के बीच है। एक कांग्रेस और एक बीजेपी। सत्ता में बने रहने के बावजूद बीजेपी सख्त फैसले लेने से चूकती नहीं है। यानी जीत का गुमान हो उससे पहले पार्टी रिवाइवल मोड में आ जाती है, लेकिन कांग्रेस का हाल ये है कि लगातार हार के बाद भी बदल नहीं पा रही है। हालात ये है कि कांग्रेस नेता सख्त फैसले तो लेते हैं, लेकिन उस पर टिक नहीं पाते हैं। नई कार्यकारिणी के गठन में भी यही हालात देखने को मिले हैं। 

टीम पटवारी में युवाओं को भरपूर तरजीह दी गई थी

तकरीबन दस माह के लंबे समय के बाद जीतू पटवारी अपनी टीम बना सके थे, लेकिन उसके बाद नाराजगी कुछ इस हद तक बढ़ी कि वो अपने ही फैसले बदलने पर मजबूर हो गए। एक बार इस की क्रॉनोलॉजी भी समझ लीजिए। अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में जीतू पटवारी ने अपनी नई टम का ऐलान किया। इस टीम को एक जंबो कार्यकारिणी का नाम दिया जाए तो भी कुछ गलत नहीं होगा। जिसमें 177 लोग शामिल किए गए। इन नेताओं में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, अरूण यादव, विवेक तन्खा और कांति लाल भूरिया जैसे दिग्गजों का नाम भी शामिल है। टीम में 17 उपाध्यक्ष, 71 महासचिव, 16 कार्यकारिणी सदस्य, 33 स्थाई आमंत्रित सदस्य और 40 विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए। जीतू पटवारी की इस लिस्ट की खास बात ये थी कि उस में आधे से ज्यादा युवा चेहरे शामिल थे। यानी टीम पटवारी में युवाओं को भरपूर तरजीह दी गई थी। महिलाओं को करीब 15 प्रतिशत हिस्सा दिया गया था और चौंकाने वाली बात ये थी कि पहली लिस्ट में नकुल नाथ का नाम नहीं था। उन के अलावा कुणाल चौधरी और नीलांशु चतुर्वेदी भी उनकी इस लिस्ट में जगह हासिल नहीं कर सके थे। पर ये कहना भी गलत नहीं होगा कि पटवारी ने कोशिश अच्छी की थी। दिग्गजों को भी जगह दी थी, युवाओं को भी मौका दिया था। साथ ही हर समीकरण को साधने का पूरा जतन किया था, लेकिन कांग्रेस में जैसा होता आया है, वही हुआ। 

पटवारी ने दूसरी लिस्ट में 84 सचिव और 36 नए सह सचिव बनाए

लिस्ट जारी होने के बाद नेताओं की नाराजगी बढ़ती गई और पटवारी उनके दबाव में झुकने पर मजबूर हो गए। हालांकि, इस दबाव में आलाकमान या राहुल गांधी की कितनी सहमति थी ये स्पष्ट नहीं हुआ। पर दबाव का नतीजा ये रहा कि पटवारी ने अपनी ही लिस्ट को बदला और 84 सचिव और 36 नए सह सचिव बनाए। पहली लिस्ट में अजय सिंह और नकुलनाथ को जगह नहीं दी गई थी दूसरी लिस्ट में उनके नाम शामिल किए गए। इसके अलावा 25 सदस्यीय पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी का गठन भी किया गया है। जिसमें कई बड़े छोटे नाम शामिल किए गए, लेकिन डैमेज कंट्रोल की ये कवायद भी खास काम नहीं आई। दूसरी लिस्ट में के बाद भी नाराजगी जारी है। जो अब सोशल और डिजिटल मीडिया पर दिखाई भी देने लगी है। दूसरी लिस्ट जारी होने के बाद भोपाल कांग्रेस के पूर्व शहर अध्यक्ष मोनू सक्सेना, इंदौर शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अमन बजाज और सतना जिले की रैगांव विधानसभा की पूर्व विधायक कल्पना वर्मा ने इस्तीफा दे दिया। मोनू सक्सेना को नई टीम में सचिव का ओहदा मिला है। जिसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने लिखा कि वो कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं और रहेंगे और पार्टी की विचारधारा पर चलते रहेंगे। साथ ही उन्होंने लिखा कि ये पद किसी अनुभवी युवा साथी को देकर उसे अवसर देना ठीक होगा। 

प्रमोद टंडन भी नाराजगी जाहिर कर इस्तीफा दे चुके हैं

इंदौर शहर कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष रहे अमन बजाज ने भी पद ठुकराने के पीछे यही तर्क दिया है। उन्होंने पोस्ट में लिखा कि वो पहले भी प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी रह चुके हैं अब किसी नए व्यक्ति को ये अवसर दें। पूर्व विधायक कल्पना वर्मा ने एक पत्र लिखा है। पटवारी के नाम लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि वो प्रदेश सचिव बनाए जाने पर आभार व्यक्त करती हैं, लेकिन वो पहले अलग-अलग पदों पर रह चुकी हैं और रैगांव से विधायक भी रही हैं। इसलिए ये पद किसी और कर्मठ कार्यकर्ता को दिया जाए। मुरैना के राम लखन दंडोतिया भी संयुक्त सचिव बनाए जाने से नाराज हैं। कांग्रेस नेता प्रमोद टंडन भी नाराजगी जाहिर करते हुए इस्तीफा दे चुके हैं। 

सख्ती ही कांग्रेस की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है

अब सवाल ये है कि नाराजगी के इस दौर में पटवारी क्या फैसला करेंगे। क्या वो बार-बार नई टीम के लिए नई लिस्ट ही जारी करते रहेंगे या अपने फैसलों पर सख्ती से कायम रहेंगे। क्योंकि सख्ती ही है जो कांग्रेस की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है। खासतौर से तब जब उनकी राइवल पार्टी का सबसे मजबूत और तगड़ा हथियार ऐसे ही सख्त फैसले हैं।

thesootr links

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

मध्यप्रदेश कांग्रेस बीजेपी जीतू पटवारी News Strike न्यूज स्ट्राइक पीसीसी News Strike Harish Diwekar न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर एमपी कांग्रेस कार्यकारिणी