News Strike : मध्यप्रदेश में क्यों अटक रहा है यूसीसी पर कानून, अफसर या सरकार कौन जिम्मेदार?

मोहन यादव जब सीएम बने थे उसके कुछ ही दिन बात उनसे यूसीसी लागू करने पर सवाल हुआ था। तब उन्होंने कहा था कि केंद्र के जो दिशा निर्देश होंगे, उसके अनुसार काम होगा...

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Harish Divekar
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News Strike UCC law in MP Photograph: (thesootr)

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मध्यप्रदेश में यूसीसी यानी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड कब लागू होगा। ये सवाल कई बार पूछा जा चुका है। यूसीसी यानी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड। यूसीसी के लागू होने को लेकर मध्यप्रदेश में कई बार बहुत सी बातें हुई हैं। पर अब तक प्रदेश इस मामले में किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सका है। यूसीसी लागू होना तो दूर इस के लिए जो कमेटी बनना प्रस्तावित थी। वो भी अब तक नहीं बन सकी है। इसके पीछे प्रदेश की अफसरशाही दोषी है या फिर राजनीतिक इच्छा शक्ति में कुछ कमी है। हम आपको बताते हैं कि मप्र में यूसीसी लागू हुआ तो बीजेपी को कितना फायदा या नुकसान हो सकता है।

उत्तराखंड के बाद सवाल है कि एमपी में यूसीसी कब होगा लागू

केंद्र सरकार के जो भी फैसले या सिफारिशें होती हैं उन्हें लागू करने में सीएम मोहन यादव कभी चूकते नहीं है, लेकिन एक मसला ऐसा है जिसमें अब तक एमपी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया है। ये मसला है यूसीसी लागू करने का। । इसके साथ में सवाल ये भी उठना चाहिए कि क्या ये इतना आसान होगा। मोहन यादव जब सीएम बने थे उसके कुछ ही दिन बात उनसे यूसीसी लागू करने पर सवाल हुआ था। तब उन्होंने कहा था कि केंद्र के जो दिशा निर्देश होंगे, उसके अनुसार काम होगा, लेकिन अब तक यूसीसी पर बात आगे नहीं बढ़ी है। जबकि करीब दो साल पहले इस यूसीसी के लिए कमेटी बनाने की घोषणा भी कर दी गई थी। पर ताज्जुब की बात ये है कि वो कमेटी ही अब तक नहीं बन पाई है। जो यूसीसी पर अलग-अलग पहलूओं पर विचार कर अपनी रिपोर्ट पेश करने वाली थी। 

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2023 में यूसीसी पर कमेटी बनाने की बात दोबारा आई सामने 

यूसीसी पर कमेटी बनाने की घोषणा दिसबंर 2022 में ही हो गई थी। अब देखा जाए तो इस बात को दो साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है। इस कमेटी पर यूसीसी का ड्राफ्ट बनाने की जिम्मदारी थी। 2022 के बाद 27 जून 2023 को फिर यूसीसी पर कमेटी बनाने की बात सामने आई थी। उस वक्त भोपाल में एक चुनाव सभा में खुद पीएम नरेंद्र मोदी शामिल हुए थे। उन्होंने यूसीसी का जिक्र किया तो फिर यही कहा गया कि जल्द ही इसका मसौदा तैयार करन के लिए एक्सपर्ट की कमेटी बनाई जाएगी, लेकिन फिर विधानसभा चुनाव सिर पर आ गए। मसला टल गया। बीजेपी ने सत्ता में वापसी को तो लोकसभा चुनाव सिर पर आ गए थे और फिर ये मसला  टल गया, लेकिन ये सब हुए भी काफी लंबा वक्त हो चुका है। अब भी यूसीसी पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। सरकार के लेवल से कमेटी बनाने की घोषणा के बाद भी मामला अटका है तो इस के लिए अफसशाही ही जिम्मेदार दिखाई देती है। पर क्या वाकई मामला पूरा प्रशासनिक है। तो इसका जवाब है अ बिग नो।

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यूसीसी लागू होने के बाद क्या-क्या आएंगे बदलाव 

यूसीसी प्रशासनिक से ज्यादा राजनीतिक मुद्दा है। इसके लागू होने पर किसी पार्टी को किस वोटबैंक का कितना फायदा या कितना नुकसान होगा इसका आकलन जरूरी है और इसी नफा नुकसान का तकाजा करने के चक्कर में यूसीसी अटक रहा है। वोट बैंक का खेल समझने से पहले आपको ये समझना होगा कि जिस भी राज्य या पूरे देश में अगर यूसीसी लागू होता है तो क्या-क्या बदलाव आएंगे। इसे बहुत आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं। सबसे पहला फर्क पड़ेगा मुस्लिम समुदाय को। यूसीसी के बाद उनका पर्सनल लॉ या फिर शरिया का कानून कारगर नहीं होगा। इसका असर उनके पहनावे पर तो पड़ेगा ही उनके कुछ नियम जैसे हलाला, इद्दत और चार शादी को जायज मानने पर भी पड़ेगा। पर ये भी जान लीजिए कि यूसीसी से सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही प्रभावित नहीं होगा और भी समुदाय यूसीसी के दायरे में आएंगे।

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यूसीसी का असर लिव इन रिलेशनशिप पर भी पड़ेगा

यूसीसी लागू होने के बाद महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा देना अनिवार्य होगा। अभी पारसी जैसे कुछ समुदाय हैं। जिसमें महिलाएं अगर दूसरे धर्म में शादी करती हैं तो उनके व्यक्तिगत कानून के हिसाब से महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता है। इस कानून का असर लिव इन रिलेशनशिप पर भी पड़ेगा। फिलहाल लिव इन के लिए डिक्लेरेशन की जरूरत नहीं है, लेकिन यूसीसी आने के बाद लिव इन का रजिस्ट्रेशन भी जरूरी होगा। माता पिता को इसकी जानकारी होना भी अनिवार्य होगा। साथ ही बच्चे होने पर उसे वो सारे हक मिल सकेंगे जो शादीशुदा कपल के बच्चों के मिलते हैं। शादी की उम्र भी हर समुदाय के लिए समान ही होगी।

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आदिवासी तबके भी यूसीसी के खिलाफ ही रहे 

यूसीसी का असर आदिवासी समुदाय पर भी बहुत ज्यादा पड़ेगा और ये समुदाय इसका विरोध भी कर चुका है। राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद नाम का संगठन इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है। असल में आदिवासियों के ऐसे बहुत से रीति रिवाज हैं जो बाकी समुदायों से अलग है। इन रीति रिवाजों में शादी का तरीका, एक से ज्यादा शादी करने की परंपरा, तलाक के तरीके सब अलग हैं। जिनका फैसला भी आदिवासी समुदाय अपने पुराने तौर तरीकों से ही करता है। यही वजह है कि आदिवासी तबकों में भी यूसीसी की खिलाफत होती रही है।

मप्र की 47 विधानसभा सीटों पर आदिवासी समुदाय का असर 

यूसीसी से पीछे हटने की या उसे टालते रहने की एक बड़ी वजह आदिवासी समुदाय भी है। इस समुदाय का गणित भी समझ लीजिए। मध्यप्रदेश की 47 विधानसभा सीटे ऐसी हैं जहां सीधे आदिवासी समुदाय का वोटबैंक असर डालता है। किसी भी पार्टी की जीत के लिए ये सीटें काफी अहम हैं। साल 2018 के चुनाव में बीजेपी केवल 15 ही सीटें जीत सकी थीं इसके बाद आदिवासी वोट बैंक को रिझाने के लिए तमाम जतन किए गए। आदिवासियों के भगवान माने जाने वाले बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातिय गौरव दिवस के रूप में मनाने का फैसला भी किया गया। 

आदिवासियों के सोच समझ कर प्लानिंग की जरूरत

इन तमाम प्रयासों के चलते बीजेपी को एसटी की 47 सीटों में से 24 पर जीत मिली। कांग्रेस फिर भी 22 सीटें जीतने में कामयाब रही एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी जीती। अब इससे ये साफ है कि आदिवासी वोट बैंक बहुत आराम से कांग्रेस के पाले में जा सकता है। इसलिए बीजेपी यूसीसी के तहत ये कोशिश जरूर करना चाहेगी कि इससे आदिवासी समुदायों को बाहर रखा जा सके। ऐसा करने के लिए बहुत सोच समझ कर प्लानिंग जरूरी होगी। 

बस यही वजह है कि इस कानून को लागू करने से पहले बीजेपी बहुत सोच समझ कर कदम आगे बढ़ाएगी ताकि वोट पोलराइजेशन के चक्कर में कहीं दूसरे समुदाय के वोट्स से हाथ न धो बैठे।

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