News Strike : केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक को सांसद प्रतिनिधि बनाना पड़ा भारी, अपने ही विधायकों के निशाने पर आए नेताजी

मध्यप्रदेश में नए सदस्य जोड़ते-जोड़ते बीजेपी अपने पुराने सदस्यों को संभाल पा रही है या नहीं। या सत्ता के मद में नेता इस कदर चूर हैं कि एक दूसरे को ही कमतर समझने लगे हैं और आपस में उलझने लगे हैं। क्या अनुशासित पार्टी का डिसिप्लीन अब डगमगा रहा है...

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Harish Divekar
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News Strike : चुनाव सिर पर होते हैं तो किसी पार्टी में आपसी टकराव या लॉबिंग की खबरें जोर पकड़ने लगती है, लेकिन एमपी में तो अभी से नेताओं में लॉबिंग और आपस में ही लड़ने झगड़ने की खबरें आने लगी हैं। वो भी उस पार्टी से जो खुद अभी सत्ता में है। यानी बीजेपी से ही। एमपी में कम से कम तीन साल अब कोई चुनाव नहीं है। उसके बाद भी एक सांसद और कुछ विधायकों ने एक दूसरे के खिलाफ इस कदर मोर्चा खोल दिया है कि अब ये लड़ाई खुलकर सामने आ चुकी है। मामला इसलिए गंभीर है क्योंकि जिस सांसद के खिलाफ बीजेपी के सांसदों ने मोर्चा खोल दिया है वो मोदी कैबिनेट में मंत्री भी हैं।

क्या पार्टी का डिसिप्लीन अब डगमगा रहा है...?

एक तरफ बीजेपी का सदस्यता अभियान जोर शोर से चलाने का दावा हो रहा है। बीजेपी नेता बीएल संतोष ने अपने ट्वीट में दावा किया है कि इस अभियान के तहत यूपी में एक करोड़ और मध्यप्रदेश में पचास लाख नए सदस्य बन चुके हैं। नए सदस्य जोड़ते-जोड़ते बीजेपी अपने पुराने सदस्यों को संभाल पा रही है या नहीं। या सत्ता के मद में नेता इस कदर चूर हैं कि अब एक दूसरे को ही कमतर समझने लगे हैं और आपस में उलझने लगे हैं। बुंदेलखंड में एक सांसद और करीब तीन विधायकों के बीच चल रही तकरार के बाद ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या सबसे ज्यादा अनुशासित पार्टी का डिसिप्लीन अब डगमगा रहा है। 

खटीक अपनी ही पार्टी के विधायकों से घिर गए हैं

सबसे पहले आपको बताते हैं कि बीजेपी में आखिर हुआ क्या है। जिसकी धमक अब दिल्ली तक सुनाई दे रही है। हालांकि, मध्यप्रदेश बीजेपी के लिए इतना सेफ प्रदेश हो चुका है कि यहां अपने ही नेताओं के बीच कोई उठा पटक ज्यादा असर नहीं डालती, लेकिन ये तो जाहिर करती ही है कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। ये मामला बुंदेलखंड से जुड़ा है। हम बात कर रहे हैं टीकमगढ़ सांसद वीरेंद्र खटीक की। खटीक वर्तमान में केंद्र सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री हैं। जो इन दिनों अपनी ही पार्टी के विधायकों से घिरे हुए हैं। सारा मामला शुरू हुआ है जनसंपर्क अभियान के दौरान। इसके बाद वीरेंद्र खटीक ने ऐसा फैसला लिया कि उनकी संसदीय सीट में आने वाली विधानसभाओं के प्रतिनिधियों ने ही उनका बहिष्कार कर दिया है। उनका बहिष्कार करने वाले तीन विधायकों में छतरपुर विधायक ललिता यादव, महाराजपुर विधायक कामाख्या सिंह और बिजावर विधायक राजेश शुक्ला बब्लू शामिल हैं।

सांसद प्रतिनिधियों को कांग्रेस का एजेंट बताया

केंद्रीय मंत्री और विधायकों के बीच टकराव के कुछ अलग-अलग कारण है। पहला कारण है सांसद प्रतिनिधि। बता दें कि कोई भी सांसद या विधायक पूरे समय अपने क्षेत्र में नहीं रह सकता या आम लोगों से आसानी से नहीं मिल सकता। ऐसे में सांसद और विधायक अपने क्षेत्र में प्रतिनिधि रखते हैं। जिन्हें सांसद या विधायक प्रतिनिधि कहा जाता है। इनकी संख्या कभी-कभी एक से ज्यादा भी हो सकती है, लेकिन वीरेंद्र खटीक इस मामले में बहुत ज्यादा आगे निकल गए। खटीक ने एक दो नहीं सौ से ज्यादा लोगों को सांसद प्रतिनिधि बना दिया। बीजेपी विधायकों की नाराजगी असल में इन सांसद प्रतिनिधियों से शुरू हुई है। जिन्हें विधायकों ने कांग्रेस का एजेंट तक करार कर दिया है।

विधायकों ने खटीक की बैठक का बहिष्कार किया

ये मामला इतना बढ़ चुका है कि बीजेपी के अनुसूचित जाति मोर्चा के लाल दीवान ने इस बारे में पीएम को भी शिकायत भेजने का दावा कर दिया है। विधायक ललिता यादव ने खुलकर केंद्रीय मंत्री पर गुटबाजी फैलाने और ऐसे लोगों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है जो विरोधी हैं या फिर अपराधी हैं। उनका आरोप ये भी है कि खटीक की वजह से कोई विधायक क्षेत्र में काम नहीं कर पा रहा है। ये विवाद इतना बढ़ चुका है कि विधायकों ने खटीक की बुलाई बैठक का बहिष्कार भी कर दिया। वैसे तो इस विवाद के बुलबुले धीरे-धीरे आकार ले रहे थे, लेकिन बीते एक हफ्ते से सब कुछ सतह पर आ चुका है। पहले छतरपुर में उनका बहिष्कार हुआ फिर टीकमगढ़ में भी यही हुआ। यहां ये भी बताना जरूरी है कि खटीक की लोकसभा सीट में टीकमगढ़ और छतरपुर दोनों ही जिले आते हैं।

गिरी का आरोप- मेरे खिलाफ चुनाव लड़ने वालों को प्रतिनिधि बनाया  

बमुश्किल चार पांच दिन पहले खरगापुर विधायक राहुल लोधी और टीकमगढ़ के पूर्व विधायक राकेश गिरी गोस्वामी ने खटीक के जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपत्ति जताई थी। दोनों ही नेताओं का कहना है कि एक साथ इतने जनप्रतिनिधि उतारने से पहले खटीक को पार्टी के दूसरे और सीनियर लीडर्स से चर्चा करनी चाहिए थी। दोनों ने ये भी साफ किया कि उनका विरोध हर प्रतिनिधि के खिलाफ नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे हैं जो चुनाव के दौरान पार्टी विरोधी काम कर रहे थे। खासतौर से राकेश गिरी का ये कहना है कि जब वो चुनाव लड़ रहे थे तब उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले को भी खटीक ने अपना प्रतिनिधि बना दिया है। जिसे हटाने की मांग वो जोर शोर से कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे राहुल लोधी भी उनकी मांग का समर्थन कर रहे हैं।

खटीक की दो टूक : आरोप लगाने वालों को कोई नहीं रोक सकता

बीजेपी नेता मानवेंद्र सिंह भी खटीक पर आरोप लगाने में पीछे नहीं है। सिंह का भी वही आरोप है कि खटीक ने कुछ अपराधियों को अपना प्रतिनिधि बना दिया है। खटीक यूं तो इस पूरे घटनाक्रम में खामोश ही बने हुए हैं, लेकिन मानवेंद्र सिंह के सवाल पर वो उन्होंने भी दो टूक कहा कि आरोप लगाने वालों को कोई नहीं रोक सकता, लेकिन मेरे खिलाफ आरोपों को पहले सिद्ध करके दिखाएं। पहले खुद दीनदयाल उपाध्याय को पढ़ें और पार्टी विचारधारा को समझ लें। इससे साफ समझा जा सकता है कि मामला नए वर्सेज पुराने नेता का भी है। खैर इस पूरे सियासी जंग में चौंकाने वाली बात ये है कि संगठन फिलहाल इस मसले पर पूरी तरह खामोश है।

विधायक इतना खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं उसके बाद भी बीजेपी संगठन ने कोई कदम नहीं उठाया है। दिल्ली दरबार में भी फिलहाल इस मामले को लेकर सन्नाटा पसरा है। हो सकता है बीजेपी फिलहाल सदस्यता अभियान पर ही पूरा फोकस रखना चाहती है, लेकिन इतना तो जरूर कहा जा सकता है कि कांग्रेस पर आपसी मनमुटाव का आरोप लगाने वाली पार्टी भी गुटबाजी से बच नहीं पा रही है।

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