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News Strike where is Jaibhan Singh Pawaiya Photograph: (thesootr)
कहां हैं नेताजी में... आज बात करेंगे उस नेता की, जिसकी हुंकार से राजे रजवाड़ों के सिंहासन भी हिलने लगे थे। जिसकी आमद से ही सिंधिया राजघराने को जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता था। जो करिश्मा में ग्वालियर में अटल बिहारी बाजपेयी नहीं दिखा सके थे। वो करिश्मा इस नेता ने कर दिखाया था। दिलचस्प बात ये थी कि ये नेता राजमाता विजयाराजे सिंधिया का दुलारा था। लेकिन माधवराव सिंधिया और उसके बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को फूटी आंख नहीं भाया था। बीजेपी में शामिल होने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की मजबूरी थी कि इस नेता के साथ ट्यूनिंग बनाकर रखें। तो, वो भी सेवा पथ पर हाजिरी लगाना नहीं भूले थे।
जयभान सिंह पवैया के नाम से महल की नींद भी उड़ती रही
हम जिस नेता की आज बात कर रहे हैं वो नेता हैं जयभान सिंह पवैया। जो तेज तर्रार नेता होने से ज्यादा एक अक्खड़ हिंदुवादी नेता की छवि रखते हैं। जो राम मंदिर आंदोलन में उतने ही सक्रिय थे जितने सक्रिय लाल कृष्ण आडवाणी, राजमाता विजया राजे सिंधिया या फिर उमा भारती थीं। यही वजह रही कि जयभान सिंह पवैया के नाम से ग्वालियर में महल की नींद भी उड़ती रही। ग्वालियर में हमेशा राजनीति दो खेमो में बंटी रही। इस क्षेत्र से सांसद या विधायक कोई भी रहे हों। ये हमेशा कहा जाता रहा कि कांग्रेस में हैं तो महल में माथा टेकना होगा और अगर बीजेपी में हैं तो सेवापथ से गुजरना ही होगा। ये सेवापथ ही ग्वालियर में जयभान सिंह पवैया का असल पता रहा है। कांग्रेस में रहते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कभी सेवा पथ का रुख नहीं किया, लेकिन बीजेपी में आते ही उन्हें सेवापथ की अहमियत समझ में आई। मौका मिलते ही उन्होंने सेवापथ पर चलने में देर नहीं की।
जयभान सिंह पवैया की राजनीति को समझना है तो दो अलग-अलग पहलुओं से उन्हें जानना होगा। एक उनका राजनीतिक रूप है और दूसरा वो रूप है जो हिंदुत्व से जुड़ा है। ये भी सही बात है कि ये दोनों ही रूप एक सिरे पर जाकर मिल भी जाते हैं। फिलहाल हम बात करते हैं। एक सिरे को पकड़ते हुए जयभान सिंह पवैया की सियासी शुरुआत और फिर महल की राजनीति को ललकारने की उनकी शैली को समझते जाते हैं...
बाबरी विध्वंस में कार सेवकों को ट्रेनिंग देने में पवैया का अहम रोल
पिछले साल इन्हीं दिनों की बात है जब जयभान सिंह पवैया काफी सुर्खियों में थे। वजह थी इंटेलिजेंस के इनपुट के बाद उन्हें जेड कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया कराना। उन्हें ये सुरक्षा इसलिए दी गई क्योंकि राम मंदिर आंदोलन को लेकर वो हमेशा ही इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर माने गए। पिछले साल जब दिसंबर में राम मंदिर के पूजन की तैयारियां जोरों पर थीं। तब इस आंदोलन से जुड़े पवैया की सुरक्षा में इजाफा किया गया। राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान पवैया बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक थे। उन्हें इस आंदोलन में तेजी लाने का क्रेडिट भी दिया जाता है। उनसे पहले विनय कटियार ये जिम्मेदारी संभाल रहे थे, लेकिन पवैया के तेवर देखते हुए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी सौंप दी गई थी। ये भी कहा जाता है कि बाबरी विध्वंस के लिए कार सेवकों को ट्रेनिंग देने में पवैया ने अहम रोल भी अदा किया था। इसलिए उस घटना के मुख्य आरोपियों में उनका नाम भी दर्ज किया गया था। जिसके बाद से उन्हें वाई कैटेगरी की सुरक्षा दी गई थी, लेकिन राम मंदिर लोकार्पण से पहले उन्हें जेड़ कैटेगरी की सुरक्षा दी गई।
ग्वालियर में ऐसी जमीन तैयार की कि कांग्रेस एक ही बार जीती
जयभान सिंह पवैया एक बार ग्वालियर से सांसद रहे और एक बार विधानसभा का चुनाव जीते। शिवराज सरकार में उन्हें मंत्री पद भी मिला। उनकी सियासत में एंट्री से माधव राव सिंधिया की मुश्किलें भी बढ़ गई थीं। जिन्हें अटल बिहारी बाजपेयी भी चुनौती नहीं दे सके थे उन पर पवैया भारी पड़े थे। साल 1984 में अटल बिहारी बाजपेयी ने ग्वालियर से चुनाव लड़ा। अटलजी को माधव राव सिंधिया ने करीब पौने दो लाख वोटों के अंदर से हाराया, लेकिन साल 1998 में जब पवैया ने माधव राव सिंधिया को चुनौती दी तब उन्हें जीत के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी। ये भी कहा जाता है कि पवैया के बढ़ते प्रभाव के चलते ही माधव राव सिंधिया ने ग्वालियर लोकसभा सीट छोड़ दी। पवैया इसी सीट से चुनाव लड़े जीते और सांसद बने। उन्होंने ग्वालियर में ऐसी मजबूत जमीन तैयार की कि कांग्रेस फिर एक ही बार जीत सकी। उसके बाद उपचुनाव हों या चुनाव हर लोकसभा में बीजेपी ही जीतती जा रही है।
पवैया की बीजेपी में अब वैसी जिम्मेदारी नहीं जो पहले थी
माधव राव सिंधिया को चुनौती देने की वजह से ही कभी पवैया और सिंधिया घराने में नहीं बनीं। पवैया हमेशा ही महल विरोधी राजनीति करते रहे। सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने पर भी पवैया ने आक्रामक तेवर दिखाए थे और सिंधिया समर्थकों को पार्टी लाइन पर चलने के लिए चेताया भी था। हालांकि, सिंधिया के भाजपाई होने के बाद उनके रुख में नरमी जरूर आई। लेकिन ये सही बात है कि पार्टी में अब उनके पास वैसी जिम्मेदारी नहीं है जैसी पहले हुआ करती थी। अब वो पर्दे के पीछे ज्यादा सक्रिय नजर आते हैं। हाल ही में हुए महाराष्ट्र चुनाव से पहले उन्हें वहां का सह प्रभारी बनाया गया था। लोकसभा चुनाव के दौरान भी खबर आई थी कि पवैया टिकट न मिलने से नाराज हैं। जिसके बाद सीएम मोहन यादव उनसे मुलाकात करने उनके घर भी पहुंचे थे, लेकिन पवैया ने ये साफ कर दिया था कि वो पार्टी के सामने ऐसी शर्तें नहीं रख सकते।
अब ये माना जा सकता है कि पवैया शायद ही एक्टिव राजनीति में या चुनावी मैदान में खड़े नजर आएं। पर इसमें भी कोई संशय नहीं किया जा सकता कि वो अपनी पार्टी की खातिर चुनावी रणनीति बनाने में सक्रिय रह सकते हैं। बीजेपी को जीत की मजबूत जमीन देने वाले पवैया को आगे पार्टी में क्या जिम्मेदारी या पद मिलता है ये भी देखने वाली बात होगी।
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