News Strike : कहां है जयवर्धन सिंह? क्यों मिले धीरेंद्र शास्त्री से

कहां हैं नेताजी में... राजनीति में जरा भी इंटरेस्ट रखते हैं तो मध्यप्रदेश के इस नाम और चेहरे से जरूर वाकिफ होंगे। सोशल मीडिया के इस दौर में नेताओं का गुड लुकिंग होना भी मायने रखता है। जयवर्धन सिंह इस पैमाने पर भी खरे ही उतरते हैं...

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Harish Divekar
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News Strike where is Jaivardhan Singh Photograph: (thesootr)

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कहां हैं नेताजी में... बात करेंगे कांग्रेस के एक युवा नेता की। एक ऐसा नेता जिनके पिछले दिनों लिए एक फैसले ने न सिर्फ पार्टी को चौंकाया, बल्कि पिता को भी हैरान कर दिया था। ये नेता तेज तर्रार है। मुद्दों पर मुखर भी हैं, लेकिन उनके युवा नेता होने की ऊर्जा और राजनीतिक धार उनकी अपनी पार्टी के किसी खास काम नहीं आ रही है। चलिए जानते हैं कौन हैं ये नेता और क्यों सक्रिय होने के बावजूद सुर्खियों में नहीं हैं। ये भी समझने की कोशिश करते हैं।

नेताओं का गुड लुकिंग होना भी मायने रखता है

हम आज बात कर रहे हैं जयवर्धन सिंह की। राजनीति में जरा भी इंटरेस्ट रखते हैं तो इस नाम और इस चेहरे से जरूर वाकिफ होंगे। सोशल मीडिया के इस दौर में नेताओं का गुड लुकिंग होना भी मायने रखता है। जयवर्धन सिंह इस पैमाने पर भी खरे ही उतरते हैं। कुल मिलाकर उनके पास वो सब कुछ है जो एक अच्छा या जाना पहचाना राजनेता होने के लिए जरूरी है। वो कांग्रेस पार्टी के एक निखरे हुए युवा चेहरे हैं। दिग्विजय सिंह के बेटे होने के नाते एक सशक्त राजनीतिक विरासत भी उन्हें हासिल हुई है। इसके अलावा वो खुद क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं और लगातार विधानसभा चुनाव जीत भी रहे हैं।

जयवर्धन सिंह क्षेत्र में कतई लापता नहीं हुए हैं...

हम जब अपने इस खास सेगमेंट में दूसरे नेताओं की बात करते हैं तो अक्सर ये जिक्र आता है कि वो नेता एक्टिव नहीं हैं। या, चुनाव जीतने के बाद लापता हो चुके हैं। हालांकि, जयवर्धन सिंह के लिए हम ये नहीं कह सकते। जयवर्धन सिंह क्षेत्र में कतई लापता नहीं हुए हैं। बल्कि, काफी हद तक एक्टिव भी हैं। फिर आप जरूर जानना चाहेंगे कि ये सवाल उठाने की आखिर जरूरत क्यों पड़ी। उसकी भी खास वजह है। असल में जयवर्धन सिंह जैसा दमदार युवा चेहरा होने के बावजूद ग्वालियर चंबल में कांग्रेस की आवाज गाहे बगाहे ही सुनाई देती है, जबकि जयवर्धन सिंह जैसे नेता चाहें तो इस क्षेत्र में पूरी कांग्रेस को एक्टिव करने का माद्दा रखते हैं।

दिग्विजय सिंह की छवि तो सेक्यूलर नेता की रही है

अपने पिता की तरह अपनी राजनीतिक के दायरे को बढाने की जगह जयवर्धन सिंह फिलहाल अपनी छवि बदलने पर फोकस कर रहे हैं। कुछ ही दिन पहले वो बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री के साथ सनातन एकता पद यात्रा में शामिल हुए थे। उनका ये फैसला चौंकाने वाला है। शायद राजनीति के नए दौर के वक्त की नजाकत को समझते हुए उन्होंने ये फैसला लिया। वर्ना तो दिग्विजय सिंह की छवि हमेशा ही सेक्यूलर नेता की रही है, लेकिन जयवर्धन ने इस यात्रा में शामिल होकर सॉफ्ट हिंदुत्व का हिमायती होने के संकेत दिए हैं। न सिर्फ इतना बल्कि उन्होंने ये भी कहा कि हिंदुओं में एकता होना बहुत जरूरी है। बीजेपी सांसद रोडमल नागर भी उनके इस फैसले पर खामोश नहीं रह सके थे। उन्होंने कहा था कि लगता है कि दिग्विजय सिंह के बेटे को सद्बुद्धि आ गई है। उनके इस कदम से जाहिरतौर पर सियासी गलियारों में खलबली जरूर मची थी। क्योंकि ये साफ नजर आया कि कांग्रेस की युवा पीढ़ी। अब मौजूदा समय के अनुसार फैसले ले रही है और पूरी तरह सेक्यूलर भाषा बोलने की जगह सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति अपना रहे हैं।

हेडलाइन्स भी चली कि पिता-पुत्र लड़ेंगे किसानों की लड़ाई

जयवर्धन सिंह के इस एक कदम से राजनीति की दुनिया में इतनी बहस हुई। जरा सोचिए अगर वो एक्टिवली लोगों से जुड़े मुद्दे उठाएंगे और फील्ड में एक्टिव नजर आएंगे तो उस पर कितनी बातचीत होगी। जिसका इंपेक्ट कांग्रेस पर भी पड़ेगा। वैसे वो जनता से जुड़े मुद्दे उठाने में अब भी बहुत पीछे नहीं हैं। कुछ ही दिन पहले उन्होंने किसानों को हो रही खाद की किल्लत पर सवाल उठाए थे। दिग्विजय सिंह ने भी इस मामले पर ट्वीट किया था और जयवर्धन सिंह ने भी इस मामले पर पोस्ट लिखा था। उस वक्त कुछ इस तरह की हेडलाइन्स भी निगाह में आईं कि पिता पुत्र लड़ेंगे किसानों की लड़ाई, लेकिन बात फिर आई गई हो गई। कोई खास आक्रमक तेवर इसके बाद नजर में नहीं आए।

बड़ा सवाल : क्या कांग्रेस के लिए जरूरी तेवर जयवर्धन में हैं

इससे पहले भी कांग्रेस ने अगस्त क्रांति के नाम से रणनीति प्रिपेयर की थी। जिसके तहत अगस्त माह में जंगी आंदोलन करने का ऐलान था। काफी हद तक आंदोलन हुए भी, लेकिन आप खुद ही गूगल पर खंगाल कर देख सकते हैं कि इन आंदोलनों में जयवर्धन सिंह कितना एक्टिव रहे। जाहिरतौर पर वो अगस्त क्रांति का हिस्सा बने। बयान भी खूब दिए ही होंगे, लेकिन क्या वो कांग्रेस के एक आक्रमक नेता के तौर पर उभर सके। आपको बता दूं जयवर्धन सिंह तीन बार अपने पिता की सीट राघौगढ़ से चुनाव जीत चुके हैं। कमलनाथ सरकार के दौरान मंत्री बनने का मौका भी मिला था और जीतू पटवारी की टीम में भी अहम भूमिका में हैं, लेकिन पार्टी के लिए जो तेवर चाहिए जो एग्रेशन चाहिए क्या जयवर्धन सिंह उसी तेवर के साथ आगे बढ़ रहे हैं। या, फिर वो कांग्रेस के कई नेताओं की तरह बस मतदाता का मन बदलने के इंतजार में हैं।

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