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कुछ तो मजबूरियां रही होंगी
यूं ही कोई बेवफा नहीं हो जाता।
बशीर बद्र का ये शेर और प्रदेश के एक सीनियर लीडर का हाल बिलकुल एक सा है। दो पंक्तियां और पेश करते हैं।
जी बहुत चाहता है सच बोलें,
क्या करें हौसला नहीं होता।
NEWS STRIKE : जिस दावे के साथ हमने ये कहा कि पहली दो पंक्तियों का वास्ता एक राजनेता से है। उसी दावे के साथ इन दो पंक्तियों के लिए नहीं कह सकते कि इसका उसी राजनेता से कुछ नाता है या नहीं। वो आप खुद ही तय कीजिएगा। क्योंकि हम जिस नेता की आज बात करने वाले हैं उसका राजनीतिक सफर बेहद दिलचस्प रहा है। वो कभी चुनाव नहीं जीता, लेकिन चुनावी मैनेजमेंट का एक्सपर्ट है। दल बदलने वालों में से एक चेहरा है। जिसे नई पार्टी से कुछ नहीं मिला। फिर भी बयान ये है कि अब जो सम्मान मिल रहा है उससे खुश हैं। तो पहले जहां थे वहां बिना जीते केंद्रीय मंत्री का भी पद मिला वो क्या था।
पचौरी कई बार चुनाव लड़े पर जीत नहीं सके
हम आज जिस नेता की बात कर रहा हैं उस नेता का नाम है सुरेश पचौरी। जो कुछ महीने पहले तक कांग्रेस के नेता था। सालों तक कांग्रेस के ही नेता रहे, लेकिन अब बीजेपी के हो चुके हैं। अचानक दिल बदला तो दल बदला। ये बात अलग है कि दल बदल कर भी उन्हें कुछ मिला नहीं। जैसे बीजेपी में आने के बाद दूसरे कांग्रेस नेताओं को मिला। सुरेश पचौरी करीब पचास साल तक कांग्रेस से जुड़े रहे। वो राजीव गांधी के करीबी रहे। कांग्रेस में रहते हुए उन्हें चुनाव लड़ने के मौके कई बार मिले, लेकिन वो कभी कोई चुनाव नहीं जीत सके। हर चुनावी हार का ये मतलब नहीं था कि उनकी पार्टी में धाक कुछ कम हो गई हो।
पचौरी कांग्रेस से राजीव गांधी के समय से ही जुड़े हुए हैं। साल 1981 में उन्हें कांग्रेस में युवा कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। इसके बाद वो यूथ कांग्रेस के और भी अलग-अलग पदों पर रहे। साल 1984 में कांग्रेस ने उन्हें राजयसभा के लिए चुना। 1990, 1996 और 2002 में भी वो कांग्रेस से राज्यसभा गए। मध्यप्रदेश से चार बार राज्यसभा सांसद रहे पचौरी केंद्र सरकार में दो बार मंत्री भी रहे। वो कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे।
चुनाव हारे, लेकिन रणनीति बनाने में एक्सपर्ट हैं पचौरी
2008 के चुनाव के समय सुरेश पचौरी ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। तब कांग्रेस ने 78 सीटें जीती थीं। ये इससे पहले के चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन से बेहतर प्रदर्शन था। इसके अगले ही साल हुई लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस की हालत काफी बेहतर थी। मैं बात कर रहा हूं साल 2009 की। जब कांग्रेस ने प्रदेश की 12 लोकसभा सीटे जीतीं। 1984 के बाद कांग्रेस ने इतनी सीटें एक साथ जीती थीं। कुछ पुरानी रिपोर्ट्स ये भी बताती हैं कि साल 2008 में जो चुनाव हुए उस समय 178 निर्दलीय भी मैदान में थे। जो कांग्रेस के ही वोट काट रहे थे, लेकिन तब भी पचौरी पार्टी को 78 सीटें जिताने में कामयाब रहे। ये कारनामा वो तब कर पाए जब कभी न दिग्विजय खेमे के माने गए न कमलनाथ खेमे के माने गए। इसलिए ये माना जाता रहा कि वो अपनी ही पार्टी के कई दिग्गजों को खटकते भी रहे।
सुरेश पचौरी के साथ जुड़ा सबसे इंटरेस्टिंग फेक्ट ये है कि चुनाव में कांग्रेस की हालत बेहतर करने वाले पचौरी खुद कभी चुनाव नहीं जीते। वो मध्यप्रदेश की भोजपुर सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन हार गए। वो लोकसभा चुनाव भी हार चुके हैं, लेकिन रणनीति बनाने में एक्सपर्ट माने जाते हैं। इसलिए उन्हें बतौर लोकसभा प्रभारी, चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी भी मिल चुकी है।
पचौरी बोले- सम्मान नहीं मिले वहां रहने से क्या फायदा
साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सुरेश पचौरी ने एक बयान दिया था। इस बयान में उन्होंने कहा था कि ये लोकसभा चुनाव देश के लिए बहुत अहम हैं। देश के लोगों ने पांच सालों का मोदी सरकार का नकारापन देखा है। उनका आरोप ये भी था कि मोदी सरकार में देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है। पचौरी ने ये संकल्प भी दोहराया कि देश में कांग्रेस की सरकार बनानी है और राहुल गांधी को पीएम बनाना है। 2019 तक जो सुरेश पचौरी ये संकल्प ले रहे थे कि राहुल गांधी को पीएम बनाना है। वही सुरेश पचौरी अगले ही लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए। मार्च 2024 को कांग्रेसी का लेवल उतार कर भाजपाई हो गए। बयान ये दिया कि जहां सम्मान नहीं मिल रहा वहां रहने से क्या फायदा।
बीजेपी में कैसा महसूस कर रहे हैं सुरेश पचौरी...
सुरेश पचौरी जैसे सीनियर कद का नेता बीजेपी में शामिल हुआ तो उम्मीद जताई जा रही थी कि उन्हें कोई जिम्मेदारी मिलेगी, लेकिन बीजेपी में उन्हें उनकी सीनियरटी के हिसाब से न पद मिला न ही कोई जिम्मेदारी मिली है। इस लोकसभा चुनाव में भी उन्हें कोई काम नहीं सौंपा गया। इसके बाद से ये जानना लाजमी हो जाता है कि सुरेश पचौरी कहां है और अब बीजेपी में कैसा महसूस कर रहे हैं। चंद ही रोज पहले सुरेश पचौरी एक न्यूज प्रोग्राम में नजर आए। उनसे यही सवाल भी हुआ कि वो बीजेपी में कैसा महसूस कर रहे हैं इसके जवाब में पचौरी ने कहा कि सम्मान केवल वो नहीं होता जो किसी पद से मिलता है। उन्हें सम्मान की नजरों से देखा जाता है। यही उनके लिए असली रिस्पेक्ट है।
वैसे भी देखा जाए तो पचौरी के लिए कुछ खास नहीं बदला है। बीते कुछ साल से कांग्रेस में भी वो मुख्यधारा से दूर ही थे और बीजेपी में भी वही हाल है।
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