हरीश दिवेकर, भोपाल. लोकसभा चुनाव के नतीजे मध्यप्रदेश के किसी सांसद के लिए खुशी का पैगाम लेकर आएंगे तो किसी के अरमानों पर पानी फिरना तय है। नतीजों में बीजेपी को बहुमत न मिलने का खामियाजा या तो वीडी शर्मा को भुगतना पड़ सकता है या फग्गन सिंह कुलस्ते को भुगतना पड़ सकता है।
ये भी हो सकता है कि बहुत बड़ी जीत हासिल करने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान नुकसान झेलें या फिर इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया की किस्मत का तारा न चमके। क्या ये बात सुनकर आप भी सोच रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों होगा। मध्यप्रदेश में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया है फिर भी यकीन मानिए केंद्र की ओर से प्रदेश बीजेपी की झोली पूरी तरह भरने वाली नहीं है।
शिवराज सिंह चौहान को भुगतना होगा खामियाजा!
लोकसभा के चुनावी नतीजों में अब की बार चार सौ पार हुए हों या न हुए हों, लेकिन बीजेपी का एक नारा जरूर सच हो गया है। ये नारा है आएगा तो मोदी ही। यकीनन मोदी ही आएगा और हो सकता है एक या दो दिन में उनकी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद पर ताजोपशी होते हुए हम सभी देखेंगे, लेकिन इस बार दमखम जरा कम होगा। क्योंकि इस बार कैबिनेट मर्जी की नहीं होगी, बल्कि कंप्रोमाइज के साथ बन कर तैयार होगी।
जीत कर जो दल सरकार बना रहा है, वो बीजेपी नहीं है बल्कि गठबंधन एनडीए है। तो जाहिर तौर पर हर साथी दल का ध्यान रखना और मान मनोव्वल करते रहने की मजबूरी नरेंद्र मोदी ही नहीं पूरी बीजेपी की होगी। इसका खामियाजा भुगतना होगा। मध्यप्रदेश से बंपर जीत हासिल करने वाले नेताओं को, जिसमें सबसे पहला नाम है शिवराज सिंह चौहान का।
शिवराज सिंह चौहान चार बार प्रदेश के मुखिया रहे। साल 2023 में भी बीजेपी ने उन्हीं की सरपरस्ती में जीत हासिल की। इस बार उन्हें फिर विदिशा की सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिला और, उन्होंने कमाल दिखा दिया। शिवराज सिंह चौहान विदिशा सीट से 8 लाख 21 हजार से ज्यादा वोटों से जीते। प्रदेश के सबसे वरिष्ठ, सबसे कामयाब और सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले नेता होने के बावजूद क्या शिवराज सिंह चौहान को मोदी कैबिनेट में मंत्री पद मिल सकेगा।
सिंधिया के नाम पर भी संशय
खामियाजा भुगतने वाले नेताओं में दूसरा नाम आता है ज्योतिरादित्य सिंधिया का, जिन्हें बीजेपी में शामिल होते ही सिरआंखों पर बैठाया गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछला चुनाव हारे थे। लेकिन इस बार अपनी पुरानी और पारंपरिक सीट गुना शिवपुरी को बचाने में कामयाब रहे हैं। वो 5 लाख 40 हजार से ज्यादा वोटों से जीते। सीनियोरिटी में भी वो पीछे नहीं हैं। तो, क्या इस बार वो मोदी कैबिनेट में जगह हासिल कर सकेंगे।
वीडी शर्मा का भी दावा मजबूत
वीडी शर्मा को भी कम नहीं आंका जा सकता है। संगठन में कसावट बनाए रखने का क्रेडिट तो उनको ही मिलता है। इसके अलावा वो खजुराहो में फिर से जीत दर्ज करने में भी कामयाब रहे हैं। वीडी शर्मा को खजुराहो से 5 लाख 41 हजार से ज्यादा वोट मिले। विधानसभा चुनाव के अलावा लोकसभा चुनाव में जो क्लीन स्वीप हुआ है, उसके लिए वीडी शर्मा की पीठ भी थपथपाना जरूरी है। क्या इस जीत के बदले वो मोदी कैबिनेट में पहुंच सकेंगे।
कुलस्ते बड़ा आदिवासी चेहरा
इस फेहरिस्त में फग्गन सिंह कुलस्ते का नाम भी आता है। ये बात अलग है कि फग्गन सिंह के रिपोर्ट कार्ड में प्लस से ज्यादा माइनस प्वाइंट हैं। वो विधानसभा चुनाव हार गए थे। इसके बावजूद मंडला से उन्हें बीजेपी ने लोकसभा टिकट दिया। वजह ये है कि वो बड़ा आदिवासी चेहरा हैं। उनकी नाराजगी पार्टी पर भारी पड़ती, लेकिन उनकी जीत भी कोई खास बड़ी नहीं रही। वो अपनी सीट से महज 1 लाख 3 हजार वोटों से कुछ ज्यादा वोट ही हासिल कर सके। लेकिन उन्हें आदिवासी तबके का बड़ा चेहरा होने का फायदा मिला तो वो फिर भी मोदी कैबिनेट का रूख कर सकते हैं।
इस लिस्ट में शंकर लालवानी का नाम वैसे तो नहीं आता. लेकिन उनकी जीत इतनी बड़ी है कि उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। हो सकता है कि नोटा को वोट के मामले में रिकॉर्ड बनाने वाले इंदौर के सांसद शंकर लालवानी भी मंत्री बनने के दावेदारों में शामिल हो सकते हैं।
लेकिन क्या इस बार मोदी कैबिनेट में प्रदेश के वाकई इतने लोगों को जगह मिल सकेगी। ये इतना आसान नहीं है। क्योंकि इस बार सरकार को गठबंधन वाले दलों का भी ध्यान रखना है। पहले तो आपको मैं ये याद दिला दूं कि मोदी कैबिनेट में पिछली बार अच्छी खासी तादाद में मध्यप्रदेश से मंत्री शामिल थे। इसमें खुद फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नाम शामिल थे।
सहयोगी दलों का होगा दबाव
पिछली मोदी सरकार में बीजेपी ने मध्यप्रदेश के नेताओं को खूब नवाजा। क्या इस बार भी ऐसा करना आसान होगा। क्या गठबंधन इस बार राह में रोड़ा नहीं बनेगा। ज्ञात हो कि सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 272 से ज्यादा सीटें चाहिए, जबकि बीजेपी की झोली मे आई हैं 240 सीटें। ऐसे में बीजेपी अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती। उसे अलायंस की जरूरत होगी।
इस अलांयस में अहम भूमिका होगी चंद्रबाबू नायडू की और नीतीश कुमार की। इसके अलावा चिराग पासवान की पार्टी भी अपने सारे उम्मीदवार जिताने में कामयाब रही है। ज्ञात हो कि एनडीए में शामिल चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी 16 सीटें, नीतीश कुमार की जेडीयू 12 सीटें, एकनाथ शिंदे की शिवसेना 7 सीटें, चिराग पासवार के हिस्से वाली एलजेपी 5 सीटें और जेडीएस 2 सीटें जीतने में कामयाब रही है।
नायडू, नीतीश असल किंग मेकर
इसमें सबसे बड़ा शेयर चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार का ही है। जाहिर है यही दोनों असल किंग मेकर भी साबित होंगे और खुद का रसूख भी किंग से कम नहीं रखेंगे। फिलहाल तो राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं और अटकलों का दौर जारी है। सोशल मीडिया और बहुत से न्यूज चैनल्स पर इन दलों के डिमांड की लिस्ट मिल जाएगी, जिसमें अपने प्रदेश के लिए खास सौगातों के अलावा अपने दल के सांसदों के लिए अहम विभागों के मंत्री पद की डिमांड शामिल होगी।
खास मंत्रालयों के अलावा खासतौर से चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार अपने अपने प्रदेश यानी कि आंध्रप्रदेश और बिहार के लिए स्पेशल स्टेट्स का दर्जा भी मांग सकते हैं। इस मुद्दे को तेजस्वी यादव कई बार बिहार में उठा भी चुके हैं। अब विरोधी का मुंह बंद करवाने का नीतीश बाबू को अच्छा मौका मिला है, जिसे वो यकीनन गंवाना नहीं चाहेंगे।
सरकार चलाना आसान नहीं
अब मोदी 3.0 में सरकार चलाना उतना आसान नहीं होगा, जितना आसान इससे पहले तक रहा है। गठबंधन वाली सरकार की जो मजबूरियां होती हैं और जो समझौते होते हैं, उन्हें साथ लेकर चलने की मजबूरी नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भी होगी। ये तय मान लीजिए कि अब सरकार चलाना उस रस्सी पर चलने जैसा है जहां कोई सहारा मौजूद नहीं है। ऊपर से सिर पर बोझा भी रखा हुआ है। अब खुद अपने नेताओं को भी संभालना है और दूसरे दलों को भी संभालना है और पांच साल का लंबा सफर पूरा करना है।
अपने नेताओं को एडजस्ट करना मुश्किल
ऐसे में अगर मोदी अपने ही नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करेंगे तो सरकार चलाना तो दूर बनना भी मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में फिलहाल जो हालात नजर आ रहे हैं और अंदरखाने में जो अटकलें हैं वो इस तरफ इशारा कर रही हैं कि इस बार सिर्फ शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही मोदी कैबिनेट में मौका मिल सकता है। वीडी शर्मा के लिए एक बार फिर दिल्ली दूर ही रहने वाली है। फग्गन सिंह कुलस्ते और शंकर ललवानी का तो नंबर भी दूर दूर तक फिलहाल नजर नहीं आता है। हालांकि, राजनीति की दुनिया में कब क्या हो जाए और कौन से नए रास्ते खुल जाए ये कहा नहीं जा सकता. फिलहाल कुछ दिन तो वेट एंड वॉच के बाद ही तस्वीर साफ होगी।
न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर harish divekar harish divekar news strike | Harish Divekar Journalist Bhopal | हरीश दिवेकर पत्रकार मोदी मंत्रिमंडल