शिव की बेटी मानी जाती हैं नर्मदा, देवाधिदेव से ही कई वरदान लिए, इसलिए ले लिया कुआंरी रहने का प्रण और चल दीं नई राह

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आज नर्मदा जयंती है। ये संयोग ही रहता है कि शनिवार हो, उसी दिन कोई तिथि, वार, जयंती या उस तारीख से जुड़ा कुछ हो। तो आज का संयोग कुछ ऐसा ही है। नर्मदा जयंती है तो आज मां नर्मदा की ही कहानी होने वाली है। मैं मध्य प्रदेश से हूं। नर्मदा किनारे के शहर का रहने वाला हूं। वहीं पला-बढ़ा। नर्मदा का माहात्म्य यूं तो पूरे देश खासकर मध्य प्रदेश में बिखरा पड़ा है। नर्मदा तट पर रहने वालों के लिए नर्मदा बहुत खास हो जाती हैं। नर्मदा किनारे के लोग नर्मदा नहीं नरबदा जी कहते हैं। आज की कहानी को मैंने नाम दिया है- नर्मदा की जुदा राह...

कहते हैं कि मैखल पर्वत तपस्या में बैठे भगवान शिव के पसीने से नर्मदा प्रकट हुईं थीं। नर्मदा ने प्रकट होते ही अपने अलौकिक सौंदर्य से ऐसी चमत्कारी लीलाएं दिखाईं कि खुद शिव-पार्वती चकित रह गए। तभी उन्होंने नामकरण करते हुए कहा- देवी, तुमने हमारे दिल को हर्षित कर दिया। इसलिए तुम्हारा नाम नर्मदा हुआ। नर्म का अर्थ है- सुख और दा का अर्थ है- देने वाली। इसका एक नाम रेवा भी है, लेकिन नर्मदा ही सर्वमान्य है। (माई रेवा तेरा पानी निर्मल...गाना लगेगा)

स्कंद पुराण में वर्णित है कि राजा-हिरण्यतेजा ने 14 हजार वर्षों की घोर तपस्या से शिव भगवान को प्रसन्न कर नर्मदा जी को पृथ्वी तल पर आने के लिए वर मांगा। शिव जी के आदेश से नर्मदा जी मगरमच्छ के आसन पर विराजकर उदयाचल पर्वत पर उतरीं और पश्चिम दिशा की ओर बहीं।

नर्मदा नदी के बारे में कहा जाता है कि यह राजा मैखल की बेटी थीं। नर्मदा के विवाह योग्‍य होने पर मैखल ने उनके विवाह की घोषणा करवाई। साथ ही यह भी कहा कि जो भी व्‍यक्ति गुलबकावली का पुष्‍प लेकर आएगा राजकुमारी का विवाह उसी के साथ होगा। इसके बाद कई राजकुमार आए, लेकिन कोई भी राजा मैखल की शर्त पूरी नहीं कर सका। तभी राजकुमार शोणभद्र (सोन नदी) आए और राजा की गुलबकावली पुष्‍प की शर्त पूरी कर दी। इसके बाद नर्मदा और सोनभद्र का विवाह तय हो गया।

राजा मैखल ने जब राजकुमारी नर्मदा और राजकुमार शोणभद्र का विवाह तय किया तो राजकुमारी की इच्‍छा हुई कि वह एक बार तो उन्‍हें देख लें। इसके लिए उन्‍होंने अपनी सखी जुहिला को राजकुमार के पास अपने संदेश के साथ भेजा। लेकिन काफी समय गुजर गया और जुहिला वापस नहीं आई। इसके बाद तो राजकुमारी को चिंता होने लगी और वह उसकी खोज में निकल गईं। तभी वह सोनभद्र के पास पहुंचीं और वहां जुहिला को उनके साथ देखा। यह देखकर उन्‍हें अत्‍यंत क्रोध आया। इसके बाद ही उन्‍होंने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण लिया और उल्‍टी दिशा में चल पड़ीं।

नर्मदा के प्रेम की और कथा मिलती है कि शोणभद्र और नर्मदा अमरकंटक की पहाड़‍ियों में साथ पले बढ़े। किशोरावस्‍था में दोनों के बीच प्रेम का बीज पनपा। तभी शोणभद्र के जीवन में जुहिला का आगमन हुआ और दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। इसके बाद जब नर्मदा को यह बात पता चली तो उन्‍होंने शोणभद्र को काफी समझाया-बुझाया, लेकिन वह नहीं माने। इसके बाद नर्मदा क्रोधित होकर उलटी दिशा में चल पड़ीं और आजीवन कुंवारी रहने की कसम खाई। नर्मदा को मध्‍य प्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है। नर्मदा की उत्‍पत्ति मैकल पर्वत के अमरकंटक से हुई है। ये पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है और खम्‍बात खाड़ी में गिरती है। नर्मदा भारत के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी है। नर्मदा की लंबाई 1312 किमी है।

ग्रंथों में नर्मदा नदी की उत्‍पत्ति और उसकी महत्‍ता का विस्‍तार से वर्णन मिलता है। इन्‍हीं कथाओं के अनुसार नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से होने वाले फल की भी जानकारी मिलती है। नर्मदा ही इकलौती नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। पुराणों में उल्‍लेख मिलता है कि गंगा स्‍नान से भी जो फल नहीं मिलता वह नर्मदा के दर्शन मात्र से ही प्राप्‍त हो जाता है।