NEW DELHI. साल 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले सभी विपक्षी दल एक साथ आए और उन्होंने मिलकर I.N.D.I.A. गठबंधन बनाया। तय किया कि वह एनडीए (BJP) का विजय रथ रोकेंगे। एक तो पहले सभी विपक्षी दलों का साथ आना ही मुश्किल रहा, लेकिन घोषणा की गई कि सभी मिलकर लड़ेंगे। पर अब I.N.D.I.A. में शामिल दलों के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कई ऐसे फैसले सामने आ रहे हैं, जिससे कि इन दलों की एकता बहुत मजबूत नहीं दिख रही है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, मिजोरम, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव होने हैं। इसमें तेलंगाना को छोड़ दें तो बाकी चार राज्यों में ऐसी स्थिति बन रही है, जो न सिर्फ लोगों को असमंजस में डाल रही है, बल्कि अभी-अभी नए बने इंडिया ब्लॉक के भविष्य के लिए भी खतरे का संकेत है।
शरद पवार, केजरीवाल, ममता का बदला रुख
विधानसभा चुनावों में नजर आ रही ताजा हलचलों के तहत शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी इंडिया ब्लाक के उसूलों के उलट व्यवहार करते दिखे हैं। अब जब चार राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और देखने को मिल रहा है कि विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों ने भी इस चुनाव में अपने अलग-अलग उम्मीदवार खड़े किए हैं। ऐसे में जब विपक्षी गठबंधन की राह मुश्किल तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा।
जेडीयू : विपक्षी गठबंधन को दिया करारा झटका
मध्य प्रदेश में लगातार विपक्षी दल इंडिया गठबंधन के साथ अपने बागी तेवर दिखा रहे हैं। अभी ताजा मामला जेडीयू का है। असल में जेडीयू ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। पहली लिस्ट में जेडीयू के 5 उम्मीदवारों के नाम हैं। इनमें पिछोर विधानसभा सीट से चंद्रपाल यादव, राजनगर से रामकुंवर (रानी) रैकवार, विजय राघवगढ़ सीट से शिव नारायण सोनी, थांदला विधानसभा सीट से तोल सिंह भूरिया और पेटलावद रामेश्वर सिंघार को उम्मीदवार बनाया है। जेडीयू का इस तरीके से एमपी में अपने उम्मीदवार उतारना कई सवाल खड़े करता है। सवाल इस बात का, कि क्या INDIA गठबंधन अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने से पहले ही खात्मे की कगार पर है? असल में बिहार में तो महागठबंधन के भीतर भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। ये सवाल सिर्फ जेडीयू की वजह से नहीं उठा है और न ही नीतीश कुमार की पार्टी तक सीमित है।
समाजवादी पार्टी : दिखाए बागी तेवर, एमपी में उतारे 22 प्रत्याशी
जेडीयू से पहले समाजवादी पार्टी ( सपा) भी चर्चा में है। पिछले दिनों सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ या फिर ऐसा कह लें कि इंडिया गठबंधन के साथ बागी तेवर दिखाए थे। सपा के साथ तो कहानी ही अलग हुई. दरअसल, एमपी में समाजवादी पार्टी ने अपने 22 उम्मीदारों के नाम का ऐलान किया था, इससे कांग्रेस बिफर गई और कहा कि अगर सपा इतनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो सीधे-सीधे बीजेपी को इससे फायदा होगा। अखिलेश यादव ने कहा, अगर हमें पता होता कि विधानसभा स्तर पर गठबंधन नहीं है तो न हम बैठक में जाते और ना ही कांग्रेस नेताओं के फोन उठाते। कांग्रेस की इस तल्खी को लेकर अखिलेश ने कहा था कि रात 1 बजे तक कांग्रेस नेताओं ने सपा नेताओं को बैठाकर रखा और बातचीत की, आश्वासन दिया कि कांग्रेस सपा के लिए 6 सीटों पर विचार करेगी, लेकिन जब लिस्ट आई तो उसमें सपा के एक भी उम्मीदवार को जगह नहीं दी गई।
आम आदमी पार्टी : केजरीवाल ने भी चुना अलग रास्ता
विपक्षी गठबंधन में आम आदमी पार्टी (आप) भी शामिल हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाले इस दल ने अब तक 45 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार लिए हैं। यहां कांग्रेस ने सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी है यानी अभी तक आप 50 फीसदी सीटों पर कांग्रेस से दो-दो हाथ कर रही है, जबकि गठबंधन धर्म के अनुसार दोनों दलों को आपस में समझौता-समर्थन करते हुए अपने उम्मीदवार उतारने थे। स्थिति यह है कि गठबंधन के नाम पर दोनों पार्टियां एक साथ भी हैं और चुनाव लड़ने के तौर पर अलग-अलग भी हैं। बात करें राजस्थान की तो यहां मुख्य लड़ाई कांग्रेस-बीजेपी की जरूर है, लेकिन सीन में आम आदमी पार्टी भी है। हालांकि अभी तक आप ने उम्मीदवारों की लिस्ट तो नहीं जारी की है, लेकिन दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल यहां से सभी 200 सीटों पर लड़ने की ऐलान कर चुकी है। आप पहली बार मिजोरम में चुनाव में उतर रही है और यहां पर पार्टी ने अपने चार उम्मीदवारों की घोषणा की है।
विपक्षी एकता के लिए हो चुकी हैं तीन बैठकें, फिर भी एकता ‘गायब’
सपा का कहना है कि उन्हें पता ही नहीं है कि ये गठबंधन विधानसभा स्तर पर नहीं है। विपक्षी एकता के लिए अब तक तीन बैठकें हो चुकी हैं। इन बैठकों में गठबंधन का एजेंडा, सीटों का बंटवारा और गठबंधन कैसे काम करेगा, इस पर चर्चा हुई है, लेकिन इतनी चर्चाओं के बाद नतीजा सिफर ही रहा है।
सवाल : विपक्ष का कन्फ्यूजन जनता के बीच कैसे दे पाएगा मजबूती?
अब सवाल यह उठ रहे है कि जब घटक दलों को पता ही नहीं है कि गठबंधन विधानसभा में है या सिर्फ 2024 के लिए है या भविष्य के लिए भी है तो ऐसा कन्फ्यूजन जनता के बीच कैसे मजबूत दे पाएगा। अभी जो उदाहरण सामने रखे वह सिर्फ एक राज्य मध्य प्रदेश में कांग्रेस, सपा, जेडीयू और आम आदमी पार्टी के उदाहरण हैं। विपक्षी एकता की कन्फ्यूजन कथा यहीं तक सीमित नहीं है।
कांग्रेस के बढ़ते हस्तक्षेप से नीतीश कुमार नाराज!
विधानसभा चुनावों में बिखरते दिख रहे इंडिया ब्लॉक से दिग्गज नेता भी परेशान हैं। जिस विपक्षी एकता का राग इंडिया गठबंधन के घटक दल गा रहे हैं, वो कई मौकों पर संदिग्ध दिखी है। नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता का झंडा बुलंद करते हुए देशभर की यात्रा की थी, लेकिन गठबंधन की बैठक होते-होते वह किनारे होते गए बल्कि एक मौके पर वह सीधे तौर नाराज और निराश भी बताए जाने लगे, जिसकी वजह ये थी कि सारा मजमा उन्होंने जुटाया लेकिन कांग्रेस ने इसे पूरी तरह टेकओवर कर लिया और सभी फैसले राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से होने लगे।
शरद पवार भी बढ़ाते रहे मुश्किल
इंडिया गठबंधन की मुश्किलें एनसीपी चीफ शरद पवार भी बढ़ाते रहे हैं। वे कई बार गठबंधन के विपरीत लीक पर चलते दिखे हैं। फिर चाहे अडाणी पर जेपीसी जांच से दूरी रही हो, पीएम मोदी के डिग्री मामले से किनारा करने की नीति रही हो, कांग्रेस की रजामंदी के बगैर पीएम मोदी के साथ मंच शेयर करना रहा हो या फिर अडाणी के साथ उद्घाटन कार्यक्रम में जाना रहा हो, ये सारी ऐसी बातें हैं जो कि साबित करती हैं कि 'इंडिया गठबंधन' को अपने पक्ष में वोटरों को एकजुट करने से पहले खुद अपने घटक दलों के बीच एकजुटता स्थापित करनी होगी, ताकि वोटरों के बीच स्पष्ट संदेश जा सके और एनडीए गठबंधन को ये गठबंधन टक्कर दे सके।