नीतीश कुमार की पार्टी JDU सिमट रही है? एक दशक में 115 से 45 विधायकों पर पहुंची, जानें अबकी पलटी से क्या होगा

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BP Shrivastava
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 नीतीश कुमार की पार्टी JDU सिमट रही है? एक दशक में 115 से 45 विधायकों पर पहुंची, जानें अबकी पलटी से क्या होगा

BHOPAL. नीतीश कुमार ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि वे राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं। बिहार में कोई भी बड़ा दल ( विधायकों के हिसाब से ) बना रहे, लेकिन नंबर एक की कुर्सी उन्हीं के लिए रिजर्व है। नीतीश कुमार रविवार, 28 जनवरी को रिकॉर्ड 9वीं बार मुख्यमंत्री बने हैं। पिछले एक दशक में उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड ( JDU) के सांसदों और विधायक बनने में बड़ा अप-डाउन रहा है। मौजूदा समय में JDU के विधायकों की संख्या 45 है, जबकि दस साल पहले यानी 2013 में JDU के 115 विधायक थे।

आंकड़े बताते हैं कि हर बार पाला बदलने के बाद JDU के विधायकों की संख्या घटती चली गई है। अब नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का साथ छोड़कर फिर बीजेपी के साथ आ गए हैं। सियासी जानकार अपना-अपना अनुभव शेयर कर रहे हैं। इसी बीच जाने-माने राजनीतिक रणनीतिकार और जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि नीतीश अपने राजनीतिक करियर के अंतिम दौर में हैं और उनका पतन होना तय है। इसे लेकर भी बड़ी बहस छिड़ गई है, लेकिन हम यहां सिर्फ नीतीश की पार्टी के घटते-बढ़ते सांसदों और विधायकों का एनालेसिस कर रहे हैं।

यहां जानेंगे कि 2025 विधानसभा चुनाव में नीतीश और JDU पार्टी का भविष्य क्या होगा और क्या वास्तव में नीतीश कुमार का राजनीतिक पतन हो रहा है?

साल 2013: बीजेपी से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ा, लोकसभा-विधानसभा में नुकसान

बीजेपी ने आम चुनाव 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया। घोषणा होने से नाराज नीतीश कुमार ने जून 2013 को 17 साल से NDA के साथ चला आ रहा गठबंधन तोड़ दिया। नीतीश ने उस समय संघ-मुक्त भारत का आह्वान करते हुए घोषणा की थी कि मिट्टी में मिल जाएंगे, बीजेपी के साथ वापस नहीं जाएंगे। नीतीश को राजद का समर्थन मिला और वो मुख्यमंत्री बने रहे। इस फैसले से राजनीतिक तौर पर 2014 लोकसभा और 2015 विधानसभा चुनाव में JDU को कितना नुकसान हुआ...

  • 2014 में लोकसभा चुनाव में नीतीश को 18 सीटों का नुकसान हुआ। बिहार में कुल संसदीय सीटें 40 हैं। जिसमें 2009 में JDU के सांसदों की संख्या 20 थी, लेकिन 2014 में यह मात्र 2 रह गई।
  • 2015 विधानसभा चुनाव में नीतीश को 27 सीटों का नुकसान हुआ बिहार विधानसभा में कुल विधानसभा सीटें 243 हैं। साल 2010 में JDU के विधायकों की संख्या 115 थी, लेकिन यह 2015 में 71 रह गई।

साल 2017: बीजेपी के साथ गए तो विधानसभा में 28 सीटों का नुकसान हुआ

नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा लालू प्रसाद यादव की पार्टी RJD के साथ भी लंबे समय तक नहीं चल पाई। तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नीतीश ने उनसे इस्तीफा मांगा, लेकिन उन्होंने नहीं दिया। तो नीतीश ने खुद सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और कहा, तेजस्वी मुझसे मिले, मैंने उनसे इस्तीफा नहीं मांगा था। केवल उन पर लगे आरोपों पर स्पष्टीकरण मांगा था। इसके बाद CM नीतीश ने रातोंरात बीजेपी से हाथ मिला लिया।

2019 लोकसभा चुनाव में फायदा और 2020 विधानसभा में JDU को नुकसान

  • 2014 लोकसभा चुनाव में जेडीयू को भारी नुकसान हुआ, वह मात्र दो सीटों पर सिमट गई। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 14 सीटों का इजाफा हुआ यानी 16 सीटें जीतीं।
  • 2015 विधानसभा चुनाव में जेडीयू के 71 विधायक थे, जबकि 2020 में यह संख्या केवल 43 विधायकों पर आ कर सिमट गई।

साल 2022: नीतीश वापस लालू के साथ गए, 3 विधानसभा उपचुनाव में JDU हाथ खाली रहा

बीजेपी के साथ भी नीतीश कुमार की पारी लंबे समय तक नहीं चली। अगस्त 2022 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर से पलटी मारी। इस बार नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्रिमंडल में जदयू कोटे से उतने ही मंत्री चाहते थे, जितने मंत्री बिहार के BJP कोटे से बनाए गए थे।

केंद्रीय मंत्रिमंडल में समान अनुपात में प्रतिनिधित्व न मिलने से नाराज चल रहे नीतीश ने BJP पर जदयू को कमजोर करने का आरोप लगाया। नीतीश ने बीजेपी के साथ अपना गठबंधन समाप्त किया और तेजस्वी की महागठबंधन में डिप्टी सीएम के रूप में वापसी हुई।

अक्टूबर 2023 में NDA से अलग होने के बाद 3 विधानसभाओं के उपचुनाव में JDU को कोई सफलता नहीं मिली।

आपके दिमाग में चल रहे कुछ सवालों के जवाब यहां देना का प्रयास इस तरह से कर रहे हैं...

पाला बदलने से नीतीश के वोट शेयर पर नहीं पड़ता असर

सियासी जानकारों का मानना है कि पाला बदलने से निश्चित तौर पर नीतीश को नुकसान होगा। बीते दो विधानसभा चुनाव 2015 और 2020 के परिणाम इस ओर इशारा करते हैं। यह संभव है कि नीतीश कुमार की पार्टी पूरी तरह से बीजेपी पर निर्भर हो जाए, बीजेपी भी यही चाहती है। नीतीश जितना कमजोर होंगे, बीजेपी को उतना ही ज्यादा फायदा होगा।

इसके अलावा बिहार में नीतीश कुमार का 16% वोट शेयर है। उनके वोट शेयर पर उनके पाला बदलने से कोई असर नहीं होता है। वह बिहार में कोयरी, कुर्मी और महादलित समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं। इस समुदाय के लोगों के लिए नीतीश कुमार प्राइड इश्यू हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार को साथ रखना बीजेपी और आरजेडी दोनों की मजबूरी है।

वोट शेयरिंग पर असर नहीं पर विधायकों की संख्या घटी

नीतीश कुमार की पार्टी JDU 2015 में 101 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। जबकि 2020 में 115 सीटों पर चुनाव लड़ी। भले ही JDU 2020 में 14 ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ी हो, लेकिन उसके विधायकों की संख्या 71 से घटकर 43 रह गई। इसके बावजूद नीतीश कुमार के वोट बैंक में कुछ खास कमी नहीं हुई। 2020 विधानसभा चुनाव में भी उन्हें 15.39% वोट मिले थे। उनका कोर वोट बैंक 15% से 16% है। नीतीश की पार्टी को कम से कम 28 सीटों पर चिराग पासवान के लोजपा की वजह से हार का सामना करना पड़ा।

सीटें कम होने की यह भी एक वजह

इन सीटों पर चिराग के कैंडिडेट ने बीजेपी के वोट को अपनी ओर खींचकर JDU को नुकसान पहुंचाया था। बाद में अशोक चौधरी समेत कई बड़े JDU नेताओं ने बीजेपी पर ये आरोप भी लगाए। मतलब साफ है कि 2020 विधानसभा चुनाव में अगर बीजेपी के वोट में सेंध नहीं लगती तो JDU कम से-कम 73 सीटों पर चुनाव जीत जाती। 

महादलितों में नीतीश की अच्छी पकड़

 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने महादलित योजना की शुरुआत की। उन्होंने दलित मानी जाने वाली 21 उपजातियों को मिलाकर महादलित श्रेणी तैयार की, लेकिन इसमें से पासवान जाति को अलग रखा। इस तरह उन्होंने दलितों को दो कैटेगरी दलित और महादलित में बांट दिया।

इसके बाद से ही दलितों में 15% वोट नीतीश कुमार को जबकि 6% पासवान वोट चिराग पासवान को मिलने लगे। हालांकि बाद में पासवान को भी महादलित में शामिल किया गया। जीतन राम मांझी भले महादलित के नेता हों, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। यही वजह है कि वो महादलितों के सबसे बड़े नेता हैं।

लोकसभा में फायदे के लिए नीतीश ने पलटी मारी?

नीतीश कुमार को लग रहा है कि 2024 लोकसभा चुनाव में उनके सीटों की संख्या 16 से घट सकती हैं। नीतीश 2013 के बाद जब भी बीजेपी के साथ गए, लोकसभा में उन्हें फायदा हुआ। इस बार भी फायदा होना तय है। यही वजह है कि इस समय उन्होंने पाला बदला है।

नीतीश ज्यादा से ज्यादा समय सीएम रहना चाहेंगे

नीतीश कुमार जब तक संभव हो, बिहार के सीएम बने रहना चाहेंगे। केंद्रीय मंत्री या राज्यपाल पद आजकल उतना पावरफुल नहीं रहा है। इस वक्त केंद्रीय कृषि मंत्री कौन हैं, ये कम लोग जानते होंगे। इसकी वजह ये है कि इस पद की हैसियत कम है। ऐसे में नीतीश बिहार में सीएम बनकर राज करना ज्यादा पसंद करेंगे।

अगला विधानसभा नीतीश के साथ लड़ना क्या बीजेपी की मजबूरी ?

2025 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ना बीजेपी के लिए मजबूरी होगा। अगर बीजेपी JDU के साथ चुनाव नहीं लड़ी तो नीतीश कुमार दोबारा से राजद के साथ जा सकते हैं। बीजेपी को यह खुटका रहेगा। इसलिए नीतीश जब भी चाहेंगे, उनके लिए दोनों ओर दरवाजा खुला रहेगा।

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