याज्ञवलक्य मिश्रा, RAIPUR. मध्यप्रदेश में तो बीजेपी सरकार आदिवासियों को रिझाने में जुटी है लेकिन छत्तीसगढ़ में आदिवासी वर्ग की नाराजगी चरम पर है। आदिवासियों के गुस्से को एक्सप्रेस करने का स्टेज बना है भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट। यहां सर्व आदिवासी समाज करीब 100 उम्मीदवार खड़े करने की तैयारी में है। भानुप्रतापपुर में उपचुनाव है और आदिवासी समाज से जुड़े करीब 70 नामांकन फॉर्म लिए जा चुके हैं। कवायद है कि चुनाव में जीत मिले या न मिले। मगर चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित जरूर किया जाए। इसके साथ ही बीजेपी-कांग्रेस के सियासी समीकरणों को भी बिगाड़ दिया जाए।
32 फीसदी आरक्षण बहाल करने की मांग
आदिवासी समुदाय छत्तीसगढ़ में अब एक नए अंदाज में और नई ताकत के साथ एकजुट हो रहा है। इस एकजुटता में बीजेपी और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों को खारिज करते हुए आदिवासी समाज नए प्रयोग की तरफ बढ़ रहा है। वैसे भी 32 फीसदी आरक्षण बहाल करने की मांग लेकर सर्व आदिवासी समाज रायपुर की सड़कों पर उतर ही चुका है। सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष बीएस रावटे ने कहा कि वो जिला स्तर से लेकर बड़े स्तरों पर मीटिंग कर चुके हैं और तय किया है कि इस बार उपचुनाव में 100 से ज्यादा उम्मीदवार उतारेंगे।
आरक्षण के मुद्दे से मुखर हुआ आदिवासियों का गुस्सा
सर्व आदिवासी समाज ने करीब 70 नामांकन फॉर्म भी ले लिए हैं। आदिवासियों का ये गुस्सा आरक्षण के मुद्दे से मुखर हुआ है। आदिवासी समाज आरक्षण के मसले पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों को दोषी मान रहा है और इनकी ये भी रणनीति है कि इस चुनाव में इन दोनों दलों को सबक सिखाया जाए। अगर देखा जाए तो आदिवासी समाज का ये आक्रोश महज एक दिन का नहीं है बल्कि इनके गुस्से के केंद्र में मौजूदा कांग्रेस सरकार की कथनी और करनी में अंतर, पेसा एक्ट, आदिवासियों के हितों की अनदेखी, जंगल को नुकसान जैसे कई मसले शामिल हैं।
गुस्से का मुख्य कारण कांग्रेस की भूपेश सरकार का दोहरा रवैया
सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश सचिव विनोद नागवंशी ने द सूत्र से बातचीत में कहा कि हमारे गुस्से का मुख्य कारण कांग्रेस की भूपेश सरकार का दोहरा रवैया है। उनकी कथनी और करनी में भारी अंतर है। उन्होंने आदिवासियों के लिए किए वादों पर पूरी तरह अमल नहीं किया। बहरहाल, आदिवासियों के गुस्से का एक अलग रूप भानुप्रतापपुर विधानसभा के उपचुनाव को लेकर चल रही तैयारियों में साफ दिख रहा है। अभी नामांकन दाखिल हो रहे हैं और 21 नवंबर नाम वापसी की आखिरी तारीख है। इस सीट पर चुनाव 8 दिसंबर को होना है। लिहाजा, ये कहना गलत नहीं होगा कि अभी कई सियासी समीकरण बनेंगे जिसे लेकर आदिवासी समाज भी पुरजोर तरीके से तैयारियों में जुट गया है।