Bhopal. राजस्थान के उदयपुर में शुरू हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में पार्टी को मुश्किल दौर से बाहर निकालने के लिए बड़ा फैसला हो सकता है। 2014 के चुनावी हार के बाद पार्टी पुनरुद्धार योजना के तहत एक परिवार, एक टिकट नियम शुरू कर सकती है। इस नियम पर हाल ही में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में भी चर्चा हो चुकी है। चिंतन शिविर में भी कांग्रेस नेताओं में इस नियम पर सहमति बनने की खबरें आ रही हैं। हालांकि, इस नियम से गांधी परिवार को बाहर रखा जा सकता है। ये नियम बना तो प्रदेश के तीन बड़े परिवार संकट में आ जाएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव पर इस नियम का सीधा असर पड़ेगा।
3 परिवारों पर ये पड़ेगा असर
- पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ वर्तमान में विधायक हैं और उनके पुत्र नकुलनाथ छिंदवाड़ा से सांसद हैं। कमलनाथ 2023 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में पार्टी का चेहरा हैं। यानी कांग्रेस विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करती है तो कमलनाथ दोबारा सीएम बनेंगे, इसके लिए उन्हें विधायक बनना पड़ेगा। लेकिन इस नियम के लागू होने के बाद यदि कमलनाथ मुख्यमंत्री बनेंगे तो छिंदवाड़ा से बेटे नकुलनाथ को इस्तीफा देना पड़ेगा। या फिर नकुलनाथ के राजनीतिक भविष्य को देखते हुए कमलनाथ अपने कदम पीछे खींच सकते हैं।
उम्र का मुद्दा भी अहम
चिंतन शिविर में पार्टी ने अंदरूनी आमूलचूल बदलाव के लिए उम्र का मुद्दा भी चर्चा में है। चिंतन शिविर में अधिकतम आयु सीमा का निर्धारण भी हो सकता है। माना जा रहा है कि इस चिंतन शिविर में पार्टी में कम से कम आधे पद 50 साल से नीचे की उम्र वाले नेताओं के लिए आरक्षित रखने पर विचार किया जाएगा। यदि ये फॉर्मूला भी लागू हुआ तो कांग्रेस के अधिकांश वरिष्ठ विधायकों पर भी कैंची चल जाएगी।
ग्वालियर-चंबल: गोविंद सिंह, लाखन सिंह की बढ़ेगी चिंता
यदि ग्वालियर-चंबल अंचल की बात करें तो पार्टी में एक परिवार-एक टिकट का फार्मूला नेता प्रतिपक्ष डा.गोविंद सिंह और विधायक एवं पूर्व मंत्री लाखन सिंह यादव के लिए भारी साबित हो सकता है। कांग्रेस में एक परिवार, एक टिकट फार्मूला लागू होने से ग्वालियर-चंबल अंचल में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और पूर्व मंत्री और 4 बार के विधायक लाखन सिंह के परिवार की राजनीति प्रभावित हो सकती है। चंबल इलाके से लगातार 7 बार विधानसभा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बना चुके डॉ. सिंह का पहले फॉर्मूला साफ था कि परिवार से एक ही व्यक्ति नेता होगा। लेकिन जब वे सहकारिता मंत्री बने तो उन्होंने अपने भाई रामेंद्र सिंह को सहकारिता की सियासत में उतारा, पर वे कोई खास पहचान और रसूख नहीं बना पाए।
इसके बाद उनके भतीजे अनिरुद्ध प्रताप सिंह युवक कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में उतरे तो पिछली बार विधानसभा टिकट के लिए भी उनका नाम उछला, लेकिन अंत में डॉ. सिंह खुद ही मैदान में उतरे। 2018 में डॉ. सिंह ने कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव है तो लोगों मे चर्चा चली कि अगला चुनाव अनिरुद्ध ही लड़ेंगे। लेकिन बीते कुछ सालों में डॉ. सिंह के बेटे डॉ. अमित प्रताप सिंह भी सक्रिय हुए हैं। हालांकि अभी वे पार्टी में सीधे तौर पर सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वे इफको के राष्ट्रीय संचालक बन गए है। चर्चा थी कि डॉ. सिंह इस बार लहार की पड़ोसी सीट सेंवढ़ा से भी किसी परिजन को उतार सकते हैं। लेकिन अब नए फॉर्मूले से यह उम्मीद अधूरी ही रह सकती है।
ग्वालियर अंचल से ऐसा ही मामला पूर्व मंत्री और चार बार के विधायक लाखन सिंह यादव का है। ग्वालियर जिले की भितरवार सीट से विधायक लाखन सिंह के भतीजे संजय सिंह यादव युवक कांग्रेस में खासे सक्रिय है और प्रांतीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के पदाधिकारी रहे हैं। वे मुरैना जिले की जौरा सीट पर लंबे अरसे से निगाह गड़ाए हैं और वहां लगातार संभावित प्रत्याशी की तरह दौरे करते आ रहे हैं। पिछले विधानसभा उप चुनाव में भी उन्होंने टिकट के लिए जोर लगाया था, लेकिन कमलनाथ ने अपने किसी समर्थक को दे दिया जो बुरी तरह हार गया। अब संजय की दावेदारी पुख्ता मानी जा रही थी, लेकिन उदयपुर के चिंतन शिविर के निर्णय से इनकी चिंताएं भी बढ़ जाएंगी।
विंध्य: अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी घराने पर पड़ेगा असर
पार्टी में टिकट के नए मापदंड से विंध्य के दो बड़े नेताओं के घराने की चिंता बढ़ सकती है। विंध्य से कांग्रेस के सबसे पुराने घरानों में अर्जुन सिंह परिवार पहले नंबर पर आता है। इसके बाद श्रीनिवास तिवारी। अर्जुन सिंह 1957 में निर्दलीय जीतने के बाद मृत्युपर्यंत कांग्रेस में रहे। बीच में 1994 में उन्होंने तिवारी कांग्रेस बनाई। फिर सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के साथ पुनः मूलधारा में आ गए। वे मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री समेत राजीव गांधी के समय कांग्रेस से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। उनकी विरासत पुत्र अजय सिंह राहुल संभाल रहे हैं। वे प्रदेश के बड़े नेताओं में शुमार हैं। मंत्री और नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह पिछले तीन चुनावों में लगातार विफल रहे हैं। वे सतना लोकसभा, चुरहट विधानसभा और सीधी लोकसभा का चुनाव हारे, फिर भी वे कांग्रेस की मुख्यधारा के बड़े नेता हैं। जाहिर है कि वे अगला विधानसभा चुनाव लड़ना चाहेंगे। उनके अलावा 2010 में सीधी से कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी इंद्रजीत कुमार के खिलाफ लड़ चुकीं अर्जुन सिंह की बेटी वीणा सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। वे अजय सिंह की बहन हैं, पर रिश्तों का आंकड़ा 36 है। वीणा सिंह और उनके पति वीपी सिंह राजा बाबा से कमलनाथ की सहानुभूति भी जगजाहिर है।
विंध्य का दूसरा राजनीतिक घराना श्रीनिवास तिवारी का है। 1970 में सोशलिस्ट पार्टी से कांग्रेस में शामिल होने वाले श्रीनिवास तिवारी जीवनपर्यन्त अर्जुन सिंह के विपरीत ध्रुव बने रहे। 7 बार विधायक रह चुके तिवारी की हमेशा समानांतर राजनीति चलती थी, अर्जुन सिंह उन पर अमहिया (तिवारी का घर) कांग्रेस कहकर तंज कसते थे। श्रीनिवास तिवारी के परिवार से उनके पुत्र सुंदरलाल, पोता विवेक तिवारी व सिद्धार्थ तिवारी, पोते की बहू अरुणा को कांग्रेस की टिकट मिलती रही हैं। 2013 में तिवारी घराने को आखिरी बार जीत मिली। सांसद रह चुके सुंदरलाल तिवारी गुढ़ से विधानसभा चुनाव जीते थे। उनके बेटे को 2019 में लोकसभा टिकट मिली, पर हार हाथ लगी। फिलहाल इस परिवार के तीन सदस्य टिकट के दावेदार हैं।
मालवा-निमाड़: यादव, भूरिया समेत कई घरानों पर संकट
मालवा-निमाड़ में भी कुछ ऐसे परिवार हैं, जो कांग्रेस के चिंतन शिविर में बने नए मापदंड से चिंतित हो सकते हैं। कहीं पिता-पुत्र, भाई-भाई से लेकर पिता-बेटी, भतीजा तक अगली बार चुनाव में टिकट की मंशा पाले बैठे हैं। झाबुआ में विधायक कांतिलाल भूरिया बरसों तक सांसद रहे हैं। सांसद का पिछला चुनाव हारने के बाद वे उपचुनाव में विधायक बने। अभी उनकी मंशा अपने पुराने पद (सांसद) पर जाकर बेटे विक्रांत भूरिया को विधायक का टिकट दिलवाने की है। विक्रांत पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं।
निमाड़ में अरुण और सचिन यादव दोनों दावेदार
निमाड़ अंचल के बड़े नेता अरुण यादव खंडवा से सांसदी का सपना पाले बैठे हैं। हाल के उपचुनाव में उन्होंने खंडवा से टिकट के लिए ताकत लगाई थी। वे वहां टिकट मिलने से पहले ही सक्रिय भी हो गए थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। उन्होंने सपना अभी भी छोड़ा नहीं है। लेकिन इस सपने के बीच में कांग्रेस का मापदंड आड़े आ सकता है, क्योंकि उनके भाई सचिन यादव अपने पिता की पुश्तैनी सीट कसरावद से विधायक हैं और कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं और आगे भी टिकट की दावेदारी करेंगे ही। ऐसे में या तो अरुण या सचिन। बशर्ते मापदंड को शिथिल नहीं किया जाए।
उज्जैन में प्रेमचंद गुड्डू और वशिष्ठ परिवार के परिजन दौड़ में
कुछ ऐसी ही स्थिति उज्जैन में है। यहां से सांसद रहे प्रेमचंद गुड्डू सांवेर उपचुनाव भारी वोटों से हार चुके हैं, लेकिन उनकी उज्जैन की सांसदी की दावेदारी सदा रहती है। वैसे भी उज्जैन में कांग्रेस के पास बीजेपी के सत्यनारायण जटिया युग से ही सांसदी के दावेदारों का टोटा रहा है। गुड्डू ने ही उस युग को खत्म कर सांसदी हथियाई थी, इसलिए हर चुनाव में वे स्वाभाविक दावेदार बनकर उभरते हैं।
परेशानी यह है कि गुड्डू अपनी बेटी रीना बोरासी को सांवेर से मैदान में उतारना चाहते हैं। सांवेर में उनकी तैयारियों से इसके संकेत मिल भी रहे हैं, ऐसे में पिता-पुत्री में से कोई एक दावेदार कांग्रेस के नए मापदंड के चलते खाली हाथ रहेगा। उज्जैन में ही महावीर प्रसाद वशिष्ठ का परिवार है। वे खुद चुनाव लड़ चुके हैं। बाद में उनके बेटे राजेंद्र वशिष्ठ चुनाव लड़ते रहे हैं। इस बार राजेंद्र वशिष्ठ के अलावा भाई और भतीजे भी टिकट की दावेदारी में हैं। देखना होगा, दिग्विजय सिंह से जुड़ा यह परिवार अपनी मंशा में कामयाब होता है या नहीं।
बड़नगर से सिसोदिया परिवार के परिजन दावेदार
उज्जैन जिले की बड़नगर तहसील में सवाई सिंह सिसोदिया का प्रतिष्ठित परिवार होता है। कभी इंदिरा गांधी के करीबी रहे इस परिवार को कांग्रेस ने कई टिकट दिए। सवाई सिंह के बेटे सुरेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह दोनों विधायक रह चुके हैं और दोनों दावेदार हैं। अभी के बड़नगर के कांग्रेस विधायक मुरली मोरवाल के बेटे के रेप केस में फंसने के कारण परेशानी में हैं।
(अरुण तिवारी के साथ ग्वालियर से देव श्रीमाली, इंदौर से ललित उपमन्यु की रिपोर्ट)