BJP में क्राइसिस, भोपाल-इंदौर में क्राइटेरिया, ग्वालियर में अपने-पराए का पेंच

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Praveen Sharma
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BJP में क्राइसिस, भोपाल-इंदौर में क्राइटेरिया, ग्वालियर में अपने-पराए का पेंच

Bhopal. नामांकन प्र​क्रिया शुरू हुए तीन दिन हो गए हैं। 16 में से 15 शहरों के महापौर पद के लिए कांग्रेस के प्रत्याशी मुहुर्त देखकर अपना परर्चा भरने की तैयारी में जुट गए हैं। बीजेपी की उलझन है कि कम ही नहीं हो पा रही है। ब्लॉक से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के नेताओं के साथ मंथन होने के बाद भी प्रदेश संगठन एक भी सीट पर कोई एक नाम तय नहीं कर पा रहा है। कहीं गुट आड़े आ रहा है तो कहीं नेताओं ने पेंच लगा दिया है। भोपाल में विधायकों की गुटबंदी संगठन को फैसला करने से रोक रही है तो ग्वालियर में सिंधिया-तोमर की पसंद एक नहीं हो पा रही है। इंदौर में सर्वे रिपोर्ट पार्टी के क्राइटेरिया को काट रही है, इससे विनिंग फेस की अनदेखी के आरोप मुखर हो गए हैं। खींचतान के बीच सबके अलग-अलग चल रहे समीकरण अब दिल्ली तक पहुंच गए हैं और अब सारी निगाहें हाईकमान पर टिक गई हैं। 



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अमूमन यह सारे नजारे हर छोटे-बड़े हर चुनाव के दौरान कांग्रेस में बनते थे। मगर इस बार नगरीय निकाय चुनावों में तस्वीर बिल्कुल उलट है। कांग्रेस 16 में से 15 शहरों के महापौर प्रत्याशी चुन चुकी है, पार्षदों प्रत्याशियों की सूची भी आम सहमति के साथ लगभग तैयार है, अंतिम बैठक के बाद यह फाइनल हो जाएगी। दूसरी ओर बीजेपी में सब कुछ अधर में ही बना हुआ है। पार्टी न अपने क्राइटेरिया को लागू कर पा रही है और न मैदान से आई रिपोर्ट पर ही अमल की हालत में है। परिवार के साथ ही विधायकों को टिकट न देने का क्राइटेरिया को लेकर विवाद की स्थिति बन गई है। बीजेपी जो आरोप बुराई के रूप में कांग्रेस पर लगाती रही है, अब उसमें खुद ही फंस गई है। पार्टी के कोर ग्रुप के अलावा राष्ट्रीय नेताओं शिवप्रकाश, मुरलीधर राव, पंकजा मुंडे की मौजूदगी के बाद भी कोई निर्णय नहीं हो पा रहा है। हर स्तर पर चर्चा के बाद मामला अब दिल्ली भेज दिया गया है। मुद्दे के दिल्ली पहुंचते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी दिल्ली रवाना हो गए हैं। वहीं प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा भी लगातार राष्ट्रीय नेतृत्व से चर्चा कर रहे हैं। दूसरी तरफ दावेदार भी अपने संपर्कों के आधार पर मैदान छोड़ने को तैयार नहीं है। 



भोपाल : दिल्ली के फैसले का इंतजार



राजधानी के महापौर का पद ओबीसी महिला के खाते में जाते ही सबसे बड़े चेहरे के रूप में ​पूर्व महापौर व कृष्णा गौर का आया था। मगर पार्टी ने क्राइटेरिया दिखाते हुए उनका नाम दबा दिया। फिर राजधानी के दो और विधायकों रामेश्वर शर्मा व चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग की सहमति से पूर्व पार्षद मालती राय का नाम उभरा। तगड़ी घेराबंदी भी हो गई, जिसे संगठन ने पार्षद चुनाव में दो बार मिली हार को आधार बनाकर ठुकराने की कोशिश की। इसी बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पूर्व प्रांत मंत्री भारती कंभारे का नाम सामने आया। इसे संघ और संगठन की पसंद बताते हुए हवा दी गई। मगर इस नाम को कोई आधार नहीं मिल सका। बीस साल पहले कांग्रेस प्रत्याशी विभा पटेल से हार चुकीं राजो मालवीय की दावेदारी भी खींचतान में कमजोर पड़ गई। अब दिल्ली से ही नाम फाइनल होगा।



इंदौर में मेंदोला सबसे बड़ा चेहरा 



इंदौर में मेयर का उम्मीदवार चुनने में भाजपा पसीना-पसीना हो रही है। पार्टी की मुश्किल यह है कि कांग्रेस ने साल भर पहले ही अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था, जबकि भाजपा में आज तक मंथन ही चल रहा है। दरअसल पार्टी अपने ही बुने जाल में फंस गई है। अति आत्मविश्वास कहें या भविष्य की तैयारी, टिकट के लिए पार्टी ने जो मापदंड तय किए हैं वे उसी पर भारी पड़ रहे हैं। विधायकों और परिजनों को टिकट नहीं देने के मापदंड में इंदौर भी उलझा हुआ है। पार्टी के आंतरिक सर्वे में रमेश मेंदोला को जीतने वाला उम्मीदवार बताया है, पर वे विधायक हैं। अब पार्टी या तो अपने मापदंड शिथिल करे या सर्वे से आंख मूंदकर नए उम्मीदवार को लाने की जोखिम उठाए। इंदौर से मालवा निमाड़ का भी राजनीतिक मौसम बनता है, इसलिए यहां अतिरिक्त जोखिम से होने वाली लाभ-हानि पर भी पार्टी की नजर है। 



मेंदोला नहीं तो कौन?



रमेश मेंदोला रविवार को भोपाल में रहे। कुछ बड़े नेताओं ने उन्हें बुलाया, कुछ से वे खुद मिले। दिनभर उनके टिकट हो जाने की हवा चलती रही, लेकिन रात होते-होते कई नीतियां, मापदंड और राजनीति की दूसरी हवाएं भी चलने लगीं और उनकी टिकट की बात हवा ही रह गई। मेंदोला देर रात इंदौर लौट आए। फैसला दिल्ली में होगा। पार्टी की मुश्किल यह है कि उसके पास मेंदोला के स्तर का कोई और नाम नहीं है। डॉ. निशांत खरे, उमेश शर्मा, पुष्यमित्र भार्गव के नाम चल रहे हैं। भार्गव प्रदेशाध्यक्ष शर्मा की पसंद हैं तो उमेश शर्मा पार्टी में सक्रिय हैं। इंदौर में बीस साल से बीजेपी का ही मेयर बन रहा है, पार्टी नहीं चाहती कि यह सिलसिला टूटे। 



ग्वालियर में सिंधिया बनाम बीजेपी में फंसा पेंच



ग्वालियर में सामान्य तौर पर ग्वालियर नगर निगम के मेयर उम्मीदवार का फैसला सबसे पहले होता था और इसके सभी निर्णय ग्वालियर में ही हो जाते थे, लेकिन इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया के फैक्टर के शामिल हो जाने से बीजेपी कोई निर्णय नही कर पा रही। दरसल भाजपा ग्वालियर में खालिस अपने कैडर का मेयर उम्मीदवार चाहती है, क्योंकि जनसंघ के जमाने से उनका ही मेयर बन रहा है। उनके उम्मीदवार 1980 से तो सिंधिया समर्थक प्रत्याशी को ही धूल चटाते रहे हैं। सिंधिया का अब बीजेपी में भी कांग्रेस जैसा एकाधिकार है। वे मेयर का टिकिट शुद्ध अपने समर्थक को दिलाना चाहते है, ताकि अपने एकाधिकार का संदेश दे सकें। इसे ही भांपते हुए बीजेपी के तमाम दिग्गज नेता आपसी मतभेद भुलाकर सिंधिया के प्रयास को असफल करने के लिए एकजुट हैं।



भोपाल में हुईं बैठकों में यही हुआ। जयभान सिंह पवैया लखनऊ जाने की बात कहक़र बैठक शुरू होते ही वहां से चले गए। बैठक मे सिंधिया ने जैसे ही एंट्री ली, तो केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर बैठक छोड़कर निकल गए। सबके कारण अलग बताए गए, लेकिन बॉडी लैंग्वेज और टाइमिंग बताती है कि अंदरखाने में सब कुछ ठीक नही चल रहा। इसके बाद सिंधिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने उनके बंगले पहुंच गए। वहीं बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने तोमर,पवैया और सांसद विवेक नारायण शेजवलकर से फोन पर चर्चा कीं, सबने अपना स्टैंड साफ कर दिया कि वे भाजपा नेताओं की पसंद का मेयर ही चाहते है। इसमें सबसे प्रबल नाम सुमन शर्मा का है। इनके अलावा डॉ वीरा लोहिया का नाम भी है। सुमन पूर्व मेयर और पूर्व विधायक डॉ धर्मवीर की बहू हैं और बीजेपी व महिला मोर्चा में कई पदों पर रह चुकी है। सुमन के अलावा सिंधिया समर्थक मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर के भाई देवेंद्र सिंह तोमर, मधुलिका क्षीरसागर को लेकर भी समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं। 



बीजेपी नहीं ढूंढ पा रही समरस मेयर



मुख्यम़ंत्री चौहान की अपील पर प्रदेशभर में समरस पंचायतों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन नगरीय निकाय चुनावों के मामले में यह समरसता बीजेपी के नेताओं में ही नजर नहीं आ रही। खासकर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में पार्टी के दिग्गज ना तो  समरस हो पा रहे हैं और ना समरस मेयर चुन पा रहे हैं। प्रत्याशी चयन के लिए दिल्ली द्वारा बनाए गए नियम ही प्रदेश में बीजेपी लागू नहीं कर पा रही, जिससे विवाद लगातार गहराता जा रहा है। ऐसे में गुटबाजी के चलते चुनावों में भितरघात की आशंका भी बलवती होते जा रही है।



ये हैं एमपी की 16 नगर निगम



भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन, सागर, सतना, रीवा, मुरैना, बुरहानपुर, खंडवा, देवास, रतलाम, छिंदवाड़ा, कटनी, सिंगरौली।



(इनपुट: इंदौर से ललित उपमन्यु, ग्वालियर से देव श्रीमाली)


BJP बीजेपी ग्वालियर गुटबाजी factionalism Mayor Candidate महापौर प्रत्याशी Criteria क्राइटेरिया विधायक व परिवारवाद सिंधिया फैक्टर बैठक में नाराजगी दिल्ली करेगी फैसला MLA and family Scindia factor displeasure in the meeting Delhi will decide