मध्यप्रदेश: डबल इंजन सरकार के चक्कर में, डबल आफत झेलने पर मजबूर सीएम शिवराज

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Shivasheesh Tiwari
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मध्यप्रदेश: डबल इंजन सरकार के चक्कर में, डबल आफत झेलने पर मजबूर सीएम शिवराज

Bhopal. उत्तरप्रदेश चुनाव के दौरान बीजेपी ने डबल इंजन सरकार का मोह खूब दिखाया। यानी एक सरकार प्रदेश में एक सरकार देश में। मध्यप्रदेश के चुनाव बहुत दूर नहीं है। ये जुमला अब एमपी में भी कारगर हो सकता है। पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का तो कोई तोड़ कांग्रेस को फिलहाल मिला नहीं है। शिवराज सिंह चौहान भी प्रदेश में फिलहाल दमदार हैं। लेकिन प्रदेश बीजेपी की मुश्किल बाहरी नहीं है। बल्कि उसके अंदर ही है। पांच राज्यों में हुए चुनाव के बाद नतीजे आए और फिर सरकार की सालगिरह पर पीएम मोदी ने जो नया मंत्र दिया है, वो चुनाव से पहले बीजेपी के लिए बखेड़ा खड़ा कर सकता है। इन नए मंत्र के साथ एक पुराना फॉर्मूला भी बखेड़े की आग में घी का काम कर सकता है। बस समझ लीजिए बीजेपी अभी उस दोराहे पर है, जहां आगे कुआं है और पीछे खाई। इस बार बीजेपी के गिरने से फायदा उठाने की ताक में सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी भी है।



अगले साल चुनाव, मोदी के मंत्र से खलबली



अगले साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने कमर कस कर तैयारियां शुरू कर दी हैं। आम आदमी को चुनाव में वक्त नजर आता है। लेकिन टिकिट के लिए जोड़, तोड़, भाग दौड़ शुरू होने का वक्त भी शुरू हो ही चुका है। इसे बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक मंत्र ने और एक पुराने फॉर्मूले ने बीजेपी नेताओं में खलबली मचा दी है। पुराना फॉर्मूला तो सभी को साफ है कि सत्तर या सत्तर की उम्र पार कर चुके नेताओं को टिकट नहीं दिया जाएगा। इस फॉर्मूले को समझते हुए कई बीजेपी नेताओं ने अपने बेटे या बेटियों को सियासी विरासत सौंपने की तैयारी कर ली थी। किसी की औपचारिक या अनौपचारिक लॉन्चिंग भी हो ही चुकी है। इस बीच पीएम मोदी ने वंशवाद के खिलाफ जोरशोर से मोर्चा खोल दिया।



पिछले दिनों हुई भाजपा संसदीय दल की मीटिंग में मोदी ने सांसदों से कहा कि अगर विधानसभा चुनाव में आपके बच्चों के टिकट कटे हैं, तो उसकी वजह मैं हूं। मेरा मानना है कि वंशवाद लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। PM ने कहा कि परिवारवाद से जातिवाद को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने कहा कि पार्टी में पारिवारिक राजनीति की इजाजत नहीं दी जाएगी। दूसरी पार्टियों की वंशवाद की राजनीति के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाएगी। इसके बाद भी पीएम मोदी वंशवाद के खिलाफ अपनी यही बात दोहराते रहे हैं। जो एमपी के कई राजनेताओं के लिए दोहरा संकट बन गई है।



प्रदेश में नेता और नेतापुत्रों का भविष्य



जिन नेताओं को अपने नाम का टिकट कटने की आशंका थी वो पहले ही अपने बच्चों को राजनीति के अखाड़े में कुदा चुके हैं। बीजेपी में रहते हुए जिनके बेटों को पहले टिकट और फिर जीत मिल गई, वो नेता अब तकरीबन प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर पहुंच चुके है। कैलाश विजयवर्गीय इसका एक बड़ा उदाहरण है। जिनके बेटे आकाश विजयवर्गीय ने इंदौर की कमान संभाली तो पापा को दूसरे प्रदेशों के रास्ते नापने पड़े। अब सत्तर पार के नेताओं को टिकिट नहीं मिला तो उनका राजनीति रसूख तो धरा का धरा रह जाएगा। और बेटे या बेटी भी टिकिट मिलने से रह गए तो समझिए की पूरी राजनीतिक विरासत ही चौपट हो जाएगी।



शिवराज कैबिनेट के दो वरिष्ठ नेता, खुद विधानसभा अध्यक्ष और तकरीबन 13 विधायक सत्तर पार के फॉर्मूले की चपेट में हैं। जिनकी लंबी चौड़ी राजनीतिक पारी उनकी तजुर्बेकार उम्र की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम, वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव और बिसाहू लाल सिंह इसमें प्रमुख नाम हैं। इसमें गोपाल भार्गव तो अपनी दूसरी पीढ़ी को तैयार कर चुके हैं। उनके बेटे अभिषेक भार्गव राजनीति की चाश्नी में पूरी तरह पग चुके हैं। और अब टिकिट की आस भी लगाए बैठे हैं। इसके अलावा बीजेपी में सियासी सन्स की लंबी फेहरिस्त है। जो इस चुनाव या अगले चुनाव तक टिकिट की दावेदारी पेश कर सकते हैं। इसमें से एक तो खुद शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महार्यमन सिंधिया भी राजनीति के मैदान में हाजिरी लगाने लगे हैं। हालांकि अभी इन दोनों के पिताओं की लंबी राजनीतिक पारी बची है। कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय तो सीट संभाल चुके हैं। गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार राजनीतिक पारी की  असफल शुरूआत कर चुके  हैं। 



इनके अलावा अब नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा, प्रभात झा के बेटे तुष्मुल झा, गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम बिसेन भी टिकट की कतार में हैं। तुलसीराम सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत के बेटों को तो फिलहाल इस जगह तक पहुंचने  में वक्त है।



सत्तर पार के टिकट पर वार



वंशवाद पर विवाद के बाद बीजेपी के उम्ररदराज नेताओं को परेशान तो होना ही था। अंदर ही अंदर खलबली भी मची है। एक अरसे तक राजनीति कर चुके ये नेता इतनी आसानी से अपनी सत्ता को जाने तो नहीं देंगे। फिर करेंगे क्या। इस सवाल का जवाब दूसरी किसी पार्टी में मिल सकता है। हो सकता है  कुछ नेता या उनके बेटे कांग्रेस का रूख करें। लेकिन कांग्रेस का जो हाल उसे देखते हुए ये विकल्प फायदे से ज्यादा नुकसान का सौदा हो सकता है। अगले  चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में तीसरा विकल्प भी खुलता हुआ नजर आ रहा है। ये तीसरा रास्ता आम आदमी पार्टी तक जाता है। दिल्ली के बाद पंजाब में मिली जीत के बाद आम आदमी पार्टी दूसरे राज्यों में पैर पसारने की पूरी कोशिश में हैं। मध्यप्रदेश के नेताओं में जो अफरा तफरी मची है हो सकता है उसके चलते आप की झाड़ू अपने सूपे में कुछ नेताओं को समेटने में कामयाब हो जाए।



बीजेपी में खलबली होगी तो नेता छिटकेंगे। टिकट कटे या सियासी विरासत पर पूर्ण विराम लगता नजर आएगा तो कई नेता दूसरी पार्टी का रूख करने से  चूकेंगे नहीं। दूसरे राजनीतिक दल भी ऐसे ही मौके की फिराक में हैं। जब बीजेपी के कद्दावर नेता या उनके परिवार के सदस्य नया ठिकाना ढूंढेंगे। कांग्रेस के अलावा आप भी इस इंतजार में शामिल होगी। इन दिनों जो राजनीतिक हालात हैं उन्हें देखते हुए लगता है कि कांग्रेस से ज्यादा आप बीजेपी की इस खलबली का फायदा उठा सकती है। ये चुनौती सिर्फ उन नेताओं के लिए नहीं है जो मोदी मंत्र या जीत के फॉर्मूले की जद में भी आ रहे हैं। बल्कि मुश्किल बीजेपी की भी बढ़ेगी ही।



पार्टी विद ए डिफरेंस के  नारे वाली पार्टी में इन सख्तियों के चलते कहीं ये हालात न हो जाए कि वो पार्टी विद डिफरेंसेज बन कर रह जाए। इन डिफरेंट वादों और इरादों के चलते पार्टी को कहीं अपने ही नेताओं को गंवाना पड़ जाए। ये तय है कि पार्टी छोड़ कर जाने वाले नेताओं को दूसरी पार्टी में जगह और टिकिट दोनों मिल जाएगा। हो सकता है कि नई पार्टी के चेहरे और मोहरे पर वो चुनाव भी जीत जाएं। इसका नुकसान भुगतने की बात होगी तब वो सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को ही भुगतना होगा। बाकी तो कांग्रेस और खासतौर से आप तो अपना रेड कार्पेट लेकर तैयार ही हैं।


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