हरीश दिवेकर, BHOPAL. मध्यप्रदेश में शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार की सुगबुगाहटें तेज हैं। जाहिर है इस दौड़ में कई विधायक शामिल होते हैं। जोड़तोड़ का सिलसिला शुरू होता है। तकरीबन हर विधायक ये जोर लगाता है कि उसे सीएम कैबिनेट में जगह मिल जाए लेकिन जब यही विस्तार चुनावी साल में होता है तो विधायकों के लिए हर बार अच्छे दिनों का पैगाम लेकर नहीं आता। अक्सर मंत्री पद के चक्कर में विधायकी भी गंवानी पड़ जाती है।
हर सियासी गणित सुलझाने में जुटी बीजेपी
अगले साल नवंबर में एमपी के विधानसभा चुनाव होने हैं। पहले से ही चुनावी मोड में आ चुकी बीजेपी हर सियासी गणित की गुत्थी सुलझाने में लगी है। आदिवासी और पिछड़े वर्ग को रिझाने के साथ ही अंचलों का संतुलन बनाने पर भी जोर है जिसके तहत मंत्रिमंडल में भी बैलेंस बनाने पर मंथन जारी है। फिलहाल शिवराज कैबिनेट में चंबल अंचल का दबदबा है। विंध्य और महाकौशल की मौजूदगी न के बराबर है जिसके चलते नाराजगी बरकरार है। अब सीएम समेत पार्टी का हर चुनावी रणनीतिकार इस असंतुलन को ठीक करने की जुगत तलाश रहा है। ये मुमकिन भी है कि चुनाव से पहले कुछ और विधायकों को शिवराज कैबिनेट में जगह मिल जाए लेकिन जिन्हें जगह मिलेगी वो इस कामयाबी का कितना जश्न मना सकेंगे ये काबिलेगौर होगा। क्योंकि जिम्मेदारी तो बड़ी मिल जाएगी लेकिन उस पर खरा उतरने की चुनौती को पार करना आसान नहीं होगा। पिछले चुनावों का हाल भी यही बताता है कि जिन विधायकों को आखिरी वक्त पर कैबिनेट में शामिल होने का सौभाग्य मिला उन्हें कई अलग-अलग मोर्चों पर दुर्भाग्य का सामना भी करना पड़ा।
शिवराज कैबिनेट में 4 मंत्री पद खाली
शिवराज मंत्रिमंडल में फिलहाल चार मंत्रियों की और जगह खाली है। इस मंत्रिमंडल में सीएम सहित कैबिनेट में वर्तमान में 31 मंत्री हैं। जबकि प्रदेश में कुल मंत्रियों की संख्या 35 तक हो सकती है। ऐसे में चर्चा है कि जल्द ही कुछ और नए चेहरे शिवराज कैबिनेट में शामिल हो सकते हैं। 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में शिवराज सरकार के तीन मंत्री, इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया को हार का सामना करना पड़ा जिसके बाद तीनों को इस्तीफा देना पड़ा। उसके बाद से ही मंत्रियों के चार पद खाली हैं।
सरकार बनने के बाद से 3 बार मंत्रिमंडल विस्तार
मार्च 2020 में शिवराज सिंह चौहान की सरपरस्ती में एक बार फिर सरकार बनने के बाद से अब तक तीन बार मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ है। सरकार गठन के 100 दिन बाद सीएम ने कैबिनेट में पहली बार अपने 5 सहयोगी मंत्रियों को जोड़ा था, जिनमें नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल, तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत और मीना सिंह शामिल थीं। इसके बाद 2 जुलाई को 28 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई जिसके बाद मंत्रियों की संख्या 33 हो गई थी। वहीं उपचुनाव के जीतने के बाद तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को फिर से मंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी। इस तरह से अब तक तीन बार मंत्रिमंडल विस्तार हो चुका है।
मंत्रिमंडल का विस्तार होना तय
चुनावी साल में एक बार फिर मंत्रिमंडल विस्तार होना तय माना जा रहा है। कैबिनेट में अभी चार मंत्री पद खाली हैं। जिनके लिए दावेदारों की लाइन लंबी है। मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले दावेदारों में गौरीशंकर बिसेन, रामपाल सिंह, राजेंद्र शुक्ला, पारस जैन, सुरेंद्र पटवा, करण सिंह वर्मा, महेंद्र हार्डिया, सीतासरन शर्मा और सुलोचना रावत का नाम चर्चा में है। इन दावेदारों में से अधिकतर नेता पहले मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा बीजेपी कई चौंकाने वाले नाम भी ला सकती हैं क्योंकि बीजेपी में ऐसे विधायकों की भी लंबी फेहरिस्त है जो तीसरी या चौथी बार विधायक बने हैं जिसके चलते ये विधायक भी मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए दावेदारी करते हैं।
चुनावी साल में मंत्रिमंडल में शामिल होने पर बढ़ जाती है चुनौती
चुनावी साल में मंत्रिमंडल में शामिल हो कर दिल तो बहल जाता है लेकिन आगे की लड़ाई और मुश्किल हो जाती है। जबकि पार्टी को इससे कोई खास नुकसान नहीं होता बल्कि फायदा ही होता है। इस सियासी समीकरण को यूं समझिए कि चुनाव से ऐन पहले नए चेहरे को कैबिनेट में शामिल कर सरकार तो जनता के सामने पीठ थपथपा लेती है। ये कहकर उन्होंने उस क्षेत्र या अंचल को कभी अनदेखा नहीं किया। मुश्किल उस विधायक की होती है जो कैबिनेट का हिस्सा बनता है क्योंकि मंत्री बनते ही जनता की उम्मीदें बढ़ जाती हैं लेकिन उनके जनप्रतिनिधि के सामने कुछ कर दिखाने का वक्त ही नहीं बचता। बीते कुछ चुनावों के आंकड़े ये जाहिर करने के लिए काफी हैं कि ऐन मौके पर मंत्री बने अधिकांश विधायक या तो चुनाव हार गए हैं या फिर उन्हें टिकट ही नहीं मिला। मतलब एक हाथ में रेवड़ी आई तो दूसरे हाथ से खाने की थाली ही छिनने की नौबत आ सकती है।
मंत्री बनने के लिए भागदौड़ कर रहे विधायक पुराने आंकड़े देखें
जो विधायक सारे कामधाम ताक पर रख कर मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए भागदौड़ कर रहे हैं, उन्हें एक बार पुराने आंकड़े जरूर खंगालने चाहिए। ये आंकड़े साफ जाहिर करते हैं कि मंत्री बनने के बाद मिला सिर्फ एक साल का वक्त न जनता की उम्मीदों पर खरा उतने के लिए काफी होता है न परफोर्मेंस रिपोर्ट के जरिए पार्टी पदाधिकारियों को बहला पाता है। बात सिर्फ एक या दो बार की नहीं है। शिवराज मंत्रिमंडल के पिछले 3 कार्यकाल के आखिरी मंत्रिमंडल विस्तार का आंकलन करेंगे तो समझ जाएंगे कि ऐसे विधायकों के लिए ये विस्तार हर बार फायदेमंद नहीं होता है।
साल 2008 का कैबिनेट विस्तार
- पहले कार्यकाल के दौरान जून 2008 में शिवराज सिंह चौहान ने अंतिम मंत्रिमंडल विस्तार किया
सत्ता में वापसी के बाद फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही कैबिनेट गठन हुआ। जिसका आखिरी विस्तार चुनाव से कुछ माह पहले ही हुआ।
साल 2013 का कैबिनेट विस्तार
- दूसरे कार्यकाल में सीएम ने अंतिम मंत्रिमंडल विस्तार अगस्त 2013 में किया
अब बात करते हैं सीएम के पिछले कार्यकाल की। यानि साल 2018 की। इस चुनाव के बाद चंद मंत्री ही नहीं पूरी बीजेपी ही हारी थी। हालांकि सत्ता में फिर वापसी हुई। इस चुनाव से पहले हुए आखिरी विस्तार पर भी नजर डालिए।
साल 2018 का कैबिनेट विस्तार
- शिवराज की तीसरी पारी में अंतिम विस्तार फरवरी 2018 में हुआ
चुनाव जीतने के लिए मंत्री बनना काफी नहीं
चुनावी साल में या चुनावों से ठीक पहले जिन-जिन नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया उनमें से अधिकांश अगला विधानसभा चुनाव हार गए तो कुछ को पार्टी ने उम्मीदवार ही नहीं बनाया। जो नेता जीते, उनमें से केवल एक ही को ही अगली बार मंत्रिमंडल में जगह मिल सकी। चुनावी जानकारों का कहना है कि आंकड़े शाहिद हैं कि चुनाव जीतने के लिए मंत्री बनना काफी नहीं। जनता और पार्टी दोनों की कसौटी पर खरा उतरना जरूरी होता है। शायद इसलिए ऐनवक्त पर शुरू हुई कैबिनेट की दौड़ में कई विधायक किस्मत आजमाने नहीं आते।
कैबिनेट विस्तार और फेरबदल भी सरकार की मजबूरी
कैबिनेट में शामिल होना यकीनन बड़ी उपलब्धि है लेकिन आंकड़ों की गवाही को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कैबिनेट विस्तार और फेरबदल भी सरकार की मजबूरी है। सत्ता में वापसी के लिए जरूरी ये कवायद होना तय है। कामयाबी की खातिर कुछ चेहरों का नुकसान हो भी जाए तो पार्टी गुरेज नहीं करेगी। ये तो कैबिनेट विस्तार की दौड़ में शामिल उस विधायक को तय करना है कि मौका मिलने पर वो कैसे सरकार और मतदाता की उम्मीदों पर खरा उतरता है।