BHOPAL. ईडी ने सोनिया गांधी से पूछताछ की। राहुल गांधी EDके दफ्तर पहुंचे। शिवसेना सांसद संजय राउत और पत्नी पर ईडी का शिकंजा कसा। टीएमसी सांसद ईडी के निशाने पर। अगर आपको ऐसा लग रहा है कि मैं कुछ पुरानी खबरें दोहरा रहा हूं तो ऐसा कुछ भी नहीं हैं। मैं तो बस पिछले दिनों मीडिया में छाई रहीं ब्रेकिंग न्यूज के पंचेज बता रहा हूं। आप ने शायद गौर किया हो कि इन ब्रेकिंग न्यूज में सारे नाम उन नेताओं के हैं जिनका बीजेपी से कोई ताल्लुक नहीं है। शायद इसलिए ईडी पर सरकार के इशारे पर काम करने क इल्जाम लग रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे कभी सीबीआई पर लगते थे। आपको ताज्जुब होगा ये जानकर कि जिस ईडी को सीबीआई की जगह लेने वाली एजेंसी कहा जा रहा है। वो संस्था CBI से कहीं ज्यादा पावरफुल है।
गिरफ्तार करने के लिए ईसीआईआर की कॉपी देना जरूरी नहीं
ईडी का छापों की संख्या बढ़ी तो विपक्षी दल (Opposition Party) खासतौर से कांग्रेस नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट की शरण लेने की कोशिश की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का जवाब सुनकर कांग्रेस नेता जरूर सोच रहे होंगे कि ईडी के साथ प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (Prevention of Money Laundering Act) के प्रवधान नहीं जोड़ते तो शायद आज ये दिन नहीं देखना पड़ता। यही वो एक्ट है जिसने किसी जमाने से सुस्त संस्था मानी जाने वाली ईडी को इतना पावरफुल बना दिया। खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट को मिली संवैधानिक चुनौती के जवाब में कह दिया कि ईडी को किसी को गिरफ्तार करने के लिए ईसीआईआर की कॉपी देने की जरूरत नहीं। सिर्फ कारण बता देना ही काफी है। ईडी के मनी लॉन्ड्रिंग की जांच, छापेमारी, बयान दर्ज करने, गिरफ्तार करने और समन जारी करने अधिकारों को भी अदालत ने सही माना है।
ईडी का सफर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि अपराधियों में खौफ का दूसरा नाम बन चुकी सीबीआई भी अब ईडी के आगे कमतर ही है। जबकि सीबीआई ईडी के मुकाबले काफी पुरानी संस्था है। सीबीआई का गठन 1941 में हो गया था। सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (Central Bureau of Investigation) नाम 1963 को मिला। फॉरेन रेगुलेशन एक्ट के तहत ईडी का गठन 1956 में हुआ। पहले ये इन्फोर्समेंट यूनिट बना और फिर इसे इंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट का नाम मिल गया। शुरू में ईडी के पास सिर्फ विदेशों में चल रहे एक्सचेंज मार्केट में लेनदेन कर रहे लोगों की जांच करना ही था। बाद में इसे फेमा, पीएमएलए, एफईओए जैसे कानूनों की ताकत मिल गई और ईडी धीरे-धीरे पावरफुल होता चला गया।
एफआईआर के आधार पर जांच कर सकती है ईडी
सीबीआई को कोई भी एक्शन लेने से पहले केंद्र या हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट का मुंह देखना पड़ता है। राज्य सरकारों से परमिशन लेनी पड़ती है। जबकि ईडी हर उस जगह कार्रवाई कर सकती है, जहां उसे पुलिस थाने में एक करोड़ से ज्यादा की कमाई होने की शिकायत दर्ज होने की जानकारी मिलती है। एफआईआर की कॉपी के आधार पर ईडी जांच शुरू कर सकती है।
ईडी की ताकतों की तो ये बानगी भर है। अभी ईडी को समझना बाकी है। जिसे सुनकर आप जान जाएंगे कि विपक्षी दलों की छटपटाहट बेजा नहीं है। कहीं न कहीं ये डर जरूर होगा कि ईडी का शिकंजा कहीं भी किसी पर भी कस सकता है और जब तक जमानत तक पहुंच पाएंगे तब तक कुछ साल सलाखों के पीछे कट ही जाएंगे। इस ईडी को इतना ताकबर बनाने का काम कांग्रेस नेता पी चिदांबरम ने किया था। लेकिव अब वो और उनके बेटे कार्ती चिदांबरम ही ईडी से खौफ खाए बैठे हैं। इस डर की वजह सिर्फ ईडी को मिली कार्रवाई की आजादी ही नहीं है। जितना अब तक ईडी को समझे हैं उससे कहीं ज्यादा ताकतवर है ये संस्थान।
ईडी के अधिकार
ईडी की ताकतों को और गहराई से समझने के लिए एक बार फिर सीबीआई से ही तुलना करते हैं। चूंकि सीबीआई के बारे में आप काफी कुछ जानते ही होंगे। इसलिए ये कंपेरिजन आपके लिए थोड़ा आसान होगा। सबसे पहले काम की बात करते हैं। सीबीआई का काम है भ्रष्टाचार करने वालों से निपटना, आर्थिक अपराध करने वाले से निपटना, आतंकवाद या माफिया से निपटना। जबकि ईडी मनी लॉन्ड्रिंग, विदेशी मद्रा कानून का उल्लंघन रोकना और भगोड़े अपराधियों की संपत्ति जब्त करने का भी अधिकार रखता है।
गिरफ्तारी के मामले में भी ईडी को सिर्फ कारण बताना काफी है। सीबीआई बिना वॉरंट के किसी भी आरोपी, सरकारी अफसर या कर्मचारी को गिरफ्तार कर सकती है। ईडी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में किसी को भी गिऱफ्तार कर सकता है। साथ ही उसे संपत्ति जब्त करने का भी अधिकारी है।
सीबीआई के जांच अधिकारी के सामने दिया गया बयान कोर्ट में सबूत नहीं मान जाता। जबकि ईडी देश की एकमात्र ऐसी संस्था है जिसके जांच अधिकारी को दिया बयान अदालत में सबूत माना जाता है।
ईडी के केस मे जमानत मिलनी आसान नहीं होती
ईडी में चल रहे मामलों में जमानत मिलना भी आसान नहीं है। जमानत के लिए दो सख्त शर्तों का सामना करना पड़ता है। पहला तो जमानत याचिका के खिलाफ लोक अभियोजक के सामने ऐसे तथ्य पेश करना कि वो ये मान सकें कि आरोपी अपराध का दोषी नहीं है और दूसरी ये सुनिश्चित होना कि जमानत पर रहने के दौरान उसके द्वारा कोई अपराध करने की आशंका नहीं है। इसके बाद ही जमानत मिल सकती है।
57,000 करोड़ की प्रॉपर्टी अटैच की
ईडी को अब सुप्रीम से ताकतें मिल चुकी हैं। ये ताकतें कभी-कभी अंग्रेजों के जमाने के रौलेट एक्ट की याद दिलाती हैं। 1919 में सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली समिति ने रॉलेट एक्ट बनाया था। इस एक्ट में क्रांतिकारियों की आवाज दबाने के लिए भारतीयों के खिलाफ कड़े प्रावधान थे। मसलन ब्रिटिश सरकार को अधिकार था कि वो बिना मुकदमे के भी भारतीय को जेल में डाल सकती है। जिसे पकड़ा गया। उसको ये जानने का हक भी नहीं था कि उसके खिलाफ शिकायत किसने दर्ज करवाई। जिस पर मुकदमा कायम हो गया, वो किसी उच्च अदालत में अपील नहीं कर सकता था। राजद्रोह के मामले में जज बिना जूरी के सुनावई कर सकता था। सरकार को प्रेस की स्वतंत्रता छीनने का अधिकार तो था ही किसी को भी जेल में डालने का देश से निष्कासित करने का अधिकार भी था। उस वक्त अंग्रेज सरकार को जो भी विपक्षी लगा, उसे कुचलने के लिए रॉलेट एक्ट का इस्तेमाल किया जाता रहा। अब ईडी को भी उसी एक्ट की तर्ज पर ताकतवर बनाया जा चुका है। जिसे कांग्रेस हों या बीजेपी अपने-अपने समय में अपने-अपने हिसाब से उपयोग कर रहे हैं। ईडी को पीएमएलए के जरिए मिली ताकतों के चलते ही अब इसे ड्रेकोनियम एक्ट का नाम दिया जा रहा है। जिसे न सिर्फ बिना एफआईआर के कार्रवाई के अधिकार हैं बल्कि संपत्ति पर भी वो लगाम लगा सकता है।
अगर ईडी को लगता है कि कोई संपत्ति बेनामी है, तो वो उसे अटैच भी कर सकता है। किसी संपत्ति को अटैच करने का मतलब होता है कि उसे बेचा या स्थानांतरित किया जा सकता है। प्रवर्तन निदेशालय ने अब तक करीब 57,000 करोड़ रुपए की संपत्ति को अटैच किया है।
ईडी की कार्रवाई से हंगामा बरपा
दिल्ली, महाराष्ट्र, झारखंड, पश्चिम बंगाल तक में ऐसे कई नेता हैं जिन पर ईडी का शिकंजा कसा हुआ है। इनके बाद कब किसका नंबर आ जाए ये भी कहना मुश्किल है। सोनिया गांध, राहुल गांधी, संजय राउत और उनकी पत्नी ईडी की फेहरिस्त के नए नाम है। जिनके बाद से हंगामा बरपा हुआ है। वैसे ईडी ने जितने भी लोगों पर हाथ डाला है, वो सब अपराधी साबित हो ही चुके हों ऐसा नहीं है। लेकिन कानून इतना सख्त है कि निर्दोष साबित होते-होते भी कुछ साल बीत ही जाते हैं। इसलिए ईडी के निशाने पर विपक्षी दल के नेता हैं और उन नेताओं के निशाने पर ईडी है।