sidhi: स्वतंत्रता सेनानी (Freedom fighter) बंका बैगा(Banka Baiga) उर्फ बांकेलाल और पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. अर्जुन सिंह(Arjun Singh) भले ही एक जिले के निवासी रहे हों लेकिन दोनों में आपसी संबंध 1980 के विधानसभा चुनाव के बाद बन सके हैं। इसके पहले तक बंका बैगा गरीबों की समस्याओं को लेकर आंदोलन कर आदिवासियों के बीच अच्छी पैठ जमा चुके थे। विधानसभा का चुनाव लड़े तो राजनैतिक क्षेत्र में भी जान पहचान बढ़ गई। बताया जाता है कि जब कुंवर अर्जुन सिंह 80 के दशक में गोपदबनास विधानसभा से चुनाव(assembly elections) लड़ने की तैयारी कर रहे थे उस समय उन्हे महसूस हुआ कि बिना बंका बैगा के आदिवासियों का समर्थन हांसिल नहीं किया जा सकता है।
परिणामस्वरूप उन्होंने बंका बैगा से मिलने का प्रस्ताव भेजा जहां बंका बैगा ने शर्त रखी कि जब वे पैदल चलकर उनके बरमबाबा स्थित घर तक आएंगें तभी मुलाकात हो सकती है। बंका बैगा हमेशा पैदल ही सफर करते थे। उनका तर्क था कि वे जब पैदल चलते है तो उनकी दोस्ती यारी, मेल मुलाकात बराबरी वाले से ही हो सकती है। स्व. अर्जुन सिंह ने भी बंका के शर्त को स्वीकार करते हुए जब मिलने जाना हुआ तो बंका के घर से करीब 1 किमी दूर अपने वाहन को खड़ा कर दिया और फिर वहां से पैदल गए। बताया जाता है कि इस मेल मुलाकात के बाद दोनों में प्रगाढ़ संबंध हो गए जो काफी दिनों तक यथावत रहे।
गोवा मुक्ति के महारथी थे बंका
गोवा मुक्ति आंदोलन के महारथियों में एक रहे बांकेलाल उर्फ बंका बैगा संग्राम के जिन 84 लोगों के दल साथ गोवा गये थे। वापस आने के दौरान न कि अकेले थे बल्कि पैदल आना पड़ा है। गोवा से सीधी के गांधीग्राम पहुंचने में उन्हें चार माह लग गए। पैर जख्मी होने के बाद जब ठीक हुये तब वे आ सके हैं। गोवा मुक्ति आंदोलन के दौरान जब पुर्तगालियों और आंदोलनकारियों का आमना-सामना हुआ तो निर्देश दिया गया कि सभी जमीन पर लेट जाएं, बाकी लोग तो लेट गए किन्तु बंका निर्देश समझ नहीं पाए जिस कारण वे खड़े रहे। इस दौरान जब पुर्तगालियों ने गोली चलाई तो बंका के जंघे में छर्रा लग गया। जख्मी होने पर पकड़ लिए गए जहां प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी और जब छूटे तब वापस आ सके हैं।
खबर उड़ी कि बंका मारे गये
जख्मी बंका बैगा को जब पुर्तगालियों ने पकड़ लिया और वे जब दूसरे साथियों के साथ वापस नहीं लौटे तो पूरे सीधी जिले में हल्ला हो गया कि बंका मारे गए। वह स्पष्ट तब हुआ जब रेडियो ने खबर दी कि कोई नहीं मरा तब लोगों को भरोसा हुआ।
आंदोलन जैसे रग में समाया हो
बंका बैगा के रगों में जैसे आंदोलन समाया हुआ हो। कारण यह कि गोवा मुक्ति के पहले वे स्थानीय पर स्तर बड़े-बड़े आंदोलन कर चुके थे। महुआ आंदोलन, बांधफोड़ आंदोलन, कुठिलाफोड़ आंदोलन प्रमुख रहे हैं। आंदोलन के जरिये आदिवासियों को न्याय दिलाने में सफल भी रहे तो जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। स्थानीय स्तर पर जितने भी आंदोलन हुए वे सब सामन्तों, जागीरदारों के खिलाफ ही रहे हैं।
पहले अनुनय, फिर जबरदस्ती
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बंका बैगा का स्थानीय स्तर का आंदोलन गरीबों, पीड़ितों, शोषितों को लेकर रहा है। बांधफोड़ आंदोलन (1985 के आसपास) आदिवासियों का मार्ग अवरुद्ध हो जाने, डूब क्षेत्र में फंसने को लेकर किया तो महुआ आंदोलन सेठ साहूकारों से आदिवासिओं को उनका हक दिलाने के लिये किया गया। कुठलाफोड़ आंदोलन भी इसी का हिस्सा रहा है । जब जमींदार, जागीरदार कर्ज बतौर भी अनाज देने से मना कर देते थे तब वे समूह के साथ पहुंचकर कुठला यानी अनाज रखने के बड़े पात्र जो मिट्टी का होता था फोड़ देते और अनाज गरीब आदिवासियों में बांट देते । इतना जरूर करते कि जिसके यहां से अनाज लेते उसके उपयोग का भी बराबर ध्यान रखा जाता ताकि वह भी भूखा न रहे।