Indore : पान की दुकान से उठे और 15 दिन में मेयर बन गए

author-image
The Sootr CG
एडिट
New Update
Indore : पान की दुकान से उठे और 15 दिन में मेयर बन गए

Indore ललित उपमन्यु. इंदौर के ख्यात राजवाड़ा पर बनी कोहिनूर होटल से सटी आठ बाय आठ (8x8)की पान की दुकान पर एक सीधा-साधा शख्स बैठता था, नाम मधुकर वर्मा (madhukar verma)। दुकान में इतना मगन कि अपनी दुकान भली और ग्राहक भले। विचारधारा से भले ही कांग्रेसी हो, लेकिन इतना सक्रिय भी नहीं कि कोई टिकट ले आए। बात साल 1995 की है। प्रदेश में दिग्गिवजय सिंह की सरकार ने लंबे अरसे बाद फिर नगर निगम चुनाव कराने का फैसला किया था।



सारे कांग्रेसी सक्रिय हो गए, लेकिन इस शख्स से तब भी न दुकान छूटी न पान। टिकट की इतनी रैलमपेल हुई कि कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों को 'पंजा' देने से ही इनकार कर दिया। वह निकाय चुनाव में कांग्रेस का आत्मघाती कदम था। फ्री फॉर ऑल (Free For All) के नारे के साथ एक-एक वार्ड से कई-कई कांग्रेसी खड़े हो गए। तय हुआ जो जीता वह कांग्रेसी कहलाएगा। कुछ चाहने वालों ने मधुकर वर्मा को भी उनके गृह वार्ड से खड़ा होने की सलाह दी। पूरी सलाह सुनने से पहले ही बंदे ने हाथ जोड़ लिये पर ज्यादा दबाव बना तो भारी मन से फार्म भर दिया। जिस मोहल्ले में पले-बढ़े, जहां जीवन गुजरा उसी वार्ड का होने के कारण थोड़ा अतिरिक्त लाभ तो था, लेकिन एक ही वार्ड Ward से इतने कांग्रेसी खड़े हो गए थे कि लग रहा था न दुकान के रहेंगे न चुनाव के। खैर! नतीजे आए तो जीत गए मधुकर वर्मा। कहानी यहां खत्म नहीं हुई, बल्कि यहां से शुरू हुई । उस साल इंदौर में मेयर का आरक्षण पिछड़ा पुरुष के नाम पर था। यहीं से तकदीर ने पलटी मारी। फ्री फॉर ऑल के बावजूद इस श्रेणी से वर्मा इकलौते उम्मीदवार थे जो जीते, मतलब महापौर Mayor की दावेदारी आसान थी। वर्मा की सारी राजनीति कद्दावर नेता महेश जोशी Mahesh Joshi के इर्द-गिर्द ही चलती थी। जोशी के पास मौका था अपने शागिर्द को मेयर बनाने का। तब जोशी शेडो सीएमShedow cm भी कहलाते थे इसलिए किसी की हिम्मत नहीं थी कि उनके कहे को लांघ जाए। सो मधुकर वर्मा कांग्रेस के मेयर पद के उम्मीदवार घोषित हो गए। जी, वही मधुकर वर्मा जो पंद्रह दिन पहले तक पान की दुकान पर बैठे थे। पार्षद लड़ने के नाम पर हाथ जोड़ रहे थे। भाजपा ने भी उनके हमनाम मधु (महादेव) वर्मा को उम्मीदवार बनाया।



madhukar verma



कहानी में मोड़..किस्मत का साथ



मेयर का चुनाव तब जनता नहीं पार्षद Corporator करते थे। वर्मा के भाग्य में यहां रोड़े दिखे। कुल 69 पार्षदों वाली इंदौर नगर निगम Indore Muncipal Corporation  में कांग्रेस के 33 पार्षद जीते, जबकि भाजपा के भी 34 जीते। एक भाजपा के बागी रमेश गागरे थे। वे टिकट न मिलने पर निर्दलीय खड़े होकर जीत गए थे, मतलब सत्ता की चाबी उनके हाथ में थी। एक कम्युनिस्ट पार्टी के सोहनलाल शिंदे जीते थे। गागरे कैलाश विजयवर्गीय की विधानसभा में विरोध कर जीते थे तो किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें पार्टी में ले ले। तमाम चर्चाओं के बाद कांग्रेस ने उन्हें उप महापौर ( जो बाद में निगम अध्यक्ष हो गया) का पद ऑफर कर समर्थन मांगा। कहते हैं भाग्य साथ हो तो सारी बाधाएं हट जाती हैं। गागरे और शिंदे कांग्रेस के साथ हो गए। स्कोर हो गया 35-34। मधुकर वर्मा मेयर बन गए। पंद्रह दिन पहले तक जो शख्स पान की दुकान पर बैठा था, वो अचानक शहर का प्रथम नागरिक होकर उस कुर्सी पर बैठ गया जिसे कभी सुरेश सेठ, राजेंद्र धारकर, नारायण प्रसाद शुक्ला जैसे उन नेताओं ने शोभित  किया था जो कालांतर में प्रदेश में केबिनेट मंत्री पद तक गए।



एक वोट का बहुमत, पांच साल सांसे ऊपर-नीचे होती रहीं



मधुकर वर्मा के भाग्य में पान की दुकान से उठकर मेयर पद लिखा था इसलिए पांच साल में अविश्वास प्रस्ताव, दलबदल जैसे कई राजनीतिक हादसे भी हुए, लेकिन वे मेयर बने रहे। चूंकि सिर्फ एक वोट के बहुमत से वे पद पर थे लिहाजा भाजपा उन्हें हर हाल में बेदखल करना चाहती थी। उन्होंने कांग्रेस के दो पार्षद अपने खेमे में लेकर स्कोर 34-36 भी किया लेकिन तभी भाजपा की एक पार्षद ने कांग्रेस ज्वाईन कर ली। स्कोर  35-35 हो गया। बाद में पुरानी पार्षद फिर कांग्रेस में लौट आई और स्कोर पुराना ही 35-34 हो गया जो अंत तक चला । पांच साल तक यही सब होता रहा लेकिन अंततः वे साल 2000 में अपना कार्यकाल पूरा कर ही निवृत हुए। कुछ साल पहले उनका स्वर्गवास हो गया।


इंदौर Indore mahesh joshi नगर निगम चुनाव municipal corporation election 1995 मधुकर वर्मा पान की दुकान फ्री फॉर आल कांग्रेस इंदौर बीजेपी—कांग्रेस महेश जोशी Madhukar Verma Paan Shop Free for All Congress Indore BJP-Congress