Gwalior: कहते है राजनीति में कभी कोई स्थाई दुश्मन या मित्र नहीं होता है, यही कारण है कि जो राजनेता कभी एक दूसरे को शब्दभेदी बाण से घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते वो ही वक्त आने पर एक साथ के सुर में सुर मिलाते नजर आते हैं. कुछ इसी तरह की तस्वीर आज ग्वालियर में देखने को मिली। सिंधिया राजघराने के सामंतवाद के खिलाफ सियासत शुरू करने वाले बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक, भाजपा से सांसद और मप्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके जयभान सिंह पवैया की सियासी विडंबना देखिए कि वे आज उन्ही "महाराज"के साथ नगर निगम टिकटों के बंटवारे की गुफ्तगू करते नज़र आये । बैठक के बाहर आये विजुअल इसी नए राजनीतिक सूर्योदय की कहानी कहता दिखता है।
कभी कट्टर विरोधी रहे सिंधिया-पवैया अब साथ-साथ एक मंच पर नजर आए। ग्वालियर में निकाय चुनाव के लिए बनाई गई कोर कमेटी की बैठक में दोनों नेताओं ने आपस में चर्चा की। @ChouhanShivraj @JM_Scindia @PawaiyaJai @BJP4India @BJP4MP @INCMP pic.twitter.com/0MKC1Uc1m7
— TheSootr (@TheSootr) June 10, 2022
मप्र भाजपा द्वारा संभाग के लिए बनाई गई भाजपा की कोर कमेटी की बैठक आज होटल तानसेन में हुई । बैठक में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व सांसद अगल-बगल में बैठे । इस बैठक में सांसद विवेक नारायण शेजवलकर , ऊर्जा मंत्री प्रधुम्न तोमर, प्रभारी जीतू जिराती , अरुण सिंह , जिला अध्यक्ष कमल माखीजानी भी मौजूद रहे । बैठक में हालांकि पवैया असहज लग रहे थे लेकिन सिंधिया और उनके बीच लगातार वार्तालाप होता रहा।
एक दूसरे के धुर विरोधी रहे
पवैया और सिंधिया एक दूसरे के धुर विरोधी रहे है। पवैया ने विहिप छोड़ जब भाजपा में कदम रखा तो उन्होंने अपनी राजनीति की यूएसपी सिंधिया परिवार और उसके कथित सामंतवाद की खिलाफत को बनाया । भाजपा ने उन्हें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री (अब स्वर्गीय) माधवराव सिंधिया के खिलाफ ग्वालियर लोकसभा सीट से मैदान में उतारा। यह सीट सिंधिया के लिए अपराजेय थी । वे यहां से सदैव लाखो मतों से जीतते थे। उन्होंने भाजपा के शीर्षस्थ नेता अटल विहारी वाजपेयी को लाखों मतों से हराया था। उनकी लोकप्रियता का आलम ये था कि एक बार उन्होंने कांग्रेस छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ा तो कांग्रेस के प्रत्याशी शशिभूषण बाजपेयी की जमानत जब्त करवा दी थी, लेकिन पवैया ने अपने रोंगटे खड़े करने वाले आक्रामक भाषणों से महल की सियासत को हिलाकर रख दिया । हालांकि पवैया उन्हें हरा नही पाए लेकिन लाखो मतों से घटकर जीत का अंतर महज साढ़े छब्बीस हजार रह गए। इससे सिंधिया इतने दुखी हुए कि फिर जीते जी कभी ग्वालियर से चुनाव नही लड़े। अगले चुनाव में पवैया जीत गए।
ज्योतिरादित्य के भी खिलाफ खोला मोर्चा
पवैया सिंधिया परिवार को निशाने पर लेने का कभी कोई मौका नही छोड़ते थे। उन्होंने सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता को आधार बनाकर हर वर्ष लक्ष्मीबाई की स्मृति में बलिदान मेला शुरू किया जिसमें एक नृत्य नाटिका के जरिये सिंधिया परिवार पर 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का साथ देने का मचंन होता था । 2018 के विधानसभा और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भूमाफिया के रूप में प्रचारित किया और 2019 में गुना में ज्योतिरादित्य को हारने में पवैया ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था और चौंकाने वाला नतीजा भी आया। सिंधिया भाजपा के मामूली कैंडिडेट डॉ केपी यादव से एक लाख से भी ज्यादा मतों के भारी अंतर से हार गए।
अब सब बदल गया
2018 में भाजपा की सरकार चली गई इससे पार्टी आहत थी और सिन्धिया अपनी पराजय नहीं पचा पा रहे थे । कांग्रेस में भी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह उन्हें सहज नहीं दे रहे थे । सिंधिया को लगता था कि सरकार उनके कारण आई है सो सीएम उन्हें बनना चाहिए था। ऐसे में सिन्धिया ने अपने गुजरात कनेक्शन के जरिये सीधे हाइकमान के जरिये रणनीति बनाई और अपने समर्थक विधायको के साथ काँग्रेस छोड़ भाजपा की सदस्यता ले ली । प्रदेश में सिंधिया की शर्तों पर भाजपा की सरकार बन गयी और हाईकमान के नजदीक होने के कारण भाजपा में सिंधिया के चिर विरोधी रहे नेता बौने पड़कर मौन हो गए। अब पवैया और सिंधिया एक साथ बैठकर गुफ्तगू कर रहे हैं।