छोटे दलों के हिमायती अटल बिहारी बाजपेयी हमेशा चुनाव पूर्व गठबंधन में ही यकीन रखते रहे....उनका मत था कि जो गठबंधन हार जीत देखने के बाद बनते हैं वो सिर्फ राजनीतिक होते हैं....इस सोच के पीछे कई राजनीतिक घटनाएं थीं... जिनके बल पर अटलजी गठबंधन के कामयाब और सिद्धांतिक तरीकों को समझते चले गए...और उनका पालन भी किया...मध्यप्रदेश का हिस्सा बन चुका विंध्य का अंचल भी उसी की एक बानगी है...जो पहले एक अलग प्रदेश हुआ करता था....विंध्य में राजनीति करने वाले दल हमेशा विंध्य प्रदेश के हिमायती बने रहे...कुछ तो आज भी सक्रिय हैं. लेकिन उस वक्त अपना दबदबा कम होता देख विंध्य प्रदेश को खत्म कर दिया गया... ये इल्जाम कांग्रेस पर हमेशा लगते रहे हैं...
मध्यभारत में विंध्यप्रदेश अपने धारदार समाजवादी आंदोलनों के लिए सुर्खियों में आने लगा था...सोशलिस्ट यहां मुख्य विपक्ष था...सीधी जैसे अति पिछड़े क्षेत्र से लोकसभा में कांग्रेस अपना पहला चुनाव हार गई...विधानसभा सीटों में तीन चौथाई में समाजवादियों को जनादेश मिला...विंध्यप्रदेश का यह घटनाक्रम कांग्रेस के लिए एक तरह से चुनौती माना जाने लगा थी...नतीजा ये हुआ कि बिना किसी ठोस आधार के विंध्यप्रदेश प्रांत को विलोपित कर दिया गया...क्षेत्रीय अस्मिता पर ये पहला प्रहार माना गया...इसे देखते हुए दक्षिण में काग्रेस की सरकार के खिलाफ बिगुल बज चुका था...अन्ना दुरई के आह्वान पर जो तूफान उठा उसने साठ के शुरुआती दशक में ही तामिलनाडु में कांग्रेस के सितारे को गर्दिश में डाल दिया...इस बहर का असर दक्षिण के अन्य प्रांतों में भी पड़ा जिसका परिणाम आज सामने है...
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