Jabalpur. कुछ नेता ऐसे भी होते हैं, जो आने वाली पीढ़ी के लिए मिसाल कायम कर जाते हैं। ऐसे ही शख्सियत के धनी थे पंडित विश्वनाथ दुबे (Vishwanath Dubey)। वे कांग्रेस से आखिरी महापौर थे। इनके बाद नगरीय सत्ता पर बीजेपी ही काबिज रही।
सरकारी पैसे से ना चाय, ना मानदेय
विश्वनाथ दुबे ने महापौर रहते हुए नगर निगम के पैसों से कभी चाय भी नहीं पी, बल्कि वे खुद अपने पैसों से लोगों को चाय पिलाते थे। उन्होंने मेयर के पद पर रहते हुए कभी मानदेय नहीं लिया। यहां तक कि महापौर को मिलने वाली गाड़ी और बंगला भी नहीं लिया। उनका कहना था कि जब मेरे पास खुद की गाड़ी और मकान है तो वे जनता का पैसा खर्च क्यों करें।
मॉडल रोड बनवाई
विश्वनाथ दुबे ने अपने मेयर कार्यकाल में जबलपुर में मॉडल रोड का निर्माण कराया था। खास बात यह है कि मॉडल रोड के निर्माण के लिए नगर निगम कर्मचारियों ने अपना एक महीने का वेतन दिया था। इसके अलावा दुबे ने एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) से लोन स्वीकृत करवाया था।
जमीनों को कराया था कब्जामुक्त
एक समय था, जब शहर में जगह-जगह अतिक्रमण और अवैध कब्जे कुकरमुत्तों की तरह फल-फूल रहे थे, उस वक्त विश्वनाथ दुबे ने आगे आकर अवैध कब्जों के खिलाफ अभियान चलाया। सिविक सेंटर और गुरंदी इलाके की कई एकड़ सरकारी जमीन को कब्जामुक्त कराने का असंभव सा काम संभव कर दिखाया। उनके इन्हीं कामों से उनकी इमेज शहर के विकास पुरुष की बन गई थी।
नए शहर की परिकल्पना
विश्वनाथ दुबे की सोच थी कि नए निर्माण कार्य नए शहर में हों, इससे जनता को परेशानी नहीं होगी। उस दौरान उन्होंने फ्लाईओवर बनवाने पर भी चर्चा की थी, जो दो दशक बाद अब साकार होने जा रहा है।
वक्त से पहले इस्तीफा
विश्वनाथ दुबे 2000 -2004 तक महापौर रहे। राकेश सिंह से लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया। इस दौरान उनके कार्यकाल के 6 महीने बचे थे। जनता के जनादेश को स्वीकार करते हुए नैतिकता का पालन करते हुए उन्होंने मेयर की कुर्सी खाली कर दी थी।