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Delhi. आम आदमी ये कह सकता है कि चुनाव में अभी काफी वक्त है। लेकिन सियासी दलों की सक्रियता साफ जाहिर कर रही है कि वो एक दिन तो क्या एक पल भी गंवाना नहीं चाहती। बीजेपी के आला नेताओं की बड़ी-बड़ी सभाएं इस बात का इशारा हैं कि वो चुनावी मोड में आ चुकी हैं। कांग्रेस में उतनी तेजी भले ही दिखाई न दे रही हो, लेकिन इस रेस को जीतने के लिए बंद कमरा बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। सत्ता में वापसी के लिए कमलनाथ अब सीनियर लीडर को मुख्य धारा में ला रहे हैं। मगर जिन पैरों पर खड़े होकर चुनावी रेस जीतना चाहते हैं, वे थक चुके हैं। तजुर्बा तो है लेकिन मैदान में कितना दौड़ पाएंगे ये देखना होगा।
अचानक छिनी सत्ता के बाद माना जा रहा था कि एमपी कांग्रेस चोट खाए शेर की तरह आक्रमक होगी। लेकिन यहां वो दिखाई नहीं दिया। अब जरूर एमपी कांग्रेस में अचानक हलचल तेज हुई है। इस हलचल को प्रशांत किशोर की आने की आहट से जोड़कर देखा जा सकता है। फिलहाल वो कांग्रेस से जुड़े हैं उनकी भूमिका क्या होगी इस पर अभी फैसला होना बाकी है। लेकिन इस फैसले से पहले ही कांग्रेस के नेताओं में ऐसी खलबली मची है कि सब अचानक एकजुट होकर बैठकें कर रहे हैं। ये हलचल हुई तो बीजेपी को भी चुटकी लेने का मौका मिल ही गया।
मप्र कांग्रेस में डिनर पॉलिटिक्स
कांग्रेस में अब ऐसी तस्वीर कम ही नजर आती है। (कमलनाथ के साथ डिनर के बाद नजर आ रहे नेताओं की) कमलनाथ, दिग्गविजय सिंह, सुरेश पचौरी, अजय सिंह, राहुल सिंह, कांतिलाल भूरिया- इस बैठक को एक्स लीडर बैठक कहा जा रहा है। यानि जो कभी सीएम, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष या नेताप्रतिपक्ष के पद पर रहे हों, कमलनाथ ने उन्हें ही इस बैठक में बुलाया था। पूरे समूह की औसत उम्र पैसठ से सत्तर के बीच होगी। बूढ़ी होती कांग्रेस के नेताओं में अचानक नई रवानी आई है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कदम भर रखा है और कांग्रेस के सिनियर नेताओं में उथलपुथल मच गई है। दिल्ली में पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी बैठकें कर रही हैं। प्रशांत किशोर ने कुछ प्रेजेंटेशन भी दिए हैं और इधर एमपी में कमलनाथ ने अपने घर अपने एक्स लीडर्स को दावत पर बुला लिया। दावत क्या थी अनौपचारिक पॉलीटिकल डिनर ही था, जिसके बाद एमपी कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से ये तस्वीर ट्वीट कर ये बताया गया कि हम साथ साथ हैं।
पीके के आने से पार्टी में हलचल
आमतौर पर डिनर टेबल के साथ रखीं कुर्सियां सियासी फासले मिटाने में सत्ता की कुर्सी से ज्यादा कारगर साबित होती है। सो कमलनाथ को भी शायद यही तरीका ज्यादा मुफीद लगा। खाने के बहाने मिशन 2023 पर चर्चा हो जाए। नए नवेले प्रशांत किशोर पार्टी के इन पुरोधाओं को नया रास्ता दिखाएं उससे पहले जीत का तरीका ढूंढ लेना ज्यादा ठीक लगा हो। हालांकि कांग्रेस जो मकसद छिपाने की कोशिश करती रही, उसे बीजेपी ने साफ कर ही दिया। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि पीके के आने की आहट से कांग्रेस के बुजुर्ग नेता घबरा रहे हैं। ये घबराहट है या समय की नजाकत को समझते हुए एकजुट होने में ही इन नेताओं को अपनी भलाई नजर आ रही है। कारण जो भी हो लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रशांत किशोर के नाम से कांग्रेस नेताओं में नई परिपाटी शुरू होने का डर साफ दिखाई दे रहा है।
युवाओं को नहीं मिल रहा मौका
कांग्रेस थकी हुई है, कांग्रेस हारी हुई है। इसी थकी, हारी कांग्रेस में नई जान फूंकने आ रहे हैं प्रशांत किशोर। बस इसी बात से सिनियिर नेताओं में ये हलचल है। हलचल गलत भी नहीं है। कमलनाथ एक बार फिर अपने अनुभव और तजूर्बे के आधार पर पार्टी नेताओं को एक छत के नीचे लाकर मैदान फतेह करना चाहते हैं। उनकी ये आखिरी पारी कही जा सकती है। एक तरह से कहा जाए तो वे मुख्य धारा की राजनीति छोड़ने से पहले उस सत्ता को एक बार फिर पाना चाहते हैं, जो बीजेपी ने उनसे प्रपंच करके छिनी थी। वो बात अलग है कि मध्यप्रदेश हो या राजस्थान हो युवा नेता फिलहाल तजूर्बेकार नेताओं के कारण आगे नहीं आ पा रहे हैं। इसके चलते कांग्रेस न सिर्फ नई और युवा लीडरशिप खड़ी करने में पिछड़ रही है, बल्कि जो युवा आगे आकर पार्टी की बागडोर संभालने के लिए तैयार हैं, उन्हें भी खोती जा रही है।
युवा नेता चाहते हैं तवज्जो
मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और आसाम में ऐसे बड़े नेता शामिल हैं, जिनकी ऊर्जा को कांग्रेस अपने लिए चैनलाइज नहीं कर पाई। बीजेपी उस ताकत को भांप गई और नेताओं को मुकम्मल जिम्मेदारियां सौंपी। जिस पर कांग्रेस के ठुकराए सभी नेता खरे उतर रहे हैं। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया इसी का उदाहरण हैं, जो कांग्रेस में जीत का पोस्टर बॉय बन कर रह गए। नतीजा क्या हुआ सभी जानते हैं। राजस्थान में सचिन पायलट इसी दौर से गुजर रहे हैं। उत्तरप्रदेश में जितिन प्रसाद ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन था और असम के हेमंत बिस्व सरमा के मामले में कांग्रेस ने क्या चोट खाई है। ये किसी छिपा नहीं है। हेमंत बिस्व सरमा कांग्रेस के ही नेता थे, जिन्हें सही तवज्जो नहीं मिली। बीजेपी में गए तो सूबे के मुखिया मिलने तक अहमियत मिलती रही।
दिग्गज नेता तल्खी भुलाकर एकजुट होते नजर आ रहे
अब क्या कांग्रेस में आकर प्रशांत किशोर कोई ऐसा मंतर फूंक पाएंगे कि कांग्रेस अपने पुराने नेताओं को पीछे कर युवा नेताओं को आने दे पाएगी। परिवारवाद की जड़ें जो पार्टी में बहुत गहरी हो चुकी हैं, उन्हें उखाड़ फेंकना क्या इतना आसान होगा कि डेढ़ साल में नए बीज भी डल जाएं और जीत की नींव नए सिरे से डल जाएं। लेकिन ये तय है कि जिस तेजी से केंद्र के स्तर पर कांग्रेस एक्टिव हुई है। उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि पीके की एंट्री हुई तो कांग्रेस में तेजी से फैसले होंगे और बदलाव भी होगा। पर मामला तब अटक सकता है जब पीके परिवारवाद के खिलाफ आवाज उठाएंगे। दशकों से एक ही परिवार की सरपरस्ती में चल रही कांग्रेस क्या पीके के इस फैसले पर सहमती दे पाएगी। बहरहाल कांग्रेस में पीके क्या कर पाएंगे क्या नहीं। ये वक्त के साथ पता चलेगा। लेकिन इतना जरूर है कि कांग्रेस में खासतौर से एमपी कांग्रेस में अब तक जो नहीं हो रहा था वो होता दिखाई दे रहा है। दिग्गज नेता तल्खी भुलाकर एकजुट होते नजर आ रहे हैं। जीत के लिए चर्चा करने एक टेबल पर पहुंच ही चुके हैं। लेकिन क्या वो करिश्मा दिखा पाएंगे, जो एक तिहाई सीटों पर जीत के लिए एमपी में जरूरी है।
बंद कमरों में डिनर के साथ हार के डर पर चर्चा हुई ?
पीके के आने से पहले एकजुट हुए ये कांग्रेस के वो नेता हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं। आएंगे तो एक साथ ही आएंगे। आगे पीछे होकर चलना शायद किसी को पसंद नहीं आएगा। बंद कमरों में डिनर के साथ हार के डर पर चर्चा हुई या पीके के डर पर ये तो किसी ने कहा नहीं। पर, दोबारा मजबूत होते साथ से ये संशय तो होता ही है कि क्या कि दिग्गज नेता बहुत आसानी से अपने से आधे या उससे भी कम अनुभव वाले पीके के बताए रास्ते पर उनके पीछे चल सकेंगे। माना पीके रणनीतिकार हैं, सर्वे करने की नई तकनीक से लैस हैं और अपने काम में माहिर हैं। लेकिन मैदान में उतरे ये कोई नौसिखिए नहीं है दशकों तक जीत का परचम गाढ़ चुके और कई रणनीतियां बना बिगाड़ चुके सियासत के माटी पकड़ पहलवान है। क्या जीत की खातिर ये पीके के पेचोखम आसानी से चलने देंगे। ये देखना भी दिलचस्प होगा।