आटा गूंथ रहीं थी, भोपाल से फोन आते ही पकड़ी ट्रेन और राज्यसभा पहुंच गईं सुमित्रा

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Praveen Sharma
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आटा गूंथ रहीं थी, भोपाल से फोन आते ही पकड़ी ट्रेन और राज्यसभा पहुंच गईं सुमित्रा

Bhopal. सुमित्रा वाल्मीकि ​विधायक (MLA) बनना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें राज्यसभा सांसद (Rajya Sabha MP) बनाया जाएगा। बीजेपी ने सुमित्रा को राज्यसभा भेज कर कई संदेश पार्टी कार्यकर्ताओं व आम जनता को दिए हैं। सुमित्रा वाल्मीकि को जब राज्यसभा टिकट की सूचना भोपाल Bhopal से भाजपा मुख्यालय (BJP Head office) ने दी, तब वे घर में रोटी बनाने के लिए आटा गूंथ रही थीं। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। आनन फानन में भाई के साथ भोपाल रवाना होने की तैयारी करने लगीं। उधर जबलपुर कलेक्टर उनका मोबाइल नंबर खोज रहे थे। सुमित्रा वाल्मीकि गिरती-पड़ती जबलपुर रेलवे स्टेशन (Railway station) पहुंची तो ट्रेन लेट होने से भोपाल जाने का रास्ता बना। पुलिस एसपी ने दो सिपाही साथ में रवाना किए।





इस सादगी से मीडिया भी हुआ फेल 





जबलपुर के मीडिया में हलचल मची। जब तक मीडिया सम्पर्क करता ट्रेन भोपाल की ओर चल पड़ी थी। मीडिया को आश्चर्य हुआ कि सुमित्रा वाल्मीकि ट्रेन से क्यों रवाना हुईं? चलन के अनुसार टिकट के दावेदार और पाने वाले तो लाव लश्कर के साथ चार पांच एसयूवी में कूच करते हैं। दरअसल इसी सादगी के कारण सुमित्रा वाल्मीकि को राज्सभा भेजा गया। भाजपा की राजनीति माइक्रो लेवल जांच वाली और ज्यादा पेशेवर हो रही है। टिकट वितरण में प्रदेश मुख्यालय की तुलना में राष्ट्रीय मुख्यालय की अपनी पद्धति और काम करने का तरीका है। इसे भाजपा का खांटी कार्यकर्ता तो समझता है, लेकिन एसी कमरों में बैठने वाले दिग्गज गच्चा खा जाते हैं।





बंगाल - यूपी चुनाव में मेहनत से संगठन प्रभावित





सुमित्रा वाल्मीकि द्वारा बंगाल व यूपी विधानसभा चुनाव में काम करने के तरीके को भाजपा के केंद्रीय मुख्यालय ने बारीक से देखा था। सुमित्रा वाल्मीकि की बंगाल विधानसभा चुनाव में जिस सीट पर तैनाती की गई थी, वहां उन्होंने जिस प्रकार तन - मन - धन से काम किया उसने भाजपा के राष्ट्रीय संगठन को गहरे तक प्रभावित किया। सुमित्रा वाल्मीकि के सामने भाजपा के दो कार्यकर्ताओं की हत्या हुई। सुमित्रा वाल्मीकि ने बिना घबड़ाए सौ-डेढ़ सौ महिलाओं को भाजपा की सदस्यता दिलाने का महत्वपूर्ण काम किया। चुनाव परिणाम तक वे वहां टिकी रहीं। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी हार गया, लेकिन वहां के कार्यकर्ताओं में सुमित्रा दीदी की छवि अमिट हो गई। यूपी चुनाव में सुमित्रा वाल्मीकि को बस्ती जिले में भेजा गया। यहां भी उन्होंने जी - जान से मेहनत की। जो शुरू से गईं तो परिणाम तक जुटी रहीं। यहां परिणाम सुखद रहा, लेकिन सुमित्रा वाल्मीकि निरपेक्ष भाव से जबलपुर वापस आ कर अपने काम में इतनी मशगूल हो गईं कि राज्यसभा चुनाव का टिकट मिलने की भनक तक नहीं लग पाई।





कांग्रेस - भाजपा प्रत्याशियों को राज्यसभा जाने की खुशी 





सुमित्रा वाल्मीकि की राज्यसभा सांसद चुने जाने से भाजपा व कांग्रेस दोनों दल के एमएलए खासे खुश हैं। जबलपुर के भाजपा एमएलए के लिए अगले चुनाव में सुमित्रा गले की फांस बनतीं तो कांग्रेस के एमएलए की सीट पर वे प्रतिद्वंद्वी बन कर उभरतीं। भाजपा के लोग उन दिनों को याद करते हैं जब सुमित्रा वाल्मीकि नगर निगम की अध्यक्ष चुनी गई थी तब कुल जमा  एक कमरे व गाड़ी के लिए उन्हें कैसे परेशान किया गया था। सुमित्रा वाल्मीकी के उभार से प्रदेश व जबलपुर भाजपा के दिग्गज हैरान परेशान हैं, लेकिन ज़मीनी कार्यकर्त्ता खुश हैं कि उन जैसी सुमित्रा का उत्थान हो सकता है तो एक दिन उनका भी आएगा।



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