लखनऊ. क्या दलितों (Dalit politics) की मसीहा कही जाने वाली मायावती की राजनीति (Mayabati Politicis) खत्म हो गई? यूपी विधानसभा चुनाव रिजल्ट इसकी गवाही देते हैं। उत्तरप्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती कि पार्टी बसपा को इस चुनाव में महज एक सीट मिली है। इससे भी चौंकाने वाली बात ये है कि यूपी में बसपा 8 वें नंबर की पार्टी बनकर उभरी है। इससे पहले यूपी की राजनीति में इतना शर्मनाक प्रदर्शन बसपा का कभी नहीं रहा। इधर राजनितिक एक्सपर्ट की मानें तो बीएसपी बीजेपी की बी टीम बनकर चुनाव लड़ी। BSP ने अपना वोट BJP को शिफ्ट करा दिया। अगर ऐसा है तब भी मायावती का जादू खत्म होते इस चुनाव में नजर आया है। आइए समझते हैं माया की इस हार के मायने क्या है?
8वें नंबर की पार्टी: पार्टी ने 2007 में राज्य में सरकार बनाई थी, जब उसे 403 में से 206 सीटें मिलीं थीं। लेकिन उसके बाद से उनका सीट शेयर गिरता रहा है, और पार्टी को 2012 में 80 सीटें, 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 19 सीट मिली। इस चुनाव में बसपा का वोट शेयर 22.23 फीसदी रहा था। वहीं, 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा 8वें नंबर की पार्टी है। बसपा को सिर्फ एक सीट मिली है। इतना ही नहीं, बसपा का प्रदर्शन कांग्रेस, सुहेलदेव पार्टी, निषाद पार्टी, अपना दल से भी खराब रहा है। 2017 के मुकाबले बसपा को 18 सीटों का नुकसान उठाना पड़ रहा है। आलम यह है कि सीटों के मामले में मायावती की पार्टी राजा भैया की नई नवेली पार्टी जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के समकक्ष हो गई है। एक्सपर्ट की मानें तो इस वोट प्रतिशत के साथ ये एक स्पष्ट संकेत है कि जाटव बीएसपी का साथ छोड़ रहे हैं। बीएसपी अच्छा नहीं कर पा रही है। ये एक तरह से बीएसपी के पतन की शुरुआत है।
मास्टर स्ट्रोक ने ही पार्टी को डुबोया: मायावती का टिकट बंटवारे के दौरान एक खास फॉर्मूला आजमाती रही। इसमें वह दलित बाहुल्य सीट पर ब्राह्मण या फिर मुस्लिम चेहरा खड़ा करती है। बसपा ने इस बार भी अपने पुराने फॉर्मूले को लागू करने की कोशिश की थी। इसी वजह से बसपा ने इस बार 60 से ज्यादा ब्राह्मणों और इससे ज्यादा मुस्लिमों को टिकट दिए। गणित था कि उसका कॉडर वोटर और उम्मीदवार की जाति का फॉर्मूला बसपा को हिट कर देगा पर ऐसा नहीं हो पाया। कॉडर वोट तो छिटका ही, ब्राह्मणों ने कोई खास रुचि बसपा में नहीं दिखाई। इधर मुस्लिमों का पूरा वोट समाजवादी पार्टी में शिफ्ट हुआ।
विपक्ष की भूमिका से गायब होना: बसपा विपक्ष के तौर पर उत्तरप्रदेश से गायब रही। खुद मायावती प्रदेश के बड़े से बड़े मसले पर चुप्पी साधे रहीं। उनकी पार्टी के ज्यादातर नेताओं को बोलने की आजादी नहीं होती थी। ऐसे में विपक्ष के रूप में बसपा को अपनी भूमिका के लिए लोकसभा चुनावों में सबक मिल चुका था लेकिन बसपा ने उससे कोई सीख नहीं ली। इसके अलावा बसपा के अलावा सभी पार्टियों के विकास का अपना एक एजेंडा था। उनके पास अपना एक मॉडल था लेकिन बसपा ने इस पर कभी चर्चा नहीं की। खुद मायावती ने अपने भाषणों में विकास की बात कभी नहीं की।