हरीश दिवेकर, BHOPAL. दो बार फाइनल परीक्षा में फुल मार्क्स के साथ पास होने के बाद अब शिवराज नई कक्षा के सेमीफाइनल में कुछ खास कमाल नहीं कर सके। शायद इसलिए कि तीसरी फाइनल एग्जाम उन्होंने जुगाड़ से पास की थी। इसलिए न पाठ याद करने में मन लग रहा है और न पाठ याद कराने का बस चल रहा है। शायद इसलिए सेमीफाइनल एग्जाम में ज्यादा अंक लाकर भी शिवराज अपने नजदीकी कॉम्पिटीटर से बुरी तरह हारे नजर आ रहे हैं।
नगरीय निकाय चुनाव की परीक्षा
शिवराज के लिए सेमीफाइनल की ये परीक्षा थी नगरीय निकाय चुनाव की परीक्षा। बेशक बीजेपी ज्यादा सीटें हासिल करने में कामयाब रही है। लेकिन नतीजे मन माफिक नहीं हैं और कांग्रेस जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं था। वो इस चुनाव में झंडे गाड़ने में कामयाब रही है। ये नतीजे सिर्फ चुनाव परिणाम नहीं है बल्कि शिवराज सरकार के लिए एक सबक भी है। ये समझने का कि अब भी सिस्टम में कसावट लाने में देर की तो एमपी की सत्ता के फाइनल में फिर 2018 वाले परिणाम दोहरा सकते हैं। क्योंकि अब उनका भरोसा और उनका काम करने का तरीका खुद उनके करीबी और अपनों के निशाने पर हैं। जो अब खुलकर उनके अफसर प्रेम पर सवाल उठा रहे हैं।
चौंकाने वाले रहे 16 नगर निगमों के नतीजे
16 नगर निगमों के नतीजे चौंकाने वाले रहे। कांग्रेस जो सात साल पहले खाता भी नहीं खोल सकी। उसने इतिहास रच दिया। उन सीटों पर जीत हासिल की जो या तो पहले कभी उसकी हुई ही नहीं या कई दशकों से जिसने कांग्रेस से दूरी बनाकर रखी थी। ये इस बात का इशारा है कि कमलनाथ का फॉर्मूला काम कर गया। अपना टिकट बचाने के लिए विधायकों ने एड़ी चोटी का जोर लगाया और कांग्रेस की वापसी कर करवा दी।
बीजेपी को 7 नगर निगमों का नुकसान
बीजेपी को कुल 7 नगर निगमों का नुकसान हुआ है। ये बात सही है कि शिवराज की अगुवाई में बीजेपी ने कांग्रेस से ज्यादा नगर निगमों पर कब्जा जमाया है लेकिन ये भी उतना ही सच है कि तीसरी बार सत्ता में आकर शिवराज सिंह चौहान पुराने नतीजे नहीं दोहरा सके। कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन कर दिखाया। लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात है आप पार्टी का जीत दर्ज करना। आम आदमी पार्टी की धमक सिर्फ एक महापौर सीट पर जीत के साथ ही गूंजने लगी है। ये धमक इसलिए नजरअंदाज नहीं की जा सकती क्योंकि अव्वल तो ये विंध्य के क्षेत्र में हुई है जहां से पिछले चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें हासिल की थीं। यही वजह है कि बीजेपी जीत का जश्न तो मना रही है। लेकिन गलियारों में वो रौनकें दिखाई नहीं दे रहीं जो बड़ी जीत के बाद अमूमन नजर आती हैं।
नपे तुले शब्दों में सीएम को उनकी खामियां गिना रहे नेता
जीतने वाली पार्टी का हर नेता खुश होता है और विरोध के सुर उभरते हैं हारी हुई पार्टी से। लेकिन नगर सरकार के चुनाव के बाद मिजाज जरा पलटा हुआ है। यहां जीते हुए खेमे में नाराजगी है गुस्सा है। छोटा नेता या अदना सा कार्यकर्ता भले ही खामोश हो लेकिन बड़े नेताओं का मुंह बंद करना आसान नहीं है। जिनकी जुबान तीखी नहीं है, नपे तुले शब्दों में ही सही वो शिवराज को उनकी खामियां गिना रहे हैं। बड़े नेताओं की नाकामी पर सवाल भी उठा रहे हैं। शब्द नफासत भरे हैं लेकिन शिवराज के दिल में नश्तर की तरह जरूर चुभे होंगे।
आखिर बीजेपी से चूक कहां हो गई ?
नगर सरकार की लड़ाई में बीजेपी कहां चूकी। इस एक सवाल के जवाब बहुत से हैं। पार्टी के बाहर बैठे लोगों के आंकलन भी अलग-अलग हैं। प्रत्याशी चयन में गलती हुई, महापौर का प्रत्यक्ष चुनाव भारी पड़ा या पार्टी की रणनीति कहीं डगमगा गई। ऐसे कई जवाब हो सकते हैं। पार्टी के अंदर बैठे लोग ही बेहतर जानते हैं कि गलती कहां हुई है। किसके स्तर से हुई है। 16 में से 7 सीटें गंवाने का दर्द पार्टी का हर नेता महसूस कर रहा है पर खामोश बना हुआ है। इस खामोशी को तोड़ा है पार्टी के ही एक सीनियर लीडर ने। जिसकी आवाज आलाकमान के दरवाजे तक गूंजती है। उस नेता ने हार के लिए शिवराज सिंह चौहान की एक कमजोरी को जिम्मेदार बताया है। ये नेता हैं मालवा के क्षत्रप और पार्टी के दिग्गज कैलाश विजयवर्गीय। एक विजयवर्गीय का ही क्षेत्र यानि कि मालवा ऐसा रहा जहां बीजेपी ने पूरी जीत हासिल की है। इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ में भी बीजेपी ने शर्मनाक हार झेली है। जिसे विजयवर्गीय ने पार्टी के लिए अलार्मिंग बताया है।
कैलाश का शिवराज पर निशाना
कैलाश विजयवर्गीय ने सिंधिया पर तो बिना नाम लिए ही निशाना साधा। लेकिन शिवराज सिंह चौहान पर नाम लेकर तीर चलाया है। विजयवर्गीय ने खुलतौर पर कहा कि शिवराज अफसरों के भरोसे रहे और कार्यकर्ताओं को अनदेखा किया। हालांकि विजयवर्गीय ने ये बात कहते हुए हर शब्द को बहुत नर्म रखने की कोशिश की है। लेकिन फिर भी सच्चाई चुभ ही जाती है। शिवराज पर यूं नपे तुले अंदाज में निशाना साधकर विजयवर्गीय ने आगाह कर दिया है कि यही गलती दोहराई तो फिर चूकोगे चौहान।
अपनों की नजर में धूल कैसे झोंक सकेंगे
भरे मंच पर आकर जीत का जश्न मनाकर शिवराज सिंह चौहान या बीजेपी अपनी खामियों पर पर्दा डालने की कोशिश कर सकती है। लेकिन अपने ही दल के तजुर्बेकार नेताओं की आंख में धूल कैसे झोंक सकेंगे।
आलाकमान की नजर से कैसे चूकेगी खामी
जो खामी विजयवर्गीय की नजर में है वो भला आलाकमान की नजर से कैसे चूकी होगी। कुछ सीटें बचाकर बेशक वो कुर्सी पर मंडराते खतरे को धकेलने में कामयाब हो सके हैं लेकिन ये तय है कि अब डेढ़ साल शिवराज को अग्निपथ पर चलना है। इसके बाद अग्निपरीक्षा भी देनी है। कांग्रेस को कमजोर मानने की भूल वो दो बार कर चुके हैं। तीसरी बार भी की तो खामियाजा पूरी पार्टी को भुगतना होगा और अफसरशाही पर ढीली होती उनकी पकड़ जो जग जाहिर है वो अब उनके लिए ही खतरा बन रही है। ये खतरा और बड़ा हो जाए। उससे पहले कुछ ठोस कदम भी उठाने होंगे।