नगर सरकार के चुनाव में धरी रह गई बड़े लीडर्स की नेतागिरी, आखिर कैसे बुरी तरह हारे दिग्गज; सीटें गंवाकर खुश कैसे रह सकती है BJP

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The Sootr CG
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नगर सरकार के चुनाव में धरी रह गई बड़े लीडर्स की नेतागिरी, आखिर कैसे बुरी तरह हारे दिग्गज; सीटें गंवाकर खुश कैसे रह सकती है BJP

हरीश दिवेकर, BHOPAL. हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं। ये डायलॉग नाइंटीज की फिल्म बाजीगर का है। लेकिन इन दिनों एमपी की पॉलिटिक्स पर बिल्कुल फिट है। हारकर जीता कौन और जीत कर भी कौन दिल से खुश नहीं हो सकता इसका अंदाजा आपको हो ही जाएगा। एमपी के पहले चरण के नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे अब सब जानते हैं। नगर निगम पर बीजेपी का परचम लहरा रहा है। पहले चरण की 11 सीटों में से सबसे ज्यादा सीट बीजेपी के खाते में आई हैं। कांग्रेस का खाता खुला। लेकिन जितनी सोची थीं उतनी सीटें नहीं मिलीं। इसके बावजूद कांग्रेस खेमे में जश्न का माहौल है। ज्यादा सीटें जीतकर बीजेपी में जलसा नजर जरूर आता है। लेकिन खुशी की वो चमक गायब है जो बड़ी जीत के बाद होनी चाहिए थी।



बीजेपी के नेताओं की नींद उड़ना लाजिमी



नगरीय निकाय के पहले चरण की सीटों के नतीजे सबके सामने हैं। 11 नगर निगमों में से बीजेपी के खाते में 7 सीटें गई हैं। 3 पर कांग्रेस और एक पर आम आदमी पार्टी ने फतह हासिल की है। साफ नजर आ रहा है बीजेपी का पलड़ा सबसे ज्यादा भारी है। सात से आठ सीटें जीतने का दावा करने वाली कांग्रेस आधी सीटें भी नहीं निकाल सकी। इसके बावजूद कांग्रेस खेमे में जश्न का माहौल है। गलियारे तो बीजेपी के भी जश्न में डूबे हैं। लेकिन बंद कमरों की बैठकों में जश्न नहीं तनाव हावी है। जीत के बावजूद बीजेपी इत्मीनान नहीं कर सकती। नतीजे ही ऐसे हैं कि पार्टी के नेताओं की नींद उड़ना लाजिमी है। कोई और समझे न समझे खुद बीजेपी के रणनीतिकार और चुनावी चाणक्य ये समझ सकते हैं कि साम, दाम, दंड, भेद न सही कई और तिकड़में करके बीजेपी को ये जीत हासिल हुई है। ये तिकड़में न की जातीं तो सात में दो सीटें और कांग्रेस या किसी और दल के हाथ होतीं। इसलिए बीजेपी के लिए ये वक्त चैन से बैठने का तो नहीं हो सकता। क्योंकि जो सीटें गंवाई हैं वो छोटी-मोटी सीटें नहीं हैं। वो ऐसी सीटें हैं जहां बीजेपी के दिग्गजों का प्रभाव है। एक नहीं दो-दो, तीन-तीन बड़े नेता इन क्षेत्रों में अपनी धाक रखते हैं। उसके बावजूद बीजेपी से वोटर नाराज दिखाई दे रहा है।



धरी रह गई बड़े लीडर्स की नेतागिरी



जेपी नड्डा, वीडी शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर इस फेहरिस्त में अगर कोई बड़ा बीजेपी नेता याद आता है तो उसका नाम भी डाल दीजिए। और ये मान लीजिए कि नगर सरकार के चुनाव में इन बड़े लीडर्स की सारी नेतागिरी धरी रह गई। बीजेपी ने जीत के झंडे जरूर गाड़े लेकिन जिन क्षेत्रों से बीजेपी के बड़े लीडर्स का नाता है वहीं उसे करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है। हालांकि कांग्रेस ने भी जहां रसूखदार या रईस चेहरे उतारे थे वहां उसे मुंह की ही खानी पड़ी है। थोड़ा बहुत गेम बाहरी पार्टियों ने बिगाड़ा। वर्ना कांग्रेस बीजेपी को और गहरा सदमा पहुंचा सकती थी।



3 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा



नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस तीन सीटों पर जीती। एक ग्वालियर, दूसरा जबलपुर और तीसरा छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा में जीतना ही चाहिए था क्योंकि यहां कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की नाक का सवाल था। लेकिन जबलपुर और ग्वालियर की जीत चौंकाने वाली है। सबसे पहले बात जबलपुर की करते हैं। यहां कांग्रेस प्रत्याशी जगत बहादुर सिंह की जीत हुई और बीजेपी प्रत्याशी जितेंद्र जामदार हार गए। वैसे जामदार वीडी शर्मा के समर्थन से टिकट हासिल कर पाए थे। जबलपुर से बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का गहरा नाता है। वो इस शहर के दामाद हैं। ठीक वैसे ही जैसे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष यानी आलाकमान जेपी नड्डा। नड्डा की ससुराल भी जबलपुर ही है। बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश शर्मा का तो ये शहर ही है। उसके बावजूद वो अपनी पार्टी की साख नहीं बचा सके और सीट कांग्रेस की झोली में चली गई।



55 साल बाद कांग्रेस ने ग्वालियर सीट पर जमाया कब्जा



ग्वालियर का हाल भी जुदा नहीं है और यहां बीजेपी के दिग्गजों की गिनती भी कम नहीं है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैबिनेट मंत्री नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया सब ग्वालियर और पूरे चंबल में धाक रखते हैं। पर अपने प्रभाव वाली इस सीट पर ही जीत नहीं दिला सके। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी शोभा सिकरवार ने बीजेपी की सुमन शर्मा को शिकस्त दी है। सुमन शर्मा नरेंद्र सिंह तेवर की सिफारिश से टिकट हासिल कर पाई थीं। लेकिन चुनावी मैदान में कुछ कमाल नहीं दिखा सकीं। जिसके चलते सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। 55 साल बाद इन दिग्गजों की नाक के नीचे से कांग्रेस ये सीट निकाल ले गई। तो क्या ये मान लिया जाए कि इस चुनाव में बीजेपी के बड़े नेताओं का जादू कुछ खास नहीं चल सका।



मालवा में बीजेपी की जीत का डंका बजा



हालांकि मालवा की सीटों ने बीजेपी को निराश नहीं किया। इंदौर, खंडवा और बुरहानपुर में बीजेपी ने जीत हासिल की है। इसके बावजूद जीत पर बांछे खिल सकें। पार्टी ने ऐसा कोई कमाल नहीं दिखाया है। इंदौर के अलावा बात करें तो बुरहानपुर और खंडवा में तो पार्टी को शर्मनाक जीत हासिल हुई है। वो भी अगर एआईएमआईएम के प्रत्याशी इन सीटों पर न होते तो शायद बीजेपी ये दो सीटें भी आराम से गंवा देती। इंदौर में जरूर कमल को देखकर लोगों ने वोट किया। लेकिन ये दो सीटें सिर्फ चुनावी गणित की बदौलत बीजेपी जीती हुई नजर आ रही है। मालवा में बीजेपी की जीत का डंका जरूर बजा है। लेकिन इंदौर छोड़कर बीजेपी जिस अंतर से जीती है उससे पार्टी के दिग्गज नेताओं की पेशानी पर शिकन आना भी लाजिमी है।



सागर में रंग लाई मंत्री भूपेंद्र सिंह की मेहनत



सागर में भी प्रत्याशी से ज्यादा जीत का क्रेडिट मंत्री भूपेंद्र सिंह की मेहनत को दिया जा सकता है। जिन्होंने अपनी पार्टी को जीत दिला ही दी। लेकिन इन सबसे ज्यादा चौंकाने वाले नतीजे सिंगरौली के हैं। जहां कांग्रेस और बीजेपी दोनों के जीत के इरादों पर झाड़ू फिर गई। यहां आप प्रत्याशी रानी अग्रवाल ने जीत हासिल की है। आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल की एक सभा ने यहां माहौल बदलकर रख दिया। कांग्रेस की जीत से ज्यादा आप की आमद बीजेपी के लिए चिंताजनक है। क्योंकि आप लगातार बीजेपी के विकल्प के तौर पर उभर कर सामने आ रही है।



सीटें गंवाकर खुश कैसे रह सकती है बीजेपी



इससे पहले तक प्रदेश की सारी 16 नगर निगमों पर बीजेपी का कब्जा था। सत्ता में रहते हुए सीटें गंवाकर बीजेपी भला कैसे खुश हो सकती है। कांग्रेस हारकर भी जीती है। 11 में से 3 सीटों पर कांग्रेस ने बड़े अंतर से जीत हासिल की। औवैसी की पार्टी के समीकरण न होते तो शायद बुरहानपुर और खंडवा पर भी बीजेपी का राज नहीं होता। अब 5 सीटों के नतीजे आने और शेष हैं। इनमें से एक भी सीट हाथ से निकली तो बीजेपी के लिए चिंता का विषय होगा। ये तो साफ हो ही चुका है कि प्रदेश के स्तर पर बीजेपी चाहे जितनी डींगे हांक ले, नगर के स्तर पर नाराजगी बढ़ रही है। जिसे रोक पाना अब सिर्फ बड़े नेताओं के बस की बात नहीं है। अगर ये नाराजगी नहीं खत्म हुई तो 2023 में एंटी इंकंबेंसी से बचना पार्टी के लिए मुश्किल होगा।


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