गांधी के अनुयायी थे भगत, शादी की बात चली तो घर से भाग गए, असेंबली में बम फेंककर कहा- बहरों को सुनाने के लिए कोलाहल करना पड़ता है

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Shivasheesh Tiwari
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गांधी के अनुयायी थे भगत, शादी की बात चली तो घर से भाग गए, असेंबली में बम फेंककर कहा- बहरों को सुनाने के लिए कोलाहल करना पड़ता है

DELHI. आज यानी 28 सितंबर को भगत सिंह का 115वां जन्‍मदिन मना रहा है। 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ जाने वाले इस नौजवान ने देश में आजादी की ऐसी अलख जगाई, जिसने अंग्रेजी हुकूमत के आसमान में भी सुराख कर दिया। विभाजन के साथ देश के स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों को भी दो हिस्सों में बांट-सा दिया गया। गांधी भारत के हुए तो जिन्ना पाकिस्तान के बन गए। लेकिन आजादी की उस तारीख से डेढ़ दशक पहले बलिदान की वेदी को चूमने वाला भगत सिंह तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से इतर दोनों मुल्कों का प्यारा बना रहा।



किसान का बेटा था 'आजादी का दीवाना' 



भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लयालपुर के बांगा (अब पाकिस्तान में) गांव के एक सिख परिवार में हुआ था। एक मतानुसार उनकी जन्मतिथि 27 सितंबर को मानी जाती है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। पिता किशन सिंह अंग्रेज और उनकी शिक्षा को पहले से ही पसंद नहीं करते थे इसलिए बांगा में गांव के स्कूल में शुरूआती पढ़ाई के बाद भगत सिंह को लाहौर के दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया।



इस आरोप में हुई थी फांसी



साइमन कमीशन विरोधी जुलूस की अगुवाई करते लाला लाजपत राय पुलिस की लाठियों से बुरी तरह जख्मी हो गए थे। 17 नवम्बर 1928 को उनकी दुःखद मृत्यु हो गई। उनकी मौत के ठीक एक महीने बाद 17 दिसम्बर 1928 को सरदार भगत सिंह की अगुवाई में क्रांतिकारी टोली ने पुलिस अधिकारी जान सांडर्स की हत्या करके लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था। मुकदमे के तेजी से निपटारे के लिए वायसराय लार्ड इरविन ने 1 मई 1930 को स्पेशल ट्रिब्यूनल गठित किया। ट्रिब्यूनल ने 7 अक्टूबर 1930 को अपना 300 पेज में फैसला दिया। सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को उनकी आखिरी सांस तक फांसी के फंदे पर लटकाने का इसमें हुक्म था।



देशभक्ति परिवार से सीखी



भगत सिंह का परिवार उनके पैदा होने के पहले ही क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल था। खुद भगतसिंह के पिता और चाचा अजीत सिंह ने 1907 अंग्रेजों के कैनाल कॉलोनाइजेशन बिल खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लिया था और बाद में 1914-1915 में गदर आंदोलन में भी भाग लिया था। इस तरह से बालक भगत को बचपन से ही घर में क्रांतिकारियों वाला माहौल मिला था।



शादी से बचने के लिए घर छोड़ा



जब भगत सिंह के माता-पिता ने उनकी शादी करने की कोशिश की तो वह अपने घर से भाग गए। उन्‍होंने अपने माता-पिता से कहा कि अगर उन्होंने गुलाम भारत में शादी की, तो उनकी दुल्हन केवल मौत होगी। इसके बाद वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए। बचपन में, भगत सिंह महात्मा गांधी द्वारा दिए गए अहिंसा के आदर्शों के अनुयायी थे। आगे चलकर उन्‍होंने अंग्रेजों से सीधी टक्‍कर लेने का मार्ग चुना जिसके चलते उनके गांधी जी से वैचारिक मतभेद भी रहे।



भगत सिंह की जयंती के मौके पर जानें उनके जीवन से जुड़ी ऐसी रोचक बातें-



देशवासियों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए किया था बम धमाका



अंग्रेजों को अपनी मांगों के बारे में बताने के लिए और पूरे देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज पहुंचाने के लिए भगत सिंह ने 8 अप्रैल को सेंट्रल असेंबली में धमाका किया। इसमें कोई घायल नहीं हुआ लेकिन देशभर के समाचार पत्रों में इस धमाके की गूंज जरूर सुनाई दी। इसके बाद भगत सिंह और उनके साथ बटुकेश्वर दत्त को बम फेंकने के लिए गिरफ्तार करके 2 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। बम फेंकने के बाद उनका कहना था कि बहरों को सुनाने के लिए कोलाहल करना पड़ता है।



जेल से आजादी की लड़ाई जारी रखी



भगत सिंह जब जेल में बंद थे, तब भी उन्होंने अपनी लड़ाई को जारी रखा। वह जेल से लेख लिखकर अपने विचार व्यक्त करते थे। हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बंग्ला और अंग्रेजी के तो वह जानकार थे ही। इसी का लाभ उठाकर उन्होंने देशभर में अपना संदेश पहुंचाने का प्रयास जारी रखा। अदालत की कार्यवाही के दौरान पत्रकार जब कोर्ट में होते, तो भगत सिंह आजादी की मांग को लेकर ऐसी जोशीली बाते कहते, जो अगले दिन अखबारों के पहले पन्ने पर नजर आतीं और हर नागरिक का खून आजादी के लिए खौल उठता। इस तरह उन्होंने अंतिम समय तक देश में क्रांति लाने की कोशिश की।



भारतीयों को डराने के लिए भगत को फांसी की सजा दी



2 साल की कैद में भगत सिंह के साथ ही राजगुरु और सुखदेव को भी अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। तीनों क्रांतिकारियों को 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन इस खबर के बाद से देशवासी भड़के हुए थे। लोग तीनों सपूतों की फांसी की विरोध कर रहे थे। भारतीयों में आक्रोश था और अंग्रेजों के खिलाफ जिस विरोध को भगत सिंह भारतीयों की नजरों में देखना चाहते थे, वह अब अंग्रेजों को डराने लगा था।



एक दिन पहले लटकाया था फांसी पर



अंग्रेजी हुकूमत भरत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी को लेकर हो रहे विरोध से डर गई थी। वह भारतीयों के आक्रोश का सामना नहीं कर पा रही थी। ऐसे में माहौल बिगड़ने के डर से अंग्रेजों ने भगत सिंह की फांसी का समय और दिन ही बदल दिया। गुपचुप तरीके से तय समय से एक दिन पहले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। 23 मार्च 1931 को शाम साढ़े सात बजे तीनों वीर सपूतों को फांसी की सजा हुई। इस दौरान कोई भी मजिस्ट्रेट निगरानी करने को तैयार नहीं था। शहादत से पहले तक भगत सिंह अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते रहे।



दोस्त से ये कहा



फांसी से पहले जेल में भगत सिंह ने अपने साथी शिव वर्मा को कहा था- ‘जब मैंने इंकलाब के रास्ते में पहला कदम रखा था तो सोचा था कि यदि मैं अपनी जान देकर भी इंकलाब जिंदाबाद का नारा देश के कोने-कोने में फैला सकूं तो समझूंगा कि मेरी जिंदगी की कीमत बढ़ गई। आज जब मैं फांसी की सजा के लिए जेल कोठरी की सलाखों पीछे बंद हूं तो मैं देश के करोड़ों लोगों की गरजदार आवाज में नारे सुन सकता हूं। एक छोटी-सी जिंदगी की इस से बड़ी कीमत और हो भी क्या सकती है।’

 


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