शिवराज को फिर आई नर्मदा मैया की याद

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Anjali Singh
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शिवराज को फिर आई नर्मदा मैया की याद

भोपाल. अरुण तिवारी.  मप्र के लिए नर्मदा नदी का सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व तो है ही लेकिन एक बड़ा सवाल है कि एक नदी का राजनीतिक महत्व कैसे हो सकता है। यदि आपकी राजनीति में रूचि है तो ये जानना बेहद जरूरी है कि नर्मदा कैसे मप्र की राजनीतिक दिशा तय करती है। और अब एक बार फिर इसी नर्मदा के जरिए राजनीति की दिशा को तय किया जा रहा है। इस बार मामला हाई लेवल का है और खुद बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने इसकी रूपरेखा तय की है। पहले बताते हैं नर्मदा का सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व कैसे है। 





नर्मदा के सियासी मायने



मप्र की जीवन रेखा है मां नर्मदा। अनूपपुर जिले के मैकल पर्वत का अमरकंटक इसका उद्गम स्थल है। देश की प्राचीन नदियों में से एक। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की प्रिय। अमरकंटक की पर्वत श्रंखलाओं से निकलकर नर्मदा गुजरात के भरूच तक पहुंचने में 1310 किमी का रास्ता तय करती है और आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। एकमात्र ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की तरफ बहती है। अनूपपुर जिले के अमरकंट से अलीराजपुर जिले के सोंडवा तक 1077 किमी का प्रवाह है। जो कुल लंबाई का करीब 82.24 फीसदी है। मप्र में नर्मदा 16 जिले, 51 विकास खंड, 600 गांव और 1107 घाटों से होकर गुजरती है। नर्मदा किनारे 290 प्रमुख प्रचीन मंदिर, 161 धर्मशालाएं, 263 आश्रम मौजूद हैं। नर्मदा के इन्हीं घाटों पर सभ्यता बसती है। धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर दिखाई देती है। लेकिन राजनीतिक दलों के लिए नर्मदा का राजनीतिक महत्व भी है। क्योंकि 16 जिलों की 66 विधानसभा सीटों पर नर्मदा का सीधा प्रभाव पड़ता है। यहां किसकी जीत होगी किसकी हार इसका फैसला मां नर्मदा से जुड़े मुद्दे ही करते हैं। यही वजह है कि सत्ता पक्ष हो या विपक्ष नर्मदा में हो रहे खनन,नर्मदा के हो रहे क्षरण और नर्मदा के संरक्षण का मुद्दा उठाते हैं। नर्मदा पट्टी के 16 जिलों की 66 सीटों को देखा जाए तो इस समय 30 सीटें कांग्रेस के पास है 34 सीटें बीजेपी के पास और बाकी निर्दलीयों के हिस्से में आती हैं। 





16 जिलों की 66 विधानसभा सीटों पर नर्मदा का प्रभाव



प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 66 सीटें सीधे तौर पर नर्मदा के प्रभाव वाली सीटें हैं। यहां किसकी जीत होगी इस फैसला मां नर्मदा ही करती है। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस को चुनाव के ऐन पहले नर्मदा की याद आने लगती है। नर्मदा किनारे की 66 सीटों में से 30 कांग्रेस के पास, 34 बीजेपी के पास और बाकी निर्दलियों के हिस्से में आती हैं। बीजेपी की चार सीटें ऐसी भी हैं जो पहले कांग्रेस के पास थीं लेकिन ये विधायक कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए।



 अनूपपुर — 3



 जबलपुर — 8



 डिंडौरी — 2



 मंडला — 3



सिवनी — 4



 नरसिंहपुर — 4



 हरदा — 2



 होशंगाबाद — 4



 रायसेन — 4



 सीहोर — 4



 देवास — 5



 खंडवा — 4



 खरगौन — 6



 बड़वानी — 4



अलीराजपुर — 2



 धार — 7



चुनाव के पहले शिवराज को फिर याद आई नर्मदा



विधानसभा चुनाव से एक साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फिर नर्मदा की सुध लेने जा रहे हैं। दो केंद्रीय मंत्रियों के साथ सीएम ने नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में बैठक कर नए प्लान तैयार कर लिए।



सीएम ने कहा कि अमरकंटक में किसी भी कीमत पर नया निर्माण नहीं होगा। 1 मई को नर्मदा सेवा से जुड़े हुए कार्यकर्ता एकत्रित होकर जनजागरण अभियान शुरु करेंगे। 5 जून पर्यावरण दिवस को स्थानीय इकोसिस्टम के अनुरूप वृक्ष लगाने का संकल्प लेंगे। नर्मदा और उनकी 41 सहायक नदियों के तट पर वृक्षारोपण करने व तालाब बनाने का काम किया जाएगा। मैकल पर्वत के नीचे एक सैटेलाइट सिटी बनाएंगे जहां पर होटल, रेस्टोरेंट बना कर यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था करेंगे। यानी एक बार फिर वही बातें दोहराई जा रही हैं जो पिछले चुनाव के एक साल पहले 2017 में दोहराई गई थीं।





कागजों में सिमटी नमामि देवी नर्मदे



नमामि देवि नर्मदे यात्रा का संचालन 148 दिनों (11 दिसम्‍बर 2016 से 15 मई 2017) तक चला। इसके समापन समारोह में खुद पीएम मोदी ने शिरकत की थी और नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर पूजा पाठ भी किया। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि नदियों से ही हमारी अर्थव्यवस्था है, नदियों को बचाना है। सीएम ने नर्मदा को जीवित इकाई घोषित कर दिया। 2 मई को विधानसभा में इसका संकल्प पारित हो गया। लेकिन इसके बाद राज्य सरकार ने कानून बनाने के लिए एक कदम भी नहीं उठाया। अभियान चलाकर एक दिन में साढ़े छह करोड़ से ज्यादा पौधे लगाकर विश्व रिकॉर्ड बनाने का दावा किया गया। लेकिन 2018 में बनी कांग्रेस सरकार ने इस दावे की हवा निकाल दी। तत्कालीन वन मंत्री उमंग सिंघार ने इसे 350 करोड़ का घोटाला बताकर ईओडब्ल्यू से जांच कराने का ऐलान कर दिया। इस संबंध में हाईकोर्ट में भी याचिका लगाई गई जिसमें कागजों पर पौधे खरीद कर कागजों में लगाने का आरोप लगाया गया। उमंग सिंघार कहते हैं कि चुनाव आते ही एक बार फिर सीएम ने नर्मदा के नाम पर छलावा शुरु कर दिया है। नर्मदा सेवा यात्रा के प्रभारी रहे शिव चौबे कहते हैं कि नर्मदा सेवा यात्रा के सुखद परिणाम नर्मदा के किनारों पर हरियाली के रुप में नजर आ रहे हैं, कांग्रेस तो सिर्फ नर्मदा पर राजनीति करती रही है।





दिग्विजय कर चुके हैं नर्मदा से राजनीतिक सूखे को सींचने की कोशिश



पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी पिछले चुनाव से पहले अपनी पत्नी अमृता सिंह के साथ दशहरे के दिन नर्मदा परिक्रमा पर निकले थे। उन्होंने इस यात्रा के लिए कांग्रेस महासचिव के पद से बाक़ायदा छह महीनों की लंबी छुट्टी ली थी। साथ चल रहीं उनकी पत्नी अमृता राय ने भी इस यात्रा के लिए टीवी पत्रकार की अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया दिया था। उस वक़्त खुद उमा भारती ने दिग्विजय को पत्र लिखकर उनकी तारीफ की थी। कहा यह भी गया था कि अपनी ख़त्म होती राजनीति और कद को बचाये रखने के लिए ही दिग्विजय इस यात्रा पर निकले थे।





नर्मदा का चुनावी समीकरण



नर्मदा को लेकर शिवराज सरकार ने एक और पहल की थी कि नर्मदा को जीवित इकाई घोषित किया गया था। 2 मई को विधानसभा में इसका संकल्प पारित हो गया।  लेकिन इसके बाद राज्य सरकार ने कानून बनाने के लिए एक कदम भी नहीं उठाया। संकल्प, संकल्प बनकर रह गया, और अब बात करते हैं कांग्रेस की बीजेपी को तो नर्मदा सेवा यात्रा से कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला लेकिन कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने 2017 में ही नर्मदा परिक्रमा यात्रा की थी। इस यात्रा से दिग्विजय सिंह को धार्मिक पुण्य मिला या नहीं ये नहीं पता कि कांग्रेस को राजनीतिक लाभ जरूर मिला। चुनाव गणित के आंकड़ों से इसे समझिए। 2013 के चुनाव  में नर्मदा पट्टी के 16 जिलों की 66 सीटों में से कांग्रेस के खाते केवल 17 सीटें थी। और 2018 में सीटों की संख्या बढ़कर दोगुनी यानी 34 हो गई। हालांकि बाद में 4 कांग्रेस के विधायक बीजेपी में शामिल हो गए वो अलग बात है। लेकिन कहा जाता है कि नर्मदा पट्टी की सीटों में कांग्रेस को जो फायदा मिला उसके पीछे दिग्विजय की नर्मदा परिक्रमा यात्रा ही थी। दिग्विजय को धार्मिक पुण्य मिलने के साथ फायदा ये हुआ कि उनकी राजनीति में वापसी हो गई। और जोरदार वापसी हुई।





बहरहाल अब एकबार फिर नर्मदा संरक्षण को लेकर प्रयास शुरू हुए हैं। चुनाव से ठीक डेढ़ साल पहले। इस समय बीजेपी के एजेंडे में हिंदू। हिंदुत्व और हिंदुओं की सांस्कृतिक विरासत शामिल है. ऐसे में मप्र के चुनाव में नर्मदा से जुड़ा  तो कोई बड़ा मुद्दा हो नहीं सकता। ये ठीक उसी तरह है जैसे यूपी चुनाव से पहले काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण और इसकी शुरूआत हो चुकी है।एकबार फिर नर्मदा किनारे पौधारोपण की तैयारियां है लेकिन इसबार इसकी बागडोर केंद्र सरकार के हाथों में है।





नर्मदा किनारे फिर पौधारोपण की तैयारी



यानी एकबार फिर सरकार नर्मदा किनारे पौधे लगाने की शुरूआत करने जा रही है। लेकिन पिछली बार के पौधारोपण और इसबार के पौधारोपण में अंतर ये हैं कि इसकी बागडोर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में है। यानी केंद्र सरकार के इसलिए 24 अप्रैल को अमरकंटक में केंद्र सरकार के दो दो मंत्रियों के साथ सीएम शिवराज की बैठक हुई इसमें केंद्र ने जो तय किया है उसी के आधार पर राज्य सरकार योजना बना रही है। खास बात ये है कि खुद प्रधानमंत्री ने नर्मदा को लेकर एक विशेष अध्ययन करवाया है जिसकी रिपोर्ट लेकर दोनों केंद्रीय मंत्री अमरकंटक पहुंचे थे।





पौधे लगाने और जनजागरण अभियान के साथ इस बैठक में ये भी फैसला हुआ कि अमरकंटक में कोई नया निर्माण नहीं होगा। इसकी जानकारी शिवराज ने 26 अप्रैल को हुई कैबिनेट मीटिंग में मंत्रिमंडल के बाकी सदस्यों को भी दी। नर्मदा सरंक्षण को लेकर एकबार फिर शुरू किए जा रहे प्रयासों पर कांग्रेस का तो आरोप है कि चुनाव आ रहे हैं इसलिए नर्मदा याद आ रही है।


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