विन्ध्य के दो राजनीतिक घराने जिन्हें पारिवारिक कलह ले डूबी, कभी बोलती थी तूती आज हैं हाशिए पर, खत्म हो रहा दबदबा

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The Sootr CG
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विन्ध्य के दो राजनीतिक घराने जिन्हें पारिवारिक कलह ले डूबी, कभी बोलती थी तूती आज हैं हाशिए पर, खत्म हो रहा दबदबा



Bhopal. 17 सितंबर की तारीख कभी विन्ध्य के लिए खास हुआ करती थी। इस दिन विन्ध्य के दिग्गज कांग्रेस नेता का जन्मदिन पड़ता है। 2003 तक रीवा में उनका जन्मदिन किसी उत्सव की भांति मनता था और कोई पचास हजार की भीड़ जुटा करती थी। अब ऐसा नहीं है परिवार में कलह इतना गहरा है कि उनके पौत्रगण ही इसे अलग-अलग मनाते हैं और कोई 500 लोग जुट जाएं तो बड़ी बात। 2003 के बाद पराभव ऐसा कि अब कांग्रेस का नेतृत्व नोटिस ही नहीं लेता। कुछ ऐसा ही हाल अर्जुन सिंह के घराने का है। पुत्र अजय सिंह राहुल और पुत्री वीणा सिंह के बीच बातचीत की क्या कहें देखा दृष्टि तक नहीं। राहुल लगातार तीन चुनाव हार कर एक तरह से प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर ही हैं। कभी अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी की तूती विन्ध्य से लेकर दिल्ली तक बोलती थी। आइए जानते हैं ऐसा क्यों हुआ। 





बिखर गया श्रीनिवास का कुनबा





श्रीनिवास तिवारी अपने घर और समर्थकों को एक परिवार ही मानते थे। समर्थक भले ही कितना बुरा हो लेकिन उसके लिए जान सटा देते। उनके परिजन उनकी आत्मा में बसते थे। अपने जीते जी ही कोशिश में रहे कि पुत्र और पौत्र राजनीति में सांसद विधायक बनकर जम जाएं। 1985 को छोड़ दें तो पिछले चुनाव तक टिकट उनके परिवार में ही रहे। अब उनके परिवार में महाभारत का उत्तरकाल चल रहा है। 





अलग-अलग ठिकानों पर जन्मदिन कार्यक्रम





17 सितंबर को उनका जन्मदिन दो अलग-अलग ठिकानों में आयोजित किया गया है। लोकसभा के पिछले चुनाव के प्रत्याशी रह चुके सिद्धार्थ तिवारी इसे मनगंवा में मना रहे हैं। यह वही मैदान है जहां पिछले साल जब कमलनाथ की सभा हुई तो उन्हें मंच पर चढ़ने तक नहीं दिया गया था। इस आयोजन में कौन बड़ा नेता आ रहा है 24 घंटे पहले तक किसी को खबर नहीं। सिद्धार्थ अपने बाबा के समर्थकों को जोड़ने में जुटे हैं। इधर उनकी भाभी और श्रीनिवास तिवारी की पौत्रबधु अरुणा तिवारी ने अमहिया(रीवा) स्थित घर मेन श्रद्धांजलि सभा रखी है। अरुणा 2018 में सिरमौर विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी रह चुकी है। अरुणा के पति विवेक तिवारी भी कांग्रेस के टिकट पर 2013 के चुनाव में मैदान पर उतरे थे पर हार गए। तिवारी की सगी भतीजी कविता पान्डेय प्रदेश महिला कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष है पर उसका इन आयोजनों से कोई लेना देना नहीं।





पहले आम चुनाव से सक्रिय है तिवारी घराना





तिवारी घराना आजादी के बाद हुए पहले चुनाव से राजनीति में है। श्रीनिवास तिवारी स्वयं 1985 को छोड़ 2008 तक चुनाव लड़ते रहे। जब वे 1993 से 2003 तक मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष थे तब उन्हें मुख्यमंत्री के समानांतर सत्ता का रसूख हासिल हुआ। 2003 तक विन्ध्य में वे और अर्जुन सिंह मिलकर विधानसभा व लोकसभा की सीट तय करते रहे। तिवारी 1998 में बेटे सुंदरलाल तिवारी को लोकसभा जिताने में सफल रहे। सुंदरलाल 2013 में गुढ़ से कांग्रेस के विधायक भी रहे।





2003 से राजनीति में लगा गृहण





तिवारी घराने में राजनीति का ग्रहण लगा 2003 से जब वे विधानसभा का चुनाव हार गए। इसके बाद उनके पुत्र, पौत्रवधु भी चुनाव मैदान पर उतरे लेकिन हारते रहे। 98 के बाद लड़े पांच चुनावों में सुंदरलाल को एक सफलता मिली गुढ़ विधानसभा से 2013में। तिवारी  के जीते जी उनके देखते-देखते कुनबा बिखर गया। संपत्ति और राजनीति के वर्चस्व की लड़ाई में उनका परिवार ऐसे विधा कि आज बोलचाल और देखादृष्टि तक बंद है। समर्थकों ने सुविधानुसार अपनी लाइन पकड़ ली..। अब तिवारी घराने की धाक और रसूख विन्ध्य की वादियों में गुम सी गई है।





अर्जुन सिंह राजनीति में धूमकेतु की भांति छाए रहे 





अर्जुन सिंह घराने की राजनीति का कभी ऐसा सिक्का चलता था कि जब वे चुरहट (सीधी) से चुनाव लड़ते थे तो कश्मीर से केरल तक के उनके कांग्रेसी समर्थक अपनी एक झलक दिखाने के लिए पहुंचते थे कि हम भी साथ में हैं। उसी चुरहट और सीधी ने उनके पुत्र अजय सिंह राहुल को पिछले 2018 के चुनाव में जनता ने नकार दिया। 1991 में सतना लोकसभा से चुनकर दिल्ली पहुंचे अर्जुन सिंह देश की राजनीति में धूमकेतु की भांति छाए थे। उसी सतना ने 1996 में उन्हें निपटा दिया और वहीं से 2 चुनाव लड़ चुके अजय सिंह राहुल को भी जनता ने भाव नहीं दिया। राहुल फिलहाल प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर हैं।





खत्म हो रहा वर्चस्व





पारिवारिक कलह ने इस घराने की राजनीति को ग्रसा। यह कलह अर्जुन सिंह को जीते जी देखना पड़ा। वो और उनकी पत्नी ने जिन्दगी के आखिरी क्षण बेटी वीणा सिंह के घर गुजारे। वीणा सिंह भी राजनीतिक तौर पर महत्वाकांक्षी थी। 2003 में कांग्रेस से उनकी टिकट सतना से पक्की थी लेकिन वर्चस्व की कलह ने ऐनवक्त पर उनकी टिकट छीन ली। 2008 में वे सीधी लोकसभा से निर्दलीय ही उतर पड़ी लेकिन अर्जुन सिंह को मजबूरी में इन्द्रजीत कुमार का साथ देना पड़ा जो कांग्रेस से लड़ रहे थे। इस कलह का असर यह हुआ कि दोनों हारे और मुद्दतों बाद सामान्य हुई सीधी सीट पर भाजपा का कब्जा जम गया। अब हाल यह कि परिवार में जिसका जहां जोर पड़ता है एक दूसरे को हराने पहुंच जाता है। सतना से लोकसभा का चुनाव राहुल दो बार हारे तो इसका ठीकरा मामा राजेन्द्र कुमार सिंह पर फोड़ा गया। राजेन्द्र कुमार सिंह अमरपाटन (सतना) से हारे तो इसका श्रेय उन्होंने राहुल समर्थकों को दिया। कुल मिलाकर कलह इतना प्रबल है कि विन्ध्य के रसूखदार ये राजनीतिक घराने अब सोन और टमस के पानी में डूब-उतरा रहे हैं। परिणाम विन्ध्य की विधानसभा सीटों में कांग्रेस 30 में 6, लोकसभा में 4 में शून्य है।



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