Satna: जब कांग्रेस के महापौर की काउंसिल में भाजपा के एक नहीं दो-दो पार्षद थे

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Sachin Tripathi
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Satna: जब कांग्रेस के महापौर की काउंसिल में भाजपा के एक नहीं दो-दो पार्षद थे

SATNA. यहां के मेयर की चेयर का अजीब किस्सा है। पहली बार सतना नगर निगम में कांग्रेस के महापौर की एमआईसी यानी मेयर इन काउंसिल में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के एक नहीं दो पार्षद से थे। तब महापौर पार्षदों द्वारा चुना गया था। 'सबका साथ, सबका विकास'  वैसे तो यह नारा भाजपा का है लेकिन आज से 27 साल पहले इस नारे को चरितार्थ नगर निगम सतना के पहले महापौर राजाराम त्रिपाठी ने किया था। उन्होंने तब के निगम के नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता इन्द्रराज सिंह यादव को मेयर इन काउंसिल में रखा था। इनके अलावा भाजपा नेत्री  निर्मला सोनी को भी एमआईसी में जगह दी थी। उस समय इंद्र राज यादव को राजस्व समिति का प्रभारी बनाया गया था। मजेदार बात यह है कि भाजपा नेता यादव ने  राजाराम त्रिपाठी के खिलाफ ही महापौर का चुनाव लड़ा था। चुनाव में प्रतिद्वंदी रहे इन्द्रराज यादव को एमआईसी सदस्य बनाए जाने के के बारे में पूर्व महापौर राजाराम त्रिपाठी ने 'द सूत्र'  से कहा कि इससे विकास कार्यों को गति देने में सहयोग मिला और शहर का व्यवस्थित और समुचित विकास हो सकेगा।





27 पार्षदों के समर्थन से बना था पहला महापौर 





सतना नगर निगम का पहला महापौर कांग्रेस से बना। तब राजाराम त्रिपाठी को पार्षदों के द्वारा मेयर चुना गया था। राजाराम त्रिपाठी का कार्यकाल कई मायनों में सबसे अलग रहा। 45 पार्षदों वाली निगम में कांग्रेस के 19, भाजपा के 16, बसपा के 6 और अन्य 4 पार्षद चुनकर आए थे। मेयर बनने के लिए 23 पार्षदों की आवश्यकता थी। कांग्रेस की तरफ से मेयर के उम्मीदवार राजाराम त्रिपाठी थे जबकि भाजपा की तरफ से मैदान में इन्द्रराज सिंह यादव थे। कांग्रेस उम्मीदवार  त्रिपाठी को 27 पार्षदों का समर्थन मिला जबकि भाजपा उम्मीदवार 18 पार्षदों तक ही सिमट गए।





6 माह में पहला अविश्वास, कुल तीन झेले 





नगर निगम के पहले महापौर राजाराम त्रिपाठी को अपने पांच साल के कार्यकाल में तीन अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ा था। कार्यकाल के पहले 6 माह में ही अविश्वास प्रस्ताव विरोधियों द्वारा लाया गया था लेकिन यहां भी  त्रिपाठी को पार्षदों का सहयोग मिला और प्रस्ताव औंधे मुंंह गिर गया। अगले 6 माह बाद भी एक बार फिर अविश्वास प्रस्ताव आया उसका भी यही हाल हुआ। इसके बाद 6 माह में बाद ही एक और अविश्वास प्रस्ताव आया। कुल मिलाकर पांच साल में तीन अविश्वास प्रस्ताव की विसंगतियों को देखते हुए संशोधन करते हुए यह व्यवस्था की गई कि ढाई साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद ही अविश्वास आयेगा, इतना ही नहीं प्रस्तावों के प्रावधानों को और भी कड़ा किया गया।





भोपाल के मेयर को भी करनी पड़ी थी सराहना





नगर निगम के महापौर के पहले कार्यकाल में भाजपा, कांग्रेस और बसपा से एक से बढ़कर एक अनुभवी और योग्य पार्षद चुनकर आए थे। हालत यह भी कि सतना के एमआईसी में शामिल सदस्यों के अनुभव और योग्यता की चर्चा भोपाल तक होती थी। इससे प्रभावित होकर भोपाल के तत्कालीन मेयर भाजपा नेता उमाशंकर गुप्ता ने विकास को लेकर सतना और भोपाल के एमआईसी सदस्यों के बीच एक संवाद कराया था, जिसमें गुप्ता को अंत में सतना के एमआईसी सदस्यों की जानकारी और अनुभव की सराहना करनी पड़ी।  गुप्ता को कहना पड़ा था कि सतना की एमआईसी में जानकार और अनुभवी लोग हैं। गौरतलब है कि उस दौरान प्रदेश स्तर पर भी एक सात सदस्यीय मेयर इन काउंसिल का गठन हुआ था।







लल्लूलाल थे पहले उप महापौर







आज जिसे स्पीकर जाता है वह पहले उप महापौर के नाम से जाना जाता था। नगर निगम के गठन के बाद निगम के पहले उप महापौर बनने का मौका कांग्रेस के लल्लूलाल सतनामी को मिला, वे राजाराम त्रिपाठी के कार्यकाल में उप महापौर चुने गए थे, इनका निर्वाचन भी पार्षदों द्वारा किया गया था। पहले ढाई साल वे उप महापौर रहे, उसके बाद संशोधन कर इस पद को स्पीकर कर दिया गया और ढाई साल फिर लल्लू स्पीकर भी रहे। 





ये दिग्गज थे एमआईसी में





सुधाकर चतुर्वेदी (कांग्रेस)



बद्री प्रसाद शर्मा (कांग्रेस)



बच्चू लाल जायसवाल (कांग्रेस)



गोपी कुशवाहा (कांग्रेस)



कमला सिंह (कांग्रेस)



इन्द्रराज सिंह यादव (भाजपा)



निर्मला सोनी (भाजपा)











ये दिग्गज चुने गए थे पार्षद





रामलाल सिंह, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष



जगन्नाथ सिंह यादव



अजय सिंह कोठी



सुधीर सिंह तोमर



हाजी इकबाल



सुरेन्द्र शर्मा



अब्दुल वाहिद



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