राकेश मिश्रा, Rewa. कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं के साथ चुनावों में बड़े इत्तफाक होते हैं। एक को चांस मिलता है तो दूसरा लित्ती मारने से बाज नहीं आता। वर्तमान में नगरीय निकाय और त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव की रणभेरी बज चुकी है, सियासी बिसात पर मोहरे बैठाए जा रहे हैं। इस दौरान प्रत्याशी को लेकर मंथन हो रहे हैं और साथ में शुरू हो गया है दावेदारी पको लेकर शह-मात का खेल। पार्टी जिसे उम्मीदवार बनाएगी उसको पराजित कराने कई नेता किक मारने बैठे हैं। ये बात और है कि उनका यह कदम आत्मघाती यानि सेल्फ गोल होगा। मजे की बात यह है कि पार्टी की फजीहत के यही खिलाड़ी बाद में संगठन के मजे भी खूब लेते हैं। ऐसे कई चेहरे चुनाव में इत्तफाक से मेंन स्ट्रीम में खड़े नजर आते हैं। हुक्का भरने वालों को उपकृत करने का आगाज विंध्य क्षेत्र के विधान पुरूष कहे जाने वाले स्व. पं. श्रीनिवास तिवारी के सियासी चरमोत्कर्ष के समय हुआ, जो कालांतर में कांग्रेस के क्षत्रपों ने परिपाटी के रूप में चल पड़ा। 1997 के नगर निगम के आम चुनाव में श्रीगणेश हुई यह परम्परा बदस्तूर जारी है। अब देखना यह है कि 2022 के नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व वर्षो से चली आ रही बगावत की आंधी को रोकने में सफल होता है और चुनावी विसात में गत चुनाव की भांति पराजय स्वीकार कर लेता है।
शहीद से लेकर कविता तक हुए सेल्फ गोल
कांग्रेस पार्टी में सेल्फ गोल का आत्मघाती खेल 1997 से चल रहा है। उक्त चुनाव में कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी सरदार प्रहलाद सिंह थे, लेकिन कांग्रेस के युवा नेता और अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े अब्दुल शहीद मिस्त्री स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतर कर कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया था। उक्त चुनाव में शहीद मिस्त्री ने मटका चुनाव चिन्ह पर 9 हजार वोट पाकर कांग्रेस की पराजय का मार्ग प्रशस्त कर दिया। बाद में कांग्रेस पार्टी ने शहीद मिस्त्री को बतौर नजराना शहर कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया। यही नहीं दादा ने 1999 के नगर निगम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार आशा सिंह के मुकाबले अपने करीबी वकील सुशील तिवारी की पत्नी आशा तिवारी को उम्मीदवार बनाकर राजनीतिक ठसक को कायम रखा, लेकिन करारी पराजय से कांग्रेस को उबार नहीं पाए जबकि उस दौरान कांग्रेस पार्टी में कई ऐसे चेहरे थे जो सक्रिय थे और मुकाबले को दिलचस्प बना सकते थे।
आगे भी चला यह सिलसिला
अपने अलोकप्रिय चहेतों को चुनावी समर में उपकृत करने का सिलसिला यही खत्म नहीं हुआ। कांग्रेस की यह विडम्बना है कि 2014 के चुनाव में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव ने भी रीवा में अनजान चेहरे को सामने लाकर पार्टी की हुक्का संस्कृति को काम रखा। अरूण यादव ने नगर निगम की नेता प्रतिपक्ष रहीं सक्रिय कांग्रेस नेत्री कविता पाण्डेय को दरकिनार कर अपने पारिवारिक सदस्य रहे धर्मेन्द्र तिवारी बब्बुल की पत्नी प्रियंका को कांग्रेस का महापौर प्रत्याशी बना दिया।
कविता पाण्डेय ने कर दी बगावत
कविता पाण्डेय 2014 के मेयर चुनाव में सेकेंड रनर-अप रहीं। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी प्रियंका तिवारी के मुकाबले करीब 10 हजार अधिक वोट पाकर पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के टिकट वितरण के निर्णय को झूठा साबित कर दिया। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि उक्त चुनाव में कविता पाण्डेय कांग्रेस की प्रत्याशी होतीं तो नतीजा कुछ और होता। ये बात और है कि उनकी बगावत को बाद में प्रदेश का शीर्ष नेतृत्व क्षमा कर गया। कमलनाथ ने उन्हें प्रदेश की कमान संभालने के साथ ही न केवल पार्टी में वापस लिया। वरन महिला कांग्रेस का प्रदेश कार्यवाहक अध्यक्ष भी बना दिया। कविता पाण्डेय के पास अब भी पार्टी की उक्त जिम्मेदारी है, जबकि प्रियंका तिवारी और आशा तिवारी जैसी मेयर की प्रत्याशी रह चुकीं महिला नेत्रियां गुमनामी में खो गईं।
बाबा को टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय लड़ गए
निवर्तमान नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष अजय मिश्रा बाबा के साथ भी कुछ इसी तरह का वाक्या जुड़ा हुआ है। 2009 के आम चुनाव में अजय मिश्रा बाबा का पं. श्रीनिवास तिवारी ने टिकट काट कर वार्ड 19 से लालू नामक एक ऐसे सख्त से मैदान में उतार दिया जिसे सियासी ककहरा नहीं पता था। फलस्वरूप अजय मिश्रा निर्दलीय लड़ गए, इस बीच उन्हें कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया, लेकिन वार्ड 19 से अजय मिश्रा बाबा की जीत के कुछ सालों बाद पार्टी में वापस लिया गया। 2014 के चुनाव में उन्हे पार्टी ने वार्ड 17 से पार्षद पद का प्रत्याशी बनाया और जीत के बाद स्व. श्रीनिवास तिवारी की मंशा के अनुरूप नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस पार्षद दल का नेता बनाया गया।
टिकट की दौड़ में खींचतान
नगर निगम चुनाव की तिथियों के ऐलान होने के साथ ही कांग्रेस में टिकट के दावेदारों में खींचतान शुरू हो गई है. सबसे आगे चल रहे अजय मिश्रा बाबा, एसपीएस तिवारी, लखन खंडेलवाल की प्रबल दावेदारी के बीच गुरूमीत सिंह मंगू, गोविन्द शुक्ला, कांग्रेस नेता अभय मिश्रा जैसे लोग एक-दूसरे को किनारे करने की कोशिश में भोपाल की दौड़ लगा रहे है। इस दौरान एक दूसरे की कमियों और खुद की वफादारी का पुलिंदा दबाए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के दफ्तर की ड्योढ़ी नाप रहे हैं।